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पउमचरियं
[२०. १९१०
समणो वसुंधरो च्चिय, सिरिचन्दो हवइ पच्छिमो सङ्खो । एयाइँ पुबजम्मे, बलदेवमुणीण नामाणि ॥ १९१ ॥ अणयारो मुणिवसभो, हवइ तओ समणसीहनामो य । तइओ य सुबयरिसी, वसभो य तहा पयापालो ॥ १९२ ॥ अह दमधरो सुधम्मो, सायरघोसो य विदुमाभो य । एए आसि परभवे, गुरवो च्चिय सीरधारीणं ॥ १९३ ॥ तिण्णि य अणुत्तराओ, सहसाराओ हवन्ति तिण्णेव । दोणि य बम्भाउ चुया, एको पुण दसमकप्पाओ ॥ १९४ ॥ एएसु चुया जाया, बलदेवमुणी तबोधरा सके । एत्तो कहेमि सेणिय! जणणीओ ताण इह जम्मे ॥ १९५ ।। भद्दा सुभद्दनामा, सुदरिसणा सुप्पभा तहा विजया । अन्ना वि वेजयन्ती, सीला अवराइया चेव ॥ १९६ ॥ सबन्ते पुण एत्तो, भणिया वि हु रोहिणी पवररूवा । एयाओ आसि एत्थं, जणणीओ सीरधारीणं ॥ १९७ ॥ सेयंसाइ तिविट्ट , वंदन्ति य केसवा जिणा पञ्च । पुरिसवरपुण्डरीओ, अर-मल्लिजिगन्तरे आसो ॥ १९८ ॥ मल्लि-मुणिसुबयाणं, दत्तो वि य केसवो समक्खाओ । सुवय-नमीण मज्झे, केसी पुण लक्खणो हवइ ॥ १९९ ।। वन्दइ अरिद्वनेमी, अपच्छिमो केसवो बलसमग्गो । एत्तो पडिसत्तणं, भगामि नयराणि सबाणि ॥ २०० ॥
प्रतिवासुदेवास्तसम्बद्धानि विविधानि स्थानकानि च अलकापुरि विजयपुरं, नन्दणनयरं हवइ पुहइपुरं । एत्तो य हरिपुरं पुण, सूरपुरं सीहनामं च ॥ २०१ ॥ लङ्कापुरी य भणिया, रायगिहं चेव होइ नायब । एयाणि आसि सेणिय ! पुराणि पडिवासुदेवाणं ॥ २०२ ॥ आसम्गीवो तारग, मेरग तत्तो य हवइ महुकेडो । हवइ निमुम्भो य वली, पल्हाओ रावणो चेव ॥ २०३ ॥ नवमो य जरासन्धू, एए पडिकेसवा कमेणं तु । इह भारहम्मि वासे, आसी पडिसत्त केसीणं ॥ २०४॥ पढमो सुवण्णकुम्भो, कित्तिधरो तह सुधम्मनामो य । हरिणसो य कित्ती, हवइ गुमित्तो भुवणसोहो ॥ २०५॥ भणिओ य सुबयमुणी, सिद्धत्थो पच्छिमो हवइ एत्तो । बलदेवाणं एए, आसि गुरु इह भवे सबै ॥ २०६ ॥
अट्टेव य बलदेवा, सिवमयलमणुत्तरं गई पत्ता । एको य बम्भलोए, अपच्छिमो चेव उप्पन्नो ॥ २०७ ॥ और अन्तिम शंख-ये पूर्वजन्ममें बलदेवोंके नाम हैं । (१९०-१९१) अनगार नामके मुनिवृषभ, उनके बाद श्रमणसिंह हुए। तीसरे सुत्रत ऋपि, तब वृषभ तथा प्रजापाल, तब दमधर, सुधर्मा, सागरघोष और विठ्ठमाभ-ये पूर्वभवमें हलधरोंके गुरु थे। (१९२-१९३) तीन अनुत्तरमेंसे, तीन सहस्रारमेंसे, दो ब्रह्मलोकमेंसे और एक दशम कल्पमेंसेच्युत होकर तपको धारण करनेवाले सब बलदेव पैदा हुए थे। हे श्रेणिक ! अब मैं इस जन्ममें उनकी जो माताएँ थीं उनके नाम कहता हूँ। (१९४१९५) भद्रा, सुभद्रा, सुदर्शना, सुप्रभा, विजया, वैजयन्ती, शीला, अपराजिता और सबके अन्त में उत्कृष्ट रूपवाली रोहिणी कही गई है। ये इस जन्ममें हलधरोंकी माताएँ थीं । (१६६-१९७)
श्रेयांस आदि जिनेश्वरोंको त्रिपृष्ठ आदि पाँच केशव वन्दन करते थे, अर्थात् उनके समयमें वे पाँच हुए। पुरुषवर पुण्डरीक श्रीअरनाथ तथा श्रीमल्लिके बीचके समयमें हुआ। (१९८) श्रीमल्लि और श्रीमुनिसुव्रतस्वामीके बीचके कालमें दत्त केशव कहा गया है। श्रीमुनिसुव्रतस्वामी और श्रीनमिनाथके बीचके समयमें केशी लक्ष्मण हुआ है। (१९९) बलसम्पन्न अन्तिम केशवने अरिष्टनेमिको बन्दन किया है।
अब मैं प्रतिशत्रुओंके सब नगर कहता हूँ । (२००) अलकापुरी, विजयपुर, नन्दननगर, पृथ्वीपुर, हरिपुर, सूरपुर, सिंहपुर, लंकापुरी और राजगृह-हे श्रेणिक! ये प्रतिवासुदेवोंके नगर थे । (२०१-२०२) अश्वग्रीव, तारक, मेरक, मधुकैटभ, निशुम्भ, बलि, प्रह्लाद, रावण और नवाँ जरासन्ध-इस भारतवर्षमें ये प्रतिवासुदेव क्रमशः वासुदेवोंके प्रतिशत्रु थे। (२०३-२०४) प्रथम सुवर्णकुम्भ. उसके पश्चात् कीर्तिधर, सुधर्मा, हरिणांकुश, कीर्ति, सुमित्र, भुवनशोभ, सुव्रत और अन्तिम सिद्धार्थ-ये सब इस भवमें बलदेवोंके गुरु थे। (२०५.२०६) आठों बलदेव अचल और अनुत्तर ऐसी मोक्षगतिमें गये हैं।
काति, सुमित्र, भुवनशोभ, सुबत आता थे।
हला ही एक ब्रह्मलोकमें उत्पन्न हुआगरु थे । (२०५:२०६) आठों बल
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