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________________ २४२ पउमचरियं [३०.२५ जस्स मए सा महिला, गहिया सो सुरवरो समुप्पन्नो । तेणाहं अवहरिओ, मुक्को मणिकुण्उले दाउं ॥ २५॥ निवडन्तो ताय ! तुमे, दिट्टो घेत्तण आणिओ इहई । परिवडिओ कमेणं, पत्तो विजाहरत्तं च ॥ २६ ॥ सुणिऊण पगयमेयं, चन्दगई सह जणेण विम्हइओ । धिद्धिकारमुहरवो, संसारठि विनिन्देइ ॥ २७॥ दाऊण निययरज्ज, पुत्तस्स गओ सपरियणाइण्णो । मुणिसबभूयसरणं, राया संसारपरिभीओ ॥ २८ ॥ दिवो महिन्दउदए, उज्जाणे वन्दिओ समणसीहो। भणिओ य मज्झ वयण, भयवं ! निसुणेहि एगमणो ॥ २९ ॥ तुज्झ पसाएण अहं, जिणदिक्खं गेण्हिऊण कयनियमो। इच्छामि विणिग्गन्तुं, इमाउ भवपञ्जरघराओ ॥ ३० ॥ भणिओ य एवमेयं, मुणिणा वच्छल्लभावहियएणं । भामण्डलेण वि तओ, निक्खमणमहो कओ विउलो ॥ ३१ ॥ जणयमहारायसुओ, जयउ पहामण्डलो वरकुमारो । बन्दिजणुग्घुट्ठरवो, वित्थरिऊणं समाढत्तो ॥ ३२ ॥ भवणे विमुक्कनिद्दा, सीया आयणिऊण तं सदं । चिन्तेइ कोवि अन्नो, जणओ जस्सेस पुत्तवरो ॥ ३३ ॥ सूयाहरम्मि जो सो, मह भाया अवहिओ वइरिएणं । कम्मस्स उवसमेणं, किं व इह सो समल्लीणो? ॥ ३४ ॥ तो जणयरायदुहिया, रोवन्ती भणइ राघवो वयणं । नटुं हियं च भद्दे ! न सोइयवं बुहजणेणं ॥ ३५॥ एवं पभायसमए, उच्चलिओ दसरहो मुणिसयासं । जुवइ-बल-पुत्तसहिओ, कमेण पत्तो तमुज्जाणं ॥ ॥ ३६ ॥ पेच्छइ य तत्थ राया, सेन्नं विज्जाहराण वित्थिण्णं । उपसोहिया य भूमी, धय-तोरण-वेजयन्तीहिं ॥ ३७ ॥ तं वन्दिऊण साहु, उबविट्ठो दसरहो सह बलेणं । भामण्डलो वि तत्तो, चिट्ठइ मुणिपायमूलन्थो ॥ ३८ ॥ विज्जाहरा य मणुया, आसन्ने मुणिवरा जणियतोसा । निसुणन्ति तम्गयमणा. गुरुवयणविणिग्गयं धम्मं ॥ ३९ ॥ मैंने उठा लिया था वह देव रूपसे उत्पन्न हुआ। उसने मेरा अपहरण किया और मणिकुण्डल देकर छोड़ दिया। (२५) उस समय गिरते हुए मुझे आपने देखा। फिर ग्रहण करके आप यहाँ लाये। क्रमसे बढ़ता हुआ मैं विद्याधरताको प्राप्त हुआ। (२६) यह वृत्तान्त सुनकर लोगोंके साथ चन्द्रगति मुँहसे धिक्कारका शब्द कहता हुआ संसारकी स्थितिकी निन्दा करने लगा। (२७) अपना राज्य पुत्रको देकर संसारसे अत्यन्त भयभीत राजा चन्द्रगति अपने परिजनोंसे युक्त हो सर्वभूत. शरण नामक मुनिके पास गया। (२८) महेन्द्रोदय उद्यानमें उन श्रमण सिंहको देखा, वन्दन किया और कहा कि, हे भगवन् ! आप ध्यानसे मेरा कहना सुनें । (२९) आपके अनुग्रहसे कृतनिश्चय मैं जिनदीक्षा अंगीकार करके इस संसाररूपी पिंजरेमेंसे निकल जाना चाहता हूँ । (३०) हृदयमें वात्सल्यभाव धारण किये हुए मुनिने कहा कि ऐसा हो। भामण्डलने भी उस समय बड़ा भारी निष्क्रमण-महोत्सव मनाया। (३१) 'जनक महाराजके पुत्र कुमारवर भामण्डलकी जय हो'-ऐसी बन्दीजनों द्वारा उद्घोषित ध्वनि चारों ओर फैल गई । (३२) अपने भवनमें उस ध्वनिको सुनकर नींद टूटने पर सीता सोचने लगी कि यह कोई दूसरा ही जनक है जिसका कि यह पुत्र है । (३३) अथवा सूतिकागृहमेंसे मेरे जिस भाईका अपहरण शत्रुने किया था वही कमका उपशम होने पर यहाँ आया है। (३४) तब रोती हुई सीताको रामने कहा कि, हे भद्रे ! नष्ट और अपहृत सम्बन्धी वचन समझदारको नहीं सुनने चाहिए । (३५) सुबह के समय युवतियों, सैन्य तथा पुत्रोंके साथ दशरथराजा मुनिके पास चले और अनुक्रमसे उस उद्यानमें आ पहुँचे । (३६) वहाँ राजाने विद्याधरोंकी विशाल सेना तथा ध्वज. तोरण एवं पताकाओंसे शोभित भूमि देखी । (३७) उन साधुको वन्दन करके सैन्यके साथ दशरथ बैठा। उधर भामण्डल भी मुनिके चरणों में बैठा हुआ था। (३८) विद्याधर, मनुष्य और समीपमें बैठे हुए मुनिवर सन्तोषके साथ एकचित्तसे गुरुके मुखमेंसे निकलनेवाला धर्म सुनने लगे कि यहाँ आया है। (३४,९२३) अथवा सूतिकागृह सुनकर नींद टूटने पर सीतासो बन्दीजनों द्वारा १. रात्तो-प्रत्य। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001272
Book TitlePaumchariyam Part 1
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages432
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size13 MB
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