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________________ २४. केगइपरिणयण-वरसंपायणवण्णणं कैकयोसस्स भमन्तस्स तया, जं वत्तं तें सुणेहि मगहवई ! । तं ते कहेमि सबं, सुणेहि इह अवहिओ होउं ॥ १ ॥ उत्तरदिसाएँ नयरं, इह कोउयमङ्गलं मणभिरामं । तत्थाऽऽसी नरवसभो, गुणाहिओ सुहमई नाम ॥ २॥ महिला से पुहइसिरी, धूया वि य केगई पवरकन्ना । पुत्तो य दोणमेहो, जोवणलायण्णपडिपुण्णो ॥ ३ ॥ कन्तिपडिपुण्णसोहा, रूवाईसयगुणेहि उववेया । विविहकला-ऽऽगमकुसला, सा कन्ना बुद्धिसारेणं ॥ ४ ॥ नट्टै सलक्खणगुणं, गन्धर्व सरविहत्तिसंजुत्तं । जाणइ आहरणविही, चउबिहं चेव सविसेसं ॥ ५ ॥ विजं सभेयभिन्नं, लिविसत्थं सद्दलक्खणं सयलं । गयतुरयलक्खणं चिय, गणिय छन्दं निमित्तं च ॥ ६ ॥ आलेक्खं लेप्पमयं, पत्तच्छेज च भोयणविही य । बहुविहरयणविसेसं, कुसुमविसेसं सभेयजुयं ॥ ७ ॥ विविहा य गन्धजुत्ती, लोयन्नाणं तहेव सविसेसं । एयासु य अन्नासु य, कलासु कन्ना समुबहइ ॥ ८ ॥ दट्टण नरवरिन्दो, कन्नं नवजोवणं विचिन्तेइ । को से वरो णु सरिसो, पुहइयले होहिइ इमाए? ॥ ९ ॥ नो से मणस्स इट्ठो, तं गिण्हउ वा सयंवरा कन्ना । एव भणिऊग सहसा, नराहिवा मेलिया सबे ॥ १० ॥ ते च्चिय तहिं समन्ता, दसरह-जणया तओ मिलेऊणं । अन्नोन्नमुणियनिहसा, दो वि तहिं चेव संपत्ता ॥ ११ ॥ मञ्चेसु य उवविट्टा, हरिवाहणमाइया नरवरिन्दा । सयलपरिवारसहिया, आहरणविभूसियसरीरा ॥ १२ ॥ सा वि तहिं वरकन्ना, सबालंकारसुकयनेवच्छा । मङ्गलसओवगीया, रायसमुदं समोइण्णा ॥ १३ ॥ पासेसु चामराई, उरिं छत्तं समोत्तिओऊलं । पुरओ य महातूरं, वज्जइ घणसरिसनिग्योसं ॥ १४ ॥ लीलाएँ संचरन्ती, नियन्ति तं पत्थिवा अणिमिसच्छा । उम्माइया खणेणं, बहवे आयल्लयं पत्ता ॥ १५ ॥ २४. कैकयीका विवाह और उसके द्वारा वर-सम्पादन हे मगधपति ! उस समय घूमते हुए उसका जो हुआ वह सुनो। मैं वह सब कहता हूँ, अतः ध्यान लगाकर इसे तुम सुनो । (१) उत्तर दिशामें कौतुकमंगल नामका एक मनोहर नगर है। वहाँ अधिक गुगवाला शुभमति नामका एक राजा रहता था । (२) उसकी पत्नी पृथ्वीश्री और सुन्दर पुत्री कैकयी थी तथा यौवन एवं लावण्यसे परिपूर्ण द्रोणमेघ पुत्र था। (३) बुद्धिके प्रकर्षके साथ ही साथ वह कन्या कान्तिसे परिपूर्ण शोभावाली, रूपादि सैकड़ों गुणोंसे युक्त तथा विविध कलाओं और शास्त्रोंमें कुशल थी । (४) लक्षण और गुणोंसे युक्त नृत्य, स्वरविभक्ति (आरोह अवरोह) से युक्त गानविद्या और विशेष रूपसे चार प्रकारकी आभरणविधि बह जानती थी। (५) भेद-प्रभेदयुक्त विद्या, लिपिशास्त्र, समग्र शब्दलक्षण (व्याकरण), हाथी एवं घोड़ेके लक्षण, गणित, छन्द, निमित्तशास्त्र, दीवारके ऊपर चित्र बनानेकी आलेख्य विद्या, पत्रच्छेद्य, भोजनविधि, बहुविध रत्नोंकी परीक्षा, अनेक प्रकारके भेदसे युक्त पुष्पोंको परीक्षा, विविध प्रकारोंकी गन्धोंका आयोजन तथा लोकका विशिष्ट ज्ञान ये तथा दूसरी कलाएँ वह कन्या धारण करती थी। (५-८) अभिनव यौवनसे सम्पन्न उस कन्याको देखकर राजा सोचने लगा कि इस पृथ्वीतल पर इस कन्याके योग्य कौन वर होगा? (९) जो उसके अपने मनमें इष्ट हो उसे स्वयं वरण करनेवाली यह कन्या ग्रहण करे-ऐसा कहकर उसने सहसा सब राजाओंको इकट्ठा किया। (१०) चारों ओरसे वे भी वहाँ जमा हुये एक-दूसरेका परिचय प्राप्त किए हुए दशरथ एवं जनक दोनों भी वहाँ आये। (११) आभूषणोंसे विभूषित शरीरवाले इरिवाहन आदि राजा सम्पूर्ण परिवारके साथ मंचों पर बैठ गये । (१२) सब अलंकारों से भूषित और वस्रोंसे भलीभाँति सजी हुई तथा सैकड़ों मंगल गीतों द्वारा गाई जाती वह सुन्दर कन्या उस राजसमुद्रमें उतरी। (१३) उसके दोनों पार्थो में चामर डुल रहे थे, ऊपर मोतियोंसे व्याप्त छत्र था और आगे बादलके समान ध्वनि करनेवाला बढ़ा वाद्य बज रहा था । (१४) लीलापूर्वक गमन करती हुई उसे अपलक नेत्रोंसे देखते हुए राजा क्षणभरमें पागल-से हो गये। बहुतसे तो बेचैनीका अनुभव करने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001272
Book TitlePaumchariyam Part 1
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages432
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size13 MB
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