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________________ १५२ [१९.४५ पउमचरियं एवं जिणिन्दवरसासणसुद्धभावा, काऊण पुण्णमउलं इह माणुसत्ते । ते देवलोगजणियं विमलं सरीरं, पावन्ति उत्तमसुहं च सया समिद्धं ॥ ४५ ॥ ।। इय परमचरिए रावणरजविहाणो नाम एगूणवीसइमो उद्देसओ समत्तो। २०. तित्थयर-चकवट्टि-पलदेवाइभवाइट्ठाणकित्तणं तीर्थकराः तेषां च द्विचरमपूर्वजन्मनगर्यःएवं मगहाहिवई, चरियं सोऊण रक्खसिन्दस्स । पुच्छइ गणहरवसई, जिण-चक्कहराण उप्पत्ती ॥ १ ॥ अमओ पुण जो सो, बलदेवो तिहुयणम्मि विक्खाओ । वंसे कस्स महायस!, उप्पन्नो किं व से चरियं? ॥ २ ॥ एवं गणाहिवो सो, नं भणिओ सेणिएण नमिऊणं । तो साहिउं पवत्तो, उसभाईणं जिणवराणं ॥ ३ ॥ उसभो अजिओ य निणो, सुरमहिओ संभवो भवविणासो । अहिणन्दणो य सुमई, पउमसवण्णो सुपासोय ॥ ४ ॥ चन्दाभो कुसुमरदो, दसमो पुण सीयलो य सेयंसो । भयवं पि वासुपुज्जो, विमलोऽणन्तो य धम्मो य ॥५॥ सन्ती कुन्थू य अरो, मल्ली मुणिसुबओ नमी नेमी । पासो य बद्धमाणो, नस्स इमं वट्टए तिथं ॥ ६ ॥ परलोयम्मि पहाणा, आसि पुरी पुण्डरीगिणी पढमा । तयणन्तरं सुसीमा, खेमपुरी रयणवरचम्पा ॥ ७॥ उसभाई तित्थगरा, जाव च्चिय वासुपुज्जजिणवसभो । तावेयाउ आसि पुरा रायहाणीओ ॥ ८॥ एत्तो य महानयरं, रिट्ठपुरं भदिलं च विक्खायं । अह पुण्डरीगि हवइ सुसीमा महानयरी ॥ ९ ॥ खेमा ववगयसोगा, चम्पा नयरी तहेव कोसम्बी । नागपुरं छत्तायारं पुरं रम्मं ॥ १० ॥ इस प्रकार इस मनुष्यभवमें जिनेन्द्रोंके उत्तम शासनमें शुद्ध भाववाले जो जीव अनुपम पुण्य उपार्जन करते हैं वे देवलोकमें उत्पन्न हो विमल शरीर और अत्यन्त वैभवयुक्त उत्तम सुख नित्य प्राप्त करते हैं । (५५) पद्मचरितमें रावणराज्य विधान नामका उन्नीसवाँ उद्देश समाप्त हुआ। २०. तीर्थकर आदिके भवोंका अनुकीर्तन राक्षसेन्द्र रावणका ऐसा चरित्र सुनकर मगधाधिपति श्रेणिकने गणधरों में वृषभके समान श्रेष्ठ गौतमस्वामीसे तीर्थकर तथा चक्रवर्तियोंकी उत्पत्तिके बारेमें पूछा कि, हे महायश! आठवाँ जो बलदेव तोनों लोकोंमें विख्यात है वह किसके वंशमें उत्पन्न हुआ था और उसका चरित्र कैसा था ? (१-२) इस प्रकार श्रेणिकने वन्दन करके जब उन गणाधिपसे पूछा तब वे ऋषभ आदि जिनवरों के बारेमें कहने लगे । (३) ऋषभ', देवों द्वारा पूजित अजितजिन', भवका विनाश करनेवाले सम्भव', अभिनन्दन', सुमति', पद्मप्रभ', सुपार्श्व', चन्द्रप्रभ", कुसुमरद (पुष्पदन्त), दसवें शीतलनाथ', श्रेयांसनाथ'', वासुपूज्य'' भगवान् , विमलनाथ'३, अनन्तनाथ'", धर्मनाथ'", शान्तिनाथ'", कुन्थुनाथ, अरनाथ'", मल्लि, मुनिसुव्रत२०, नमिनाथ'', नेमिनाथ, पार्श्वनाथ", और जिनका यह तीर्थ चल रहा है वे वर्धमानस्वामी-ये जिनवर हुए हैं। (४-६) पूर्वजन्ममें प्रथम पुण्डरीकिणी नगरी थी। उसके बाद सुसीमा, क्षेमपुरी, रत्नवर चम्पा-ये नगरियाँ ऋषभसे लेकर वासुपूज्य जिनेश्वर तककी पूर्वकालमें राजधानियाँ थीं। (७-८) महानगर, रिष्टपुर, सुप्रसिद्ध भदिलपुर, पुण्डरीकिणी, १. लबभावा-प्रत्य। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001272
Book TitlePaumchariyam Part 1
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages432
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size13 MB
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