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________________ ३२७ १७८] ४७. सुग्गीवक्खाणपब्वं तम्हा अकालहीणं, करेह लदा सुदुग्गपायारं । सम्माणेह जणवय, भिच्चा य बहुप्पयाणेणं ॥ ९५ ॥ ताहे बिभीसणेणं. रइओ मायाएँ दुग्गमो सिग्छ । पायारो अइविसमो, निरन्तरो कूडजन्तेसु ॥ ९६ ॥ दिन्ना य रक्खपाला, समन्तओ खेयरा बलसमग्गा । समरे अभम्गमाणा, गहियाउह-पहरणा-ऽऽवरणा ॥ ९७॥ एवमिमं सुणिऊण य तुब्भे,रावणवम्मदुक्खसमूह । वजह निच्चमवि परदार.जेण जसं विमलं अणुहोह ॥ ९८॥ ॥ इय पउमचरिए मायापायारविउठवणं नाम छायालीसं पव्वं समत्तं ॥ ४७. सुग्गीवक्खाणपप एत्तो किक्विन्धवई, कन्ताविरहम्मि दुक्खिओ सन्तो। पत्तो परिब्भमन्तो, तं चेव रणं नहिं वत्तं ॥ १ ॥ पेच्छइ तुरय-गइन्दे, विवाइए रहवरे य परिभग्गे। सुहडे विमुक्कजीए, अवरे सत्थाहयसरीरे ॥ २ ॥ परिपुच्छिओ य साहइ, सुग्गीवनराहिवस्स तत्थेगो । सोयाहरणम्मि इमे, निहया खरदूसण-जडागी ॥ ३ ॥ चिन्तेइ वाणरवई. निहओ खरदसणो रणे जेणं । वच्चामि तस्स सरणं, सो वि हु सन्तीकरो होउ ॥ ४ ॥ तुल्लावत्थाण जए, होइ सिणेहो नराण निययं पि । कारणवसेण सो मे, काही पक्खं न संदेहो ॥ ५॥ नाऊण वाणरवई, ठाणं पउमस्स निययबलसहिओ । पडिहारसमक्खाओ, पायालपुरं अह पविट्ठो ॥ ६ ॥ संभासिएकमेका, उवविट्ठा आसणेसु रइएसु । पुच्छन्ति देहकुसल, सुग्गीवं राम-सोमित्ती ॥ ७॥ एत्थन्तरे पवुत्तो, मन्ती जम्बूनओ निसामेहि । कत्तो सरीरकुसलं, इमस्स अम्हं नरिन्दस्स? ॥ ८ ॥ दान द्वारा सम्मान करो। (९५) इसपर विभीषणने मायाके बलसे दुर्गम, अतिविषम तथा कूटयंत्रोंके कारण व्यवधान रहित ऐसा किला बनाया। (९६) और चारों ओर युद्धमें भग्न न होनेवाले तथा आयुधधारी एवं प्रहरण व कवचसे युक्त खेचरोंको सैन्यके साथ रक्षकके रूपमें स्थापित किया। (९७) इस प्रकार रावणके कामजन्य इस दुःख-समूहके बारेमें सुनकर सर्वदाके लिए तुम परनारीका परित्याग करो ओर विमल यशका अनुभव करो। (९८) ॥ पद्मचरितमें मायाप्राकारका निर्माण नामक छयालीसवाँ पर्व समाप्त हुआ । ४७. सुग्रीवका आख्यान इधर किष्किन्धिपति सुग्रीव पत्नीके विरहसे दुःखित होकर घूमता-घामता वहीं पहुंचा जहाँ युद्ध हुआ था। (१) वहाँ उसने कटे हुए घोड़े और हाथी, टूटे हुए रथ, मृत सुभट तथाशलासे आहत शरीरवाले अन्य सुभटोंको देखा । (२) पूछने पर वहाँ किसीने सुग्रीव राजासे कहा कि सीताहरणमें ये खरदूषण तथा जटायु मारे गये हैं। (३) यह सुनकर वानरपतिने सोचा कि खरदूषणको युद्धमें जिसने मारा है उसकी शरणमें मैं जाऊँ। वही मेरे लिए शान्तिकर होगा। (४) विश्वमें यह नियम है कि तुल्य अवस्थावालोंमें स्नेह होता है। कारणवश वह मेरा पक्ष करेगा, इसमें सन्देह नहीं। (५) रामका स्थान जानकर प्रतिहार द्वारा कहा गया वानरपति सुनीव अपनी सेनाके साथ पातालपुरमें प्रविष्ट हुआ । (६) एक दूसरेके साथ बातचीत करके निर्मित आसनों पर वे बैठे। राम और लक्ष्मणने सुग्रीवके शरीरकी कुशलवार्ता पूछी । (७) सब जाम्बूनद मंत्रीने कहा कि आप सुनें। हमारे इस राजाके शरीरका कुशल कहाँसे ? (0) आदित्यरजाके बालि और १. लई-प्रत्य। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001272
Book TitlePaumchariyam Part 1
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages432
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size13 MB
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