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________________ ३०.८५] ३०. भामण्डलसंगमविहाणं कम्मस्स उवसमेणं, होऊण कमेण तो कयाणो वि । जाओ वि पिङ्गलो सो, पुत्तो चिय धूमकेउस्स ॥ ७१ ॥ अइभूई वि भमन्तो, संसारे हंसपोयओ जाओ । सेणेसु खज्जमाणो, पडिओ जिणचेइयासन्ने ॥ ७२ ।। सोऊण नमोकार, कीरन्तं साहवेण कालगओ । दसवरिससहस्साऊ, नगन्तरे किन्नरो जाओ ।। ७३ ॥ चुइउं वियब्भनयरे, अह कुण्डलमण्डिओ समुप्पन्नो । अवहरइ पिङ्गलस्स उ, कन्ता मयणाउरो तत्तो ॥ ७४ ॥ जो आसि पुरा विमुची, सो एसो चन्दविक्कमो राया । जा वि य सा अणुकोसा, सा अंसुमई इहं जाया ॥ ७५ ॥ जो चेव कयाणो खलु, सरसा हरिऊण भमइ संसारे । महुपिङ्गलो त्ति समणो, जाओ पुण सुरवरो मरिउं ॥ ७६ ॥ जो वि य सो अइभूई, सो हु तुमं कुण्डलो समुप्पन्नो । एसो ते संबन्धो, परभवजणियस्स कम्मस्स ॥ ७७ ॥ एयं चिय वित्तन्तं, सर्व सुणिऊण दसरहो राया । भामण्डलं कुमार, अवगृहह तिबनेहेण ॥ ७८ ॥ तं पेच्छिऊण सीया, सहोयरं जायबन्धवसिणेहा । पगलन्तअंसुनिवहा, रुयइ च्चिय महुरसद्देण ।। ७९ ॥ चिरकालदरिसणुस्सुय-हियया आलिङ्गिउं समासत्था । सीया वि य कमलमुही, परिओसुन्भिन्नरोमञ्ची ।। ८० ॥ रामेण लक्खणेण य, अन्नेण पि सेसबन्धवजणेणं । आलिङ्गिओ कुमारो, गरुयसिणेहाणुरागेणं ॥ ८१ ॥ तं पणमिऊण समणं, विज्जाहर-भूमिगोयरा सके । हय-गय-जोहसमग्गा, साएयपुरि पविसरन्ति ॥ ८२ ।। भामण्डलेग समयं, संमन्तेऊण दसरहो लेहं । पेसेइ खेयरवरं, आसेण समं पवणवेगं ॥ ८३ ॥ गन्तूण पणमिऊण य, पवणगईणं नराहिवो जणओ । वद्धाविओ य सहसा, पुत्तस्स समागमेणं तु ॥ ८४ ॥ लेहं समप्पियं सो, जणओ सुणिऊण तस्स परितुट्ठो । देइ निययङ्गलम्ग, आहरणविहिं निरवसेसं ॥ ८५ ॥ हुई । (७०) कर्मका उपशम होने पर क्रमशः कयाण भी धूमकेतुके पुत्र पिंगलके रूपमें उत्पन्न हुआ। (७१) अतिभूति भी संसारमें घूमता हुआ हंसका बच्चा हुआ। बाज पक्षियों द्वारा भक्षण किया जाता वह जिनचैत्यके पास गिरा। (७२) साधु द्वारा किये जाते नमस्कारको सुनकर वह मर गया और पर्वतके मध्यमें दशहजार वर्षकी आयुवाला एक किन्नर देव हुआ। (७३) वहाँसे च्युत होकर विदर्भनगरमें कुण्डलमण्डितके रूपमें उत्पन्न उसने मदनातुर होकर पिंगलकी पत्नीका अपहरण किया (७४) जो पहले विमुचि था वहो यह चन्द्रगति राजा है और जो अनुकोशा थी वही यहाँ अंशुमती हुई। (७५) सरसाका अपहरण करके जो कयाण संसारमें भ्रमण करता था वह मधुपिंगल श्रमण हुआ। मर करके वह देव हुआ । (७६) जो वह अतिभूति था वह तुम कुंडलके रूपमें उत्पन्न हुए। परभवमें किए कर्मका तुम्हारा यह वृत्तान्त है। (७७) यह सारा वृत्तान्त सुनकर दशरथ राजाने अत्यन्त स्नेहसे कुमार भामण्डलका आलिंगन किया। (७८) उस सहोदर भाईको देखकर बन्धुस्नेह जिसमें उत्पन्न हुआ है ऐसी सीता आँसू बहाती हुई मधुर स्वरमें रोने लगी। (७९) 'चिरकालके पश्चात् दर्शन होनेसे उत्सुक मनवाली और परितोषके कारण रोमांचित कमलमुखी सीता आलिंगन करके आश्वस्त हुई। (८०) रामने, लक्ष्मणने तया अवशिष्ट दूसरे बन्धुजनोंने अत्यन्त स्नेहानुरागसे कुमारका आलिंगन किया। (१) उन श्रमणको प्रणाम करके घोड़े, हाथी तथा योद्धाओंसे युक्त सभी विद्याधर तथा भूमि पर विचरण करनेवाले मनुष्योंने साकेतपुरी में प्रवेश किया । (२) दशरथने भामण्डलके साथ विचार-विनिमय करके अश्वसे युक्त पवनवेग नामके खेचरवरको लेखके साथ भेजा। (८३) जाकर और प्रणाम कर पवनगतिने पुत्रके समागमको राजा जनकको सहसा बधाई दो। (४) उसने लेख दिया । बह सुनकर हर्ष में आये हुए जनकने अपने शरीर पर धारण किये हुए सब आभूषण उसे दे दिये । (८५) लेखमें लिखे हुए वृत्तान्तके सारसे अवगत राजाका, परिजन एवं भार्याके साथ, उत्सव और मंगलध्वनिसे अत्यन्त अभिनन्दन १. कन्त-प्रत्य.। २. पुष्फबई मु.। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001272
Book TitlePaumchariyam Part 1
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages432
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size13 MB
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