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________________ २१४ पउमचरियं [२४.१६मंयहरयदाविए ते. सवे वि नराहिवे पलोएउं । बालाएँ कया माला, सिग्धं कण्ठे दसरहस्स ॥ १६ ॥ आलइयकण्ठमाल, दट्टणं दसरहं जणो भणइ । रूवेण अणन्नसमो, नवरं तु अणायकुल-वंसो ॥ १७ ॥ केइत्थ नरवरिन्दा, भणन्ति जोगो बरो सुलायण्णो । गहिओ कन्नाएँ इमो, पुबकम्माणुजोएणं ॥१८॥ अन्ने भणन्ति रुट्ठा. देसियपुरिसस्स अमुणियकुलस्स । एयस्स हरह कन्न, सिग्घं चिय मा चिरावेह ॥१९॥ अह ते खणेण सबे. सन्नद्धे पेच्छिऊण नरवसभे । तो सुहमई नरिन्दो, वयणं नामाउयं भणइ ॥ २० ॥ नाव य सरेहि समरे, धाडेमि इमे अहं नरवरिन्दे । ताव य कन्नाएँ समं, पविससु नयरं रहारूढो ।॥ २१ ॥ जं एव समालत्तो, भणइ तओ माम! किं विसण्णो सि? | थोवन्तरेण पेच्छयु, भज्जन्ते रणमुहे एए ॥ २२ ॥ एव भणिऊण तो सो, सन्नद्धो रहवरं समारूढो । पग्गहकरावलग्गा, धुरासणे केगई तस्स ॥ २३ ॥ जस्स ससिमण्डलनिभं, दीसइ छत्तं भडाण मज्झम्मि । एयस्स तुरियवेयं, वाहेहि रहं विसालच्छि! ॥ २४ ॥ एव भणियाएँ सिग्धं, ओसियधयदण्डमण्डणाडोवो । तह वाहिओ रहवरो, जह खुहियं रिउबलं सयलं ॥ २५ ॥ जुज्झन्तेण रणमुहे, सरेहि परिहत्थदच्छमुक्केहि । भग्गा नासन्ति भडा, अन्नन्नं चेव लङ्घन्ता ॥ २६ ॥ हेमप्पमेण सबे, निययभडा चोइया पडिणियत्ता । मुञ्चन्ता सरनिवहं, आवडिया दसरहं समरे ॥ २७ ॥ हत्थोसु रहवरेसु य, तुरङ्गजोहेसु वेढिओ समरे । जुज्झइ अविसण्णमणो, मुश्चन्तो आउहसयाई ॥ २८ ॥ चउसु वि दिसासु सिग्धं, भमइ च्चिय दसरहो रहारूढो । गयवर तुरङ्ग-जोहे, घायन्तो सत्थपहरेहिं ॥ २९ ॥ दट्टण भउबिग्गं, सेन्नं हेमप्पभो नरवरिन्दो। पुरओ अवडिओ दसरहस्स परिबद्धतोणीरो ॥ ३० ॥ छिन्नकवया-ऽऽयवत्तो, सरेहि हेमप्पहो कओ विरहो । सिग्धं रणमज्झाओ, सेन्नेण समं समोसरइ ॥ ३१ ॥ लगे । (१५) प्रतीहारी द्वारा निवेदित उन सब राजाओंको देखकर उस कन्याने फौरन ही दशरथके गलेमें माला डाली। (१६) योग्य स्थानमें आरोपित कण्ठमालावाले दशरथको देखकर लोग कहने लगे कि रूपसे तो यह अनन्यसदृश है, केवल इसका कुल एवं वंश ही अज्ञात है। (१७) वहाँ आये हुए राजाओंमेंसे कई राजा कहने लगे कि इस कन्याने पूर्वकर्मके योगसे यह लावण्ययुक्त योग्य वर प्राप्त किया है। (१८) दूसरे रुष्ट होकर कहने लगे कि अज्ञात कुलवाले इस प्राकृत (सामान्य) पुरुषको कन्याको शीघ्र ही हर लो। देर मत करो। (१९) क्षणभरमें ही उन राजाओंको शस्त्रसज्ज देख शुभमति राजाने दामादसे कहा कि जबतक मैं इन राजाओंको युद्धमेंसे बाणोंके द्वारा भगाता नहीं हूँ तबतक तुम कन्याके साथ रथमें आरूढ़ होकर नगरमें प्रवेश करो। (२०-१) इस तरह कहने पर वह कहने लगा कि मेरे लिए आप दुःखी क्यों हैं ? थोड़ी देरके बाद ही आप इन्हें युद्धक्षेत्रमेंसे भागते हुए देखोगे । (२२) ऐसा कहकर वह सज्ज हो रथ पर सवार हुआ। उस रथकी धुराके आसन पर हाथमें लगाम धारण करके कैकयी बैठी। (२३) हे विशालाक्षी! सुभटोंके बीच जिसका चन्द्रमंडलके समान छत्र दिखाई पड़ता है उसके समीप तीव्र वेगवाले रयको ले जाओ। (२४) इस प्रकार कहने पर उसने ऊपर उठे हुए ध्वजदण्ड तथा मण्डपके आटोपवाले रथको ऐसा चलाया कि सारा शत्रुसैन्य क्षुब्ध हो गया । (२५) युद्ध में लड़ते हुए उसके द्वारा पूर्ण दक्षताके साथ फेंके गये बाणोंसे एक-दूसरेका उल्लंघन करते हुए सुभट भाग खड़े हुए और नष्ट हुए । (२६) हेमप्रभ द्वारा प्रेरित उसके सब भट वापस लौटे और युद्धक्षेत्रमें बाणोंको छोड़ते हुए उन्होंने दशरथ पर आक्रमण किया । (२७) हाथी, रथ, घोड़े तथा योद्धाओंसे रणभूमिमें घिरा हुआ वह मनमें खिन्न हुए बिना ही सैकड़ों आयुधोंको छोड़ता हुआ युद्ध करने लगा । (२८) हाथी, घोड़े और योद्धाओंका शस्त्रोंके प्रहारसे विनाश करता हुमा दशरथ रथमें आरूढ़ हो चारों दिशाओंमें जल्दी-जल्दी घूमने लगा। (२९) भयसे उद्विग्न सैन्यको देखकर जिसने तरकश बाँधा है ऐसा हेमप्रभ राजा दशरथके आगे उपस्थित हुआ। (३०) बाणोंसे जिसका कवच और छत्र छिन्नभिन्न कर दिया गया है ऐसा हेमप्रभ रथसे च्युत हो शीघ्र ही रणभूमिमेंसे सैन्यके साथ लौट गया । (३१) हेमप्रभके भागने १. महत्तरकदर्शितान् : २. सामि-प्रत्य० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001272
Book TitlePaumchariyam Part 1
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages432
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size13 MB
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