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१५. अंजणासुन्दरीवोवाहविहाणाहियारो
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सुणिऊण वयणमेयं, सुमई तो भणइ परिफुडुल्लावो । न य रावणस्स कन्ना, दिज्जइ सोऽणेयजुवइपई ॥ नइ इन्दइस्स दिज्जई, तो रूसइ मेहवाहणो नियमा । घणवाहणस्स दिन्ना, तो कुप्पइ इन्दइकुमारो ॥ गणियाहेउं जुज्झं, नायं सिरिसेणरायपुत्ताणं । पिइ-माइदुक्खनणयं किं न सुयं जं पुरा वत्तं ? ॥ सुमईण तत्थ भणियं, वेयड्डे दक्खिणिल्लसेढीए । कणयपुरं अस्थि तहिं, हरिणाहो वेयराहिवई ॥ सुमणा तस्स वेरतणू, पुत्तो विज्जुप्पहो ति नामेणं । रूव-गुण- जोबणेणं, अइसयभूओ तिहुयणम् ॥ तस्सेसा वरकन्ना, दिज्जइ मा एत्थ संसयं कुणह । अणुसरिसजोवणाणं, अचिरा वि हु होउ संजोओ ॥ धुणिऊण उत्तिमङ्ग, मन्ती सन्देहपारओ भगइ । भविओ सिवपहगामी, होही विज्जुप्पहकुमारो ॥ ॥ अट्ठारसमे वरिसे, भोगं मोत्तूण गहियवय-नियमो । सिद्धालयं गमीही, एवाऽऽइट्टं मुणिवरेणं ॥ रोज्जला वि हु, तेण विमुक्का इमा य वरकन्ना । होही वत्रगयसोहा, चन्देण विणा जहा रयणी ॥ अह भइ तत्थ मन्ती, निसुणह आइच्चपुरवरे राया । विज्जाहरो महप्पा पल्हाओ नाम नामेणं ॥ भज्जा से कित्तिमई, पुत्तो पवणंजओ पहियकित्ती । रूवेण जोबणेण य, कामस्स सिरिं विडम्बेइ ॥ नन्दीश्वरयात्रा -
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एयन्तरम्मि मासो, संपत्तो फग्गुणो गुणसमिद्धो । जणयन्तो नवपल्लव, दुमाण कमलायराणं च ॥ छज्जन्ति उववणाई, नाणाविहकुसुमरिद्धिगन्धाई 1 गुमगुमगुमन्तमहुयर- कोइलकोलाहलरवाई ॥ एयारिसम्म काले, देवा नन्दीसरं परमदीवं । गन्तूण अट्ट दियहे, करेन्ति महिमं निणवराणं ॥ पूयाउवगरणकरा, सबे विज्जाहरा समुदपणं । पत्ता वेयडुगिरिं, पणमन्ति निणालए तुट्टा ॥ तत्थ महिन्दो वि गओ, पूया काऊण सिद्धपडिमाणं । थुइमङ्गलेहि नमिउं, उवविट्टो समसिलावट्टे ॥ क्योंकि वह अनेक युवतियोंका स्वामी है । (२७) यदि इन्द्रजितको दी जाती है तो मेघवाहन बिगड़ उठेगा और मेघवाहनको दी जाती है तो इन्द्रजित रुष्ट होगा । (१८) एक गणिकाके लिए श्रीसेन राजाके पुत्रोंमें माता-पिता के लिए दुःखजनक जो युद्ध प्राचीन समय में हुआ था वह क्या नहीं सुना है ? (१९) तब सुमतिने कहा कि वैतान्यकी दक्षिण श्रेणी में कनकपुर आया है । वहाँ हरिणनाभ नामक एक खेचर राजा है । (२०) सुमना उसकी स्त्री है। उनका रूप एवं यौवनसे सम्पन्न तथा तीनों लोकों में प्रशंसित ऐसा विद्युत्प्रभ नामका एक पुत्र है । (२१) उसे यह कन्या दो जाय । इसमें तुम सन्देह मत करो | अनुरूप यौवनवालोंका संयोग शीघ्र ही हो । (२२) इसपर सिर धुनाकर सन्देहपारंग मंत्रीने कहा कि भव्य ( मोक्षमें जानेकी योग्यतावाला ) यह विद्युत्प्रभकुमार शिवपथ (मोक्ष) पर प्रयाण करनेवाला होगा । (२३) अठारहवें वर्षमें भोगका त्याग करके तथा व्रत एवं नियम अंगीकार करके मोक्षमें जायगा ऐसा मुनिवरने कहा है । (२४) उत्तम यौवनसे देदीप्यमान यह कन्या उसके द्वारा परित्यक्त होनेपर चन्द्रसे रहित रात्रीकी भाँति शोभाहीन होगी । (२५) इसपर एक मंत्रीने कहा कि आदित्यपुर में प्रह्लाद नामका एक बड़ा विद्याधर राजा है । (२६) उसकी भार्या कीर्तिमती है और रूप एवं यौवनसे कामदेवकी भी विडम्बना करनेवाला पवनंजय नामका उसका एक यशस्वी पुत्र है । (६७)
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इस बीच गुणसे समृद्ध तथा वृक्ष एवं कमलसमूहोंमें नवपल्लव पैदा करनेवाला फागुनका महीना आ गया । (२८) नानाविध कुसुमोंकी समृद्धि एवं गन्धसे व्याप्त तथा भौंरोंकी गुनगुनाहट एवं कोयलके मधुर कलरव से युक्त उपवन शोभित होने लगे । (२९) ऐसे समय में देव नन्दीश्वर नामके उत्तम द्वीपमें जाकर आठ दिन तक जिनवरोंकी भक्ति करते हैं । (३०) पूजाकी सामग्री हाथमें लेकर सब विद्याधर आनन्द के साथ वैतान्यपर्वत पर गये और तुष्ट होकर जिनालयों में वन्दन ' करने लगे । (३१) वहाँ महेन्द्र भी गया और पूजा करके सिद्धप्रतिमाओंका स्तुति-मंगल द्वारा वन्दन किया । बादमें वह शिलापट्ट पर बैठा । (३२) प्रह्लाद राजा भी भक्तिरागसे प्रेरित होकर वहाँ गया और मनमें उत्साहशील होकर सब
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पत्नी ।
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