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२०.९८] २०. तित्थयर-चक्कवट्टीबलदेवाइभवाइट्टाणकित्तणं
१८९ होहिन्ति पुहइपाला, दुट्टा दुस्सीलनिव या पावा । बहुकूडकवडभरिया, नरा य कोहुज्जयमईया ॥ ८५ ॥ गोडण्डयसरिसेसुं, नट्ठा सयमेव ते कुहम्मेसु । नासेहिन्ति बहुजणं, कुदिद्विसत्थेसु बहुएसु ॥ ८६ ॥ अइविट्टि अगाविट्ठो, विसमा वि हु विट्टिसंपया काले । होहिन्ति दुस्समाए, सभावपरिणामनोगेणं ॥ ८७ ॥ सत्तेव य रयणीओ, आयपमाणं नराण दुसमाए । हाणो कमेण होहो, अन्ते पुण दोणि रयगोओ ।। ८८ ॥ वाससयं पुण आउं, दुसमाए आदिमं समुद्दिट्ट । परिहाइ इह कमेणं, जावं तेवीस वरिसाई ॥ ८९ ॥ अइदुस्समाएँ होहिद, आयपमाणं त दोण्णि रयणीओ। वरिसाणि वीस आउं, नराग निद्धम्मबुद्धीणं ॥ ९० ॥ अइदुस्समा अन्ते, एगा रयणी नराण उच्चत्तं । आउं सोलस वरिसाणि, ताण कालाणुभावेणं ॥ ९१ ॥ नय पत्थिवाण भिच्चा, न गिहाणि न उस्सवा न संबन्धा। होहिन्ति धम्मरहिया, मगुया य सरिस्सवाहारा ॥ ९२ ॥ आउ बलं. उस्सेहो, एवं अवसप्पिणोएँ अवसरइ । वड्डइ य कमेग पुणो, उस्सप्पिणिकालसमयम्मि ॥ ९३ ॥ कुलकराणां तीर्थकराणां चोत्सेधाएवं जिणन्तराई, नरवइ कालो य तुज्झ परिकहिओ । एत्तो कमेण निसुणसु, उस्सेहाऽऽउ जिणिन्दाणं ॥ ९४ ॥ अट्टारस तेर अट्ठ य, सयाणि सेसेसु पञ्चधणुवीसं । पडिहायन्तो कमसो, उस्सेहो कुलगराण इमो || ९५ ॥ पञ्च सयाणि धणूणं, उस्सेहो आइजिणवरिन्दस्स । अदृसु पन्नासा पुण, परिहाणी होइ नियमेणं ॥ ९६ ॥ सीयलजिणस्स नउई, भवइ असीया सत्तरी य सट्टि त्ति । पन्नासा य कमेणं, उस्सेहो जिणवराणं तु ॥ २७ ॥ अट्टमु य पञ्चहाणी, नव रयणी सत्त होन्ति रयणीओ। तित्थयराण पमाणं, एयं संखेवओ भणियं ॥ ९८ ।।
जिनेन्द्र वीरके निर्याणके अनन्तर अतिशय वजित काल आयेगा। वह बलदेव एव चक्रवर्तीसे रहित तथा उत्तम ज्ञानसे हीन होगा। (८४) राजा दुश्शील, व्रतरहित एवं पापो होंगे। लोग भी नानाविध छलकपटसे भरे हुए तथा क्रोधसे युक्त बुद्धिवाले होंगे। (८५) गायके डण्डेके जैसे क्रुधर्मों द्वारा वे स्वयं नष्ट होकर मिथ्यात्वियोंके नानाविध शास्त्रोंसे वे बहुतसे लोगोंको नष्ट करेंगे । (८६) स्वभावके परिणामके योगसे दुःपमा कालमें अतिवृष्टि, अनावृष्टि और विषम वृष्टि होगी। (८७) दुःपमामें मनुष्योंके शरीरका परिमाण सात हाथका होगा। इसमें भी क्रमसे हानि होतो जायगी। अन्तमें तो दो हाथका ही रहेगा । (८) दुःपमाके आरम्भमें आयु सौ सालकी कही गई है। इसमें भी क्रमशः हानि होती जायगी
और तेईस वपतककी रहेगी । (२) अतिदुःपमामें धर्मशून्य बुद्धिवाले मनुष्योंके शरीरकी लम्बाई दो हाथकी और आयु बीस सालकी होगी। (९०) अतिदुःषमाके अन्तमें लोगोंकी ऊचाई एक हाथभर होगी और कालके प्रभावसे उनकी आयु सोलह सालकी होगी। (९१) उस समय न तो राजा होंगे न भृत्य, गृह, उत्सव और न तो सम्बन्ध ही होंगे। मनुष्य धर्मरहित होंगे और सरिसृप ( सर्प आदि रंगनेवाले जानवर) का आहार करेंगे । (९२) इस प्रकार अवसर्पिणी कालमें आयुष्य, बल एवं ऊँचाई कम होती जाती है और उत्सपिणी कालमें पुनः क्रमशः वे बढ़ते हैं । (९३)
हे राजन् ! इस प्रकार जिनोंके बोचके अन्तर और कालके बारेमें तुम्हें कहा। अब जिनेन्द्रोंकी ऊंचाई और आयुके बारेमें अनुक्रमसे मुनो । (९४) कुलकरोंकी ऊँचाई क्रमशः अठारह सौ, तेरह सौ, आठ सौ और बाकीकी घटते-घटते पाँच सौ बीस धनुष्य जितनो थी । (९५) आदिजिनवरेन्द्र ऋषभदेवकी ऊँचाई पाँच सौ धनुष्यकी थी। उनके बादके आठ... तीर्थंकरोंको ऊँचाईमें पचास-पचास धनुष्यकी हानि नियमतः होती है। (६६) शीतलजिनकी नब्बे है। इनके बादके जिनवरोंकी ऊँचाई क्रमशः अस्सी,१ सत्तर,१२ साठ,१३ और पचास धनुष्यकी है । (९७) उनके बादके आठ तीर्थकरोंकी १५.२५ ऊँचाईमें पाँच-पाँच धनुष्यकी हानि होती है। तेईसवें तीर्थकरकी ऊँचाई नौ हाथ और चौबीसवेंकी। सात हाथ है। इस प्रकार संक्षेपसे मैंने तीर्थकरोंकी ऊँचाईके बारेमें कहा । (९८)
१. सरीसृपाहाराः।
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