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२०. २२]
२०. तित्थयर-चक्कवटि-बलदेवाइभवाइट्ठाणकित्तण सेसाण जिणवराणं, अणुपरिवाडीऍ पुबजम्मम्मि । नरवइधम्मपुरीओ, एयाओ सुरपुरिसमाओ ॥ ११ ॥ तीर्थकराणां द्विचरमाः पूर्वभवा :पढमोऽत्थ वज्जनाभो, बोओ पुण विमलवाहणो होइ । अह विउलबाहणो वि य, महाबलो अइबलो चेव ॥ १२ ॥ अबराइओऽत्थ अन्नो, हवइ तेहा नन्दिसेणनामो य । पउमो य महापउमो, एत्तो पउमुत्तरो चेव ॥ १३ ॥ राया पदयगुम्मो, अणुपरिवाडीऍ नलिणिगुम्मो य । पउमासणो य एत्तो, पउमरहो दढरहो चेव ॥ १४ ॥ मेहरहो सीहरहो, वेसमणो चेव हवइ सिरिधम्मो । सुवइट्ठो सुरजेट्टो, सिद्धत्थो चेव आणन्दो ॥ १५ ॥ तह चेव सुणन्दो खलु, इमाणि तित्थंकराण पुचभवे । नामाणि आसि सेणिय, सिट्ठाइँ मए कमेणं तु ॥ १६ ॥ तीर्थकराणां द्विचरमपूर्वजन्मगुरवः - पढमो य वज्जसेणो, अरिदमणो तह सयंपभो चेव । अह विमलवाहणो पुणो, गुरवो सीमंधरो वीरो ॥ १७ ॥ पिहियासवो महप्पा, अरिदमणो तह जुगंधरो य मुणी । सबजणाणन्दयरो, सस्थाओ वज्जदत्तो य ॥ १८ ॥ गुरवो य वजनाभो, सबसुगुत्तो तहा मुणेयबो । चित्तारिक्खो अह विमलवाहणो घणरहो चेव ॥ १९ ॥ अह संवरो य एत्तो, साहू वि य संवरो मुणेयबो । वरधम्मो य सुनन्दो, नन्दो य वईयसोगो य ॥ २० ॥ भणिओ य डामरमुणी, पोट्टिलो चेव पुषजम्मम्मि । तित्थयराणं एए, कमेण गुरवो मुणेयबा ॥ २१ ॥
तीर्थकराणामुपान्त्यदेवभवाः
सबढे विजयन्तं, गेविजं बे जयन्तनामं च । उवरिम-मज्झिम भणिया, गेविज्जा वेजयन्तं च ॥ २२ ॥ महानगरी सुसीमा, शोकरहित क्षेमा, चम्पानगरी, कौशाम्बी, नागपुर, साकेत (अयोध्या), सुन्दर छत्राकारपुर-ये अवशिष्ट जिनेश्वरोंकी पूर्वजन्ममें अलकापुरीके समान अनुक्रमसे राजाओंकी धर्मपुरियाँ (राजधानियाँ) थीं। (९-११)
प्रथम वजनाभ' हुए, दूसरे विमलवाहन हुए। उनके बाद विपुलवाहन', महाबल' तथा अतिबल", इनके बाद दूसरे अपराजित, तथा नन्दिषेण नामके हुए। बाद में पद्म', महापद्म हुए। उनके बाद पद्मोत्तर हुए। इनके अनंतर क्रमशः पंकजगुल्म राजा, नलिनीगुल्म२, पद्मासन, पद्मरथ एवं दृढ़रथ हुए। तब मेघरथ६, सिंहरथ, वैश्रमण१८, श्रीधर्म, सुप्रतिष्ठ, सुरज्येष्ठ", सिद्धार्थ२, आनन्द तथा सुनन्द" हुए। हे श्रेणिक! पूर्वभवमें तीर्थकरोंके ये नाम थे। मैंने क्रमसे उनका उल्लेख किया है । (१२-१६)
प्रथम वनसेन', उनके बाद अरिदमन', स्वयंप्रभ', विमलवाहन' तथा वीर सीमन्धरगुरु', महात्मा पिहितात्रय, अरिदमन', तथा युगन्धर' नामके मुनि, सर्वजनान्दकर, सार्थक' और वज्रदत्त", वज्रनाभगुरु१२, इनके बाद सर्वसुगुप्त। को जानना चाहिए। इनके पश्चात् चित्तरक्ष", विमलवाहन'५, बादमें धनरथ", संवर" और साधुसंवर"को, वरधर्म, सुनन्द., नन्द१, व्यतीतशोक२२, अमर३ और पोट्टिल२४- क्रमशः इन्हें तीर्थंकरोंके गुरु जानो। (१७-२१)
*सर्वाथसिद्धि', वैजयन्त', प्रैवेयक, दो जयन्त', ऊपरि'-अवेयक तथा मध्यम -प्रैवेयक, वैजयन्त", अपराजित विमान, सौभाग्यशाली आरण", पुष्पोत्तर", कापिष्टी२, सहस्रार", पुष्पोत्तर", विजय, सुन्दर अपराजित ६ विमान तथा वैजयन्त और अन्तमें पुष्पोत्तर -इन विमानोंमेंसे च्युत होकर इस भारतवर्ष में तीर्थंकर रूपसे उत्पन्न और सुर व असुरों द्वारा प्रणत वे सिद्ध हुए हैं । (२२-५) ।
१. अमियसोगो-प्रत्य।
* इन चार ( २२-२५) गाथाओंमें तीर्थकर जिन देवलोकों में से च्युत होकर यह तीर्थंकर रूपसे उत्पन्न हुए थे इसका वर्णन है। परन्तु गिनने पर कुल अठारह विमानोंका निर्देश ही इनमें आता है। इसीके आधार पर लिखे गये पद्मपुराण ( पर्व २० ) में भी प्रायः
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