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________________ ३०. २४] ३०. भामण्डलसंगम विहाणं २४१ पुणवि कहेइ मित्तो, सर्व धणुयाइयं जहावत् । रामेण निवइमज्झे. सीया विभवेण परिणीया ॥९॥ नीया साएयपुरी, रामेण महाबलेण सा कन्ना । इन्दो वि पुब विहियं, कुमार ! न य अन्नहा कुणइ ॥ १०॥ सुणिऊण वयणमेयं, रुट्ठो भामण्डलो भणइ एवं । विज्जाहरत्तणं मे, निरन्थयं तीऍ रहियस्स ॥ ११ ॥ एव भणिऊण तो सो, सन्नद्धो निययसाहणसमम्गो । अह जाइउं पवत्तो, साएयपुरि सवडहुत्तो ॥ १२ ॥ तं पेच्छिऊण सहसा, वियब्भनयरं नहेण वच्चन्तो । संभरियपुबजम्मो. मुच्छावसविम्भलो जाओ ॥ १३ ॥ नीओ य निययभवणं, भडेहि अहियं समाउलमणेहिं । चन्दणजलोल्लियङ्गो, पडिबुद्धो तक्खणं चेव ॥ १४ ॥ भणिओ चन्दगईणं, पुत्तय ! किं कारणं गओ मुच्छं ? । एयं कहेहि मझं, मयणावत्थं पमोत्तणं ॥ १५ ॥ लज्जाओणमियसिरो, भणइ य भामण्डलो विरुद्धं मे । परिचिन्तियं महाजस ! घणमोहपसङ्गजोएणं ॥ १६ ॥ जीसे पडम्मि रूवं, आलिहियं नारएण निक्खुत्तं । सा मज्झ निययबहिणी, एक्कोयरगन्भसंभूया ॥ १७ ॥ भामण्डलपूर्वभवःभणइ पुणो चन्दगई, पुत्तय ! साहेहि परिफुडं एयं । कह तुज्झ निययबहिणी सा कन्ना ? कस्स वा दुहिया ? ॥ १८ ॥ सो भणइ ताय ! निसुणसु, मह चरिय पुब जम्मसंबन्धं । अस्थि वियब्भा नयरी, महिन्दगिरिसकडे दुग्गे ॥ १९ ॥ तत्थाहं आसि पुरा, अह कुण्डलमण्डिओ नरवरिन्दो । भज्जा विप्पस्स हिया, तया मए कामवसएणं ॥ २० ॥ अणरण्णनरवईणं, बद्धो हैं छुट्टिऊण हिण्डन्तो । पेच्छामि तत्थ समणं, तवलच्छिविभूसियसरीरं ॥ २१ ॥ तस्समणषायमूले, धम्म सुणिऊण भावियमणेणं । गहियं अणामिसवयं, सद्धम्मे मन्दसत्तेणं ॥ २२ ॥ जिणवरधम्मस्स इम, माहप्पं एरिसं अहो लोए । घणपावकम्मकारी, तह वि अहं दुग्गइं न गओ ॥ २३ ।। नियमेण संजमेण य, अणन्नदिद्वित्तणेण मरिऊणं । जाओ य विदेहाए, समय अन्नेण जीवेणं ॥ २४ ॥ रामने वैभवके साथ विवाह किया है। महाबली राम सीताको साकेतपुरीमें ले गये हैं। इन्द्र भी पूर्वकृत कर्मको अन्यथा नहीं कर सकता । (९-१०) ऐसा कथन सुनकर रुष्ट भामण्डलने कहा कि तो फिर उससे रहित मेरे लिए विद्याधरता भी निरर्थक है। (११) ऐसा कहकर वह अपनी सारी सेनाके साथ तैयार हो गया। इसके बाद वह साकेतपुरीकी ओर चल पड़ा । (१२) आकाशमार्गसे जाता हुआ वह मार्गमें विदर्भनगरको देखकर पूर्वजन्मका स्मरण होने पर सहसा विह्वल हो मूर्छावश हो गया । (१३) अत्यन्त व्याकुल मनवाले सुभटों द्वारा वह अपने भवनमें लाया गया। चन्दनका जल शरीर पर सिंचन करनेसे वह तत्काल ही होशमें आया । (१४) चन्द्रगतिने पृछा कि, हे पुत्र ! मदनावस्थाका त्याग करके तू क्यों मूञ्छित हो गया था, यह मुझे कह । (१५) लज्जासे अवनत सिरवाले भामण्डलने कहा कि, हे महाशय ! प्रगाढ़ मोहके कारण मैंने अनुचित विचार किया है । (१६) नारदने जिसको विशिष्ट चित्रपटमें अंकित किया था वह तो मेरी एक ही गर्भसे उत्पन्न सहोदरा बहन है । (१७) इसपर चन्द्रगतिने पुनः पूछा कि, हे पुत्र ! तू साफ-साफ कह कि वह कन्या तेरी अपनी बहन कैसे है तथा वह किसकी लड़को है ? (१८) उसने कहा कि, हे तात! आप मेरे पूर्वजन्मका वृत्तान्त सुनें। महेन्द्रगिरिसे घिरी हुई और दुर्गम ऐसी विदर्भनगरी है। (१९) पूर्वमें मैं वहाँ कुण्डलमण्डित नामका राजा था। उस समय कामके वशीभूत मैंने वहाँ एक ब्राह्मणकी भार्याका अपहरण किया था । (२०) अनरण्य राजाके द्वारा मैं पकड़ा गया था। छूटने पर घूमते हुए मैंने तपरूपी लक्ष्मीसे विभूषित शरीरवाले एक श्रमणको देखा । (२१) उस मुनिके चरणोंमें भावपूर्वक धर्म सुनकर मन्द सामर्थ्यवाले मैंने सद्धर्ममें अनामिषव्रत (मांसभक्षण न करनेका व्रत) अंगीकार किया । (२२) अहो! जिनवरके धर्मका लोकमें ऐसा तो माहात्म्य है कि अत्यन्त पाप करनेवाला होने पर भी मैं दुर्गतिमें नहीं गया । (२३) नियम, संयम एवं अनन्यदृष्टिताके कारण मरकर मैं दूसरे जीवके साथ विदेहासे उत्पन्न हुआ। (२४) जिसकी महिलाको १. पुरि-प्रत्य० । २. भइणी-प्रत्य.। ३. संकुले-प्रत्य० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001272
Book TitlePaumchariyam Part 1
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages432
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size13 MB
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