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पउमचरियं
सुणिऊण वयणमेयं, परिपुच्छइ गणहरं मगहराया । भयवं ! को हणुमन्तो, कस्स सुओ कत्थ वत्थवो ॥ ३ ॥
हनुमन्तचरित्रम् -
अह भासि पयत्तो, गणाहियो अस्थि भारहे वासे । वेयड्डो नाम गिरी, उभओ सेढीसु अहरम्मो ॥ ४ ॥ तत्थाऽऽइच्चपुरवरं, अत्थि वरुजाण - काणणसमिद्धं । पल्हाओ नाम निवो, तं भुञ्जइ खेयरो सूरो ॥ ५ ॥ महिला से कित्तिमई, पुत्तो पवणंजओ त्ति नामेणं । जो सयलजीवलोए, गुणेहि दूर समुबहइ ॥ ६ ॥ दट्ठूण तं कुमारं नोबण-लायण - कन्तिपडिपुण्णं । चिन्ता कुणइ नरवई, कुल-वसुच्छेयपरिभीओ ॥ ७ ॥ अञ्जना सुन्दरीचरितम् -
तावऽच्छउ संबन्धो, सेणिय ! पवणंजयस्स जो भणिओ । तस्स महिलाऍ एत्तो, सुणसुप्पत्ती पवक्खामि ॥ ८ ॥ भारहवरिसन्ते खलु, दाहिणपासम्मि सायरासने । दन्ती नाम महिहरो, ऊसियवरसिहरसंघाओ ॥ ९ ॥ तत्थ पुरं विक्खायं, महिन्दनयर कयं महिन्देणं । वरभवण-तुङ्गतोरण - अट्टालय - वियडपायारं ॥ १० ॥ अह हिययसुन्दरीए, महिन्दभज्जाऍ पवरपुत्ताणं । नायं सयं कमेणं, अरिन्दमाई सुरूवाणं ॥ ११ ॥ भइणी ताण कणिट्टा, वरअञ्जणसुन्दरि त्ति नामेणं । रुवाणि रूविणीणं, होऊण व होज्ज निम्मविया ॥ सा अन्नया कयाई, कीलन्ती तेन्दुएण वरभवणे । नवजोबणचिश्ञ्चइया, सहसा दिट्ठा महिन्देणं ॥ सद्दाविया य मन्ती, कयविणया आसणेसु उवविट्टा । भणिया य साहह फुडं, कस्स इमा देमि कन्ना हं ॥ मइसायरेण भणिओ, महिन्दविज्जाहरो पणमिऊणं । लङ्काहिवस्स दिज्जइ, एस कुमारी गुणब्भहिया ॥ अहवा दिज्जइ कन्ना, दहमुहपुत्ताण रूवमन्ताणं । घणवाहणिन्दईणं, विज्जा - बलगबियमईणं ॥
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विचलित न होनेवाले मेरुकी भाँति अत्यन्त स्थिर था । ( २ ) ऐसा कथन सुनकर गणधर गौतमसे मगधनरेश श्रेणिक पूछा कि, हे भगवन् ! यह हनुमान कौन है ? किसका पुत्र है ? और कहाँ रहता है ? (३)
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इसपर गणाधिप गौतमने कहा कि भरतक्षेत्रमें दोनों तरफकी श्रेणियोंसे अतिरम्य ऐसा वैताढ्य नामका पर्वत है । (४) वहाँ उत्तम बाग़-बगीचोंसे समृद्ध आदित्यपुर नामका नगर है। प्रह्लाद नामक शुरवीर खेचर उसका उपभोग करता था । (५) उसकी कीर्तिमती नामकी पत्नी और पवनंजय नामका पुत्र था, जो सारे जीवलोकमें अपने गुणोंके कारण सर्वश्रेष्ठ था । (६) यौवन, लावण्य एवं कान्तिंसे परिपूर्ण उस कुमारको देखकर कुल एवं वंशके उच्छेदके कारण भयभीत राजा चिन्ता करने लगा । (७) अस्तु,
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हे श्रेणिक ! पवनंजयका जो वृत्तान्त कहा वह यहीं रहे । अब उसीकी स्त्रीकी उत्पत्ति के बारे में अब मैं कहता हूँ । उसे तुम सुनो। (८) भारवर्षके छोरपर दक्षिणदिशा में सागर के समीप ऊँचे और उत्तम शिखरोंके समूहवाला दन्ती नामक एक आया है । (९) वहाँ महेन्द्र ने उत्तम भवन, ऊँचे तोरण, अट्टालिकाओं तथा विशाल परकोटेवाला महेन्द्रनगर नामका प्रसिद्ध नगर निर्मित किया । (१०) इसके पश्चात् महेन्द्रकी भार्या हृदयसुन्द्रीसे अरिन्दम आदि सुन्दर और उत्तम सौ पुत्र क्रमशः हुए । (११) उनकी अंजनासुन्दरी नामकी छोटी बहन थी । वह मानो रूपवतियोंके रूपको एकत्रित करके निर्मित की गई थी ! (१२) नवयौवन मण्डित वह एक बार कभी अपने उत्तम भवनमें गेंद से खेल रही थी कि सहसा महेन्द्रने उसे देखा । (१३) उसने मंत्रियोंको बुलाया । विनय प्रदर्शित करके वे आसन पर बैठे। फिर राजाने कहा कि आप स्पष्ट रूपसे कहें कि मैं यह कन्या किसे दूँ ? (१४) महेन्द्र विद्याधरको प्रणाम करके मतिसागरने कहा कि गुणोंसे विशिष्ट यह कुमारी लंकाधिप रावणको दीजिए । (१५) अथवा रावणके सुन्दर रूपवाले तथा विद्या एवं बलसे गर्वित मतिवाले मेघवाहन या इन्द्रजित आदि पुत्रोंको लड़की दी जाय । (१६) ऐसा कथन सुनकर सुमतिने अत्यन्त स्पष्ट शब्दोंमें कहा कि रावणको यह कन्या नहीं देनी चाहिए,
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