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________________ १९७ २१. सुव्वय-वजबाहु-कित्तिधरमाहप्पवगण एवं कम्ममहावणं सुविउलं वाहीलयालिङ्गिय, सबं झाणमहाणलेण डहिउं केइत्थ मोक्खं गया । अन्ने थेवभवावसेसकलसा कप्पालएसु ट्ठिया, भवा धम्मफलेण होन्ति विमला निच्चं सुहावासया ॥ २०८ ॥ ।। इय पउमचरिए तित्थयराइभवाणुकित्तणो नाम बोसइमो उद्देसओ समत्तो ।। . सुषय-वज्जयाहु-कित्तिधरमाहप्पवण्णणं हरिवंशोत्पत्तिःअट्ठमरामस्स तुम, सेणिय! निसुणेहि ताव संचध । कुल-वंसनिग्गमं ते, कहेमि सवं जहावत्तं ॥ १ ॥ सीयलजिणस्स तित्थे, सुमुहो नामेण आसि महिपालो । कोसम्बीनयरीए, तत्थेव य वीरयकुविन्दो ॥ २ ॥ हरिऊण तस्स महिलं, वणमालं नाम नरवई तत्थ । भुञ्जइ भोगसमिद्धं, रईऍ समयं अणङ्गो छ ॥ ३ ॥ अह अन्नया नरिन्दो, फासुयदाणं मुणिस्स दाऊणं । असणिहओ उववन्नो, महिलासहिओ य हरिवासे ॥ ४ ॥ कन्ताविओयदुहिओ, पोट्टिलयमुणिस्स पायमूलम्मि । घेत्तण य पबज्ज, कालगओ सुरवरो जाओ ॥ ५ ॥ अवहिविसएण नाउं, देवो हरिवाससंभवं मिहुणं । अवहरिऊण य तुरियं, चम्पानयरम्मि आणेइ ॥ ६ ॥ हरिवाससमुष्पन्नो, जेणं हरिऊण आणिओ इहई । तेणं चिय हरिराया, विक्खाओ तिहुयणे जाओ ।। ७ ।। जाओ च्चिय तस्स सुओ, महागिरी नाम रूवसंपन्नो। तम्स वि कमेण पुत्तो, उप्पन्नो हिमगिरी नामं ॥ ८॥ वसुगिरि इन्दगिरी वि य, जाओ च्चिय पत्थिवो रयणमाली । राया वि य संभूओ, पत्तो पुण भूयदेवो य ॥ ९ ॥ इस प्रकार व्याधिरूपी लताओंसे आलिंगित कर्मरूपी समग्र विशाल महावनको ध्यानरूपी महानलसे जलाकर यहाँसे कुछ मोक्षमें गये हैं और अन्य कुछ थोड़े जन्मों तक कालुष्य बाकी रहनेसे स्वर्ग:भवनोंमें ठहरे हैं। इस प्रकार धर्मके फलस्वरूप भव्यजन विमल हो सुखपूर्ण निवासवाले होते हैं। (२०८) ॥ पद्मचरितमें तीर्थंकर आदिके भवोंका अनुकीर्तन नामक बीसवाँ उद्देशक समाप्त हुआ ॥ २१. सुव्रत, वबाहु एवं कीर्तिधरका माहात्म्य वर्णन हे श्रेणिक ! अब तुम अष्टम रामका वृत्तान्त सुनो। कुल, वंश एवं जन्म सब कुछ जैसा हुआ था वैसा मैं कहता हूँ (१) श्रीशीतलनाथ जिनेश्वरके तीर्थमें कौशाम्बी नगरीमें सुमुख नामका राजा था। वहीं वीरक नामका एक जुलाहा रहता था। (२) उस वीरककी बनमाला नामकी खोका अपहरण करके राजा वहाँ, जिस तरह रतिके साथ कामदेव सुखोपभोग करता है उस तरह, उसके साथ समृद्ध भोग भोगने लगा । (३) एक दिन राजाने मुनिको निर्दोष आहार दिया। बिजली द्वारा मारा गया वह उस स्त्रीके साथ हरिवर्षमें उत्पन्न हुआ। (४) ____ अपनी पत्नीके वियोगसे दुःखित वीरकने पोट्टिल मुनिके चरणों में दीक्षा अंगीकार की। मरने पर वह देव हुआ। (५) अवधिज्ञानके उपयोग द्वारा हरिवर्षमें उत्पन्न उस युगलको जानकर उसका जल्दी अपहरण किया और चम्पानगरीमें लाया । (६) चूंकि हरिवर्षमें उत्पन्न वह अपहरण करके यहाँ लाया गया था, अतः तीनों लोकोंमें हरिराजाके नामसे यह विख्यात हुआ। उसे महागिरि नामका एक रूपसम्पन्न पुत्र हुआ। अनुक्रमसे उसे भी हिमगिरि नामका पुत्र उत्पन्न हुआ। (८) फिर बसुगिरि और इन्द्रगिरि हुए। उनके बाद रत्नमाली नामका राजा हुआ। उसके बाद सम्भूत राजा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001272
Book TitlePaumchariyam Part 1
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages432
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size13 MB
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