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२०. १९०] २०. तित्थयर-चक्कवट्टीबलदेवाइभवाइट्ठाणकित्तणं
१९५ अच्चन्तविसयसङ्गो, तह य विओगो विरूवणा परमा । एयाइ नियाणाई, केसीणं आसि पुवभवे ॥ १७४ ॥ तम्हा सनियाणतवं, मा कुणह खणं पि मूढभावेणं । संसारवड्डणकर, आमूलं सबदुक्खाणं ॥ १७५ ॥ संभूय संभवो वि य, सुदरिसणो तह हवइ सेयंसो । अइभूई वसुभूई, तह चेव य घोससेणरिसी ॥ १७६ ॥ एत्तो य'परं उयही, दुमसेणो चेव मुणिवरा एए । गुरवो आसि परभवे, कमेण इह वासुदेवाणं ॥ १७७ ।। कप्पो य महासुक्को, पाणयकप्पो य अच्चुओ चेव । सहसारो सोधम्मो, माहिन्दो चेव सोधम्मो ॥ १७८ ॥ कप्पो सणंकुमारो, तह य महसुक्कनामहेओ य । एएसु चुया सन्ता, उप्पन्ना केसवा सबे ॥ १७९ ॥ पोयणपुर वारिपुरं, महापुरं सन्तिनामनयरं च । चक्कपुरं च कुसम्गं, मिहिला साएय महुरा य ॥ १८० ॥ एएसु य नयरेसुं, उप्पन्ना केसवा बलसमिद्धा । एत्तो कमेण वोच्छं, पियरो एयाण सवाणं ॥ १८१ ॥ पढमो य पयावइ बम्भभूइ एत्तो य रुद्दनामो य । सोमो सिवंकरो वि य, समसुद्धो अग्गिदाणो य ॥ १८२ ॥ दसरहनराहिवो वि य, वसुदेवो पत्थिवो कमेणं तु । एए हवन्ति पियरो, सवाण वि वासुदेवाणं ॥ १८३ ॥ पढमा मिगावई माहवी य पुहई तहेव सीया य । अह अम्बिया य लच्छी, केसी वि य केगई चेव ।। १८४ ॥ तह देवई य एत्तो, इमाउ जणणीउ वासुदेवाणं । महिलाओ च्चिय ताणं, भणामि एत्तो निसामेहि ॥ १८५ ।। पढमा सयंपभा रुप्पिणी य पभवा मणोरमा हवइ । तह य सुनेता अह विमलसुन्दरी चेव नन्दवई ॥ १८६ ॥ एत्तो पहावई रुप्पिणी य गुणरूवजोवणधरीओ। आसि महादेवीओ, सबाण वि वासुदेवाणं ।। १८७ ॥ बलदेवाः तत्सम्बद्धानि विविधानि स्थानकानि चधवलब्भसण्णियासा, पढमपुरी पुण्डरीगिणी भणिया । पुहई आणन्दपुरी, नन्दपुरी चेव नायबा ॥ १८८ ॥ नयरी आसि असोगा, विजयपुरं मणहरं सुसीमा य । खेमा वि य नागपुरं, इमाणि रामाण गयजम्मे ॥ १८९ ॥
सुबलो य पक्णवेगो, नन्दि सुमित्तो महावलो चेव । पुरिसवसभो य एत्तो, सुदरिसणो होइ नायबो ॥ १९० ॥ मरण, वनक्रीड़ा, अत्यन्त विषयसंग, वियोग और अत्यन्त विरूपता-ये वासुदेवोंके पूर्वभवमें निदान थे। (१७३-१७४) अतएव मूर्खतावश संसारकी वृद्धि करनेवाला और सब दुःखोंका मूलरूप ऐसा निदानयुक्त तप क्षणभर के लिए भी मत करो। (१७५) संभूत, सम्भव, सुदर्शन, श्रेयांस, अतिभूति, वसुभूति, घोषसेन ऋषि इनके पश्चात् उदधि और द्रुमसेनये मुनिवर परभवमें वासुदेवोंके क्रमशः गुरु थे। (१७६-१७७) महाशुक्र कल्प, प्राणतकल्प, अच्युत, सहस्रार, सौधर्म, माहेन्द्र, सौधर्म, सनत्कुमार कल्प तथा महाशुक्र नामका कल्प-इनमेंसे च्युत होकर सब वासुदेवके रूपमें उत्पन्न हुए थे। (१७८-१७९) पोतनपुर, वारिपुर, महापुर, शान्ति नामक नगर, चक्रपुर, कुशाग्र, मिथिला, साकेत तथा मथुराइन नगरों में बलसे समृद्ध वासुदेव उत्पन्न हुए थे । (१८८-१८१)
अब मैं क्रमशः इन सबके पिताओंके बारेमें कहँगा। प्रथम प्रजापति, उसके बाद ब्रह्मभूति, रुद्र, सोम, शिवंकर, समशुद्ध, अग्निदान, दशरथ राजा और वसुदेव राजा-ये अनुक्रमसे सभी वासुदेवोंके पिता थे। (१८२-१८३) पहली मृगावती, उसके बाद माधवी, पृथिवी, सीता, अम्बिका, लक्ष्मी, केशी, कैकेई और देवकी-ये वासुदेवोंकी माताएँ थीं। अब उनकी पत्नियोंके नाम मैं कहता हूँ। तुम ध्यानपूर्वक सुनो। (१८४-१८५) पहली स्वयंप्रभा, फिर मक्मिणी, प्रभवा, मनोरमा, सुनेत्रा, विमलसुन्दरी, नन्दवती, प्रभावती और रुक्मिणी-गुण, रूप एवं यौवनको धारण करनेवाली ये अनुक्रमसे सभी वासुदेवोंकी पटरानियाँ थीं। (१८६-१८७)
पहली नगरी श्वेत मेघके सदृश पुण्डरीकिणी कही गई है। उसके बाद पृथिवी, आनन्दपुरी और नन्दपुरीको जानो। उसके पश्चात् अशोका नगरी थी। उसके अनन्तर सुन्दर विजयपुर, सुसीमा, क्षेमा, और नागपुर-गत जन्ममें बलरामोंके ये नगर थे । (१८८-१८९) सुबल, पवनवेग, नन्दिमित्र, महाबल, पुरुषवृषभ, सुदर्शन, वसुन्धर श्रमण, श्रीचन्द्र
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