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________________ ९० पउमचरियं [३८. १५ गमिऊण कंचि कालं, विजयपुरे महिहरं भणइ रामो । हियइच्छियं पएसं, अवस्स अम्हेहि गन्तवं ॥ १५ ॥ सोऊण गमणसज्जे, वणमाला लक्खणं भणइ मुद्धा । पूरेहि मज्झ सुपुरिस !, मणोरहा जे कया पुर्व ॥ १६ ॥ लच्छीहरो पवुत्तो, मा हु विसायस्स देहि अत्ताणं । काऊण अहिट्ठाणं, जाव अहं पडिनियत्तामि ॥ १७ ॥ सम्मत्तवज्जियाणं, ना हवइ गई नराण ससिवयणे! । तमहं वच्चेज पिए!, जइ ! नाऽऽगच्छामि तुह पासं ॥ १८ ॥ अम्हेहि रक्खियब, वयणं तायस्स निच्छियमणेहिं । नवरं पुण गन्तूणं, तत्थ अवस्सं नियत्ते हैं ॥ १९ ॥ सो एवमाइएहिं, वयणसहस्सेहि तत्थ वणमालं । संथावेऊण गओ, सोमित्ती राघवसमीवं ॥ २० ॥ ततो ते सुत्तजणे, सीयाएँ समं विणिग्गया सणियं । अडविपहेण पयट्टा, भुञ्जन्ता तरुवरफलाई ॥ २१ ॥ तं वोलिऊण रणं, पत्ता विसयस्स मज्झयारेऽत्थ । खेमञ्जलीपुरं ते, तत्थुजाणे सुहनिविट्ठा ॥ २२ ॥ तं लक्खणमुवणीयं, आहारं भञ्जिउं जहिच्छाए। समयं जणयसुयाए, चिट्ठइ य हलाउहो गामे ॥ २३ ।। अह लक्खणो अणुज्ज, मग्गेऊणं सहोयरं एत्तो । वरभवणसमाइण्णं, पविसइ खेमञ्जलीनयरं ॥ २४ ॥ तत्थ सभावुल्लवियं, नरस्स सुणिऊण लक्खणो वयणं । को सहइ सत्तिपहरं, नरिन्दमुकं महिलियत्थे ? ॥ २५ ॥ सोऊण वयणमेयं, पुच्छइ लच्छोहरो तयं पुरिसं। को वि हु देइ पहारं ?, का सती ? का व सा महिला ? ॥ २६ ॥ सो भणइ सत्तुदमणो, राया भज्जा य तस्स कणयाभा। जियपउमा वि य धूया, विसकन्ना सा इहं नयरे ॥ २७ ॥ जो सहइ सत्तिपहरं, इमस्स रायस्स कढिणकरमुकं । तस्सेसा जियपउमा, देइ च्चिय किं तुमे न सुयं ? ॥ २८ ॥ सोऊण तं सरोसो, विम्हियहियओ य लक्खणो तुरियं । पविसइ नरिन्दभवणं, तीऍ कए पवरकन्नाए ॥ २९ ॥ इन्दीवरघणसामं, जियसत्त पेच्छिऊण सिरिनिलयं । भणइ य उवणेह लहूं, एयस्स बरासणं एत्तो ॥ ३० ॥ कुछ समय विजयपुर में बिताकर रामने महीधरसे कहा कि हमें हृदयेप्सित प्रदेशमें अवश्य जाना चाहिये । (१५) जानेके लिये सज्ज हैं-ऐसा सुनकर भोली बनमालाने लक्ष्मणसे कहा कि, हे सुपुरुष ! पहलेके किये हुए जो मनोरथ है उन्हें आप पूर्ण करें। (१६). इस पर लक्ष्मण ने कहा कि जबतक मैं वापस लौटता हूँ, तबतक तू अपने आपको दुःखी मत कर । (१७) हे शशिवदने! हे प्रिये ! सम्यक्त्वरहित लोगोंको जो गति होती है वह, यदि मैं तेरे पास न आऊँ तो मेरी हो। (१८) हमें पिताके वचनका दृढ़ताके साथ पालन करना चाहिए। अतः वहाँ जाकर मैं अवश्य वापस आऊँगा। (१९) ऐसे सहस्रों वचनसे वनमालाको सान्त्वना देकर लक्ष्मण रामके पास गया। (२०) इसके बाद जब लोग सोये हुए थे तब सीताक साथ वे धीरेसे निकल गये और वृक्षके फल खाते हुए जंगल के रास्तेसे आगे बढ़े। (२१) उस जंगलको पारकर उस प्रदेशके मध्यमें आये हुए क्षेमांजलिपुरमें वे आ पहुँचे और वहाँ एक उद्यानमें आरामसे बैठे। (२२) लक्ष्मणके द्वारा लाये गये आहारको इच्छानुसार खाकर राम सीताके साथ उस ग्राममें ठहरे। (२३) अपने भाईकी अनुज्ञा मांगकर लक्ष्मणने उत्तम भवनोंसे व्याप्त क्षेमांजलिनगरमें प्रवेश किया । (२४) वहाँ 'स्त्रीके लिए राजाके द्वारा छोड़ी गई शक्तिका प्रहार कौन सह सकता है ? -ऐसे तात्पर्यवाला एक मनुष्य द्वारा कहा गया वचन लक्ष्मणने सुना । (२५) यह वचन सुनकर लक्ष्मणने उस पुरुषसे पूछा कि कौन प्रहार करेगा? शक्तिकी बात क्या है और वह महिला कौन है ? (२६) उसने कहा कि इस नगरमें शत्रदमन राजा और उसकी भायों कनकाभा तथा पुत्री जितपद्मा है। वह विषकन्या है। (२७) जो इस राजाके कठोर हाथोंसे छोड़ी गई शक्तिका प्रहार सहेगा उसे वह यह जितपद्मा देगा। क्या तुमने यह नहीं सुना ? (२८) यह सनकर रोषयक्त किन्तु मनमें विस्मित लक्ष्मणने फौरन ही उस सुन्दर कन्याके लिए राजभवन में प्रवेश किया। (२९) नीलकमलके समान अत्यन्त श्याम वर्णवाले तथा कान्तिक धामरूप उसे देखकर जितशत्रुने कहा कि इसके लिए जल्दो ही उत्तम आसन यहाँ लाओ। (३०) फिर राजाने पूछा कि १. तस्सेयं जियपउमं-प्रत्य० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001272
Book TitlePaumchariyam Part 1
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages432
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size13 MB
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