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पउमचरियं
[१२.८३. अन्नो रहं विलग्गइ, ऊसियधयदण्डमण्डणाडोवं । अन्नो चलन्तचमरं, लङ्घइ तुरयं फुरुफुरन्तं ॥ ८३ ॥ सन्नाह-सिरत्ताणं, अन्नो वाहरइ लहु पराणेह । धणु-सत्ति-खम्ग-सबल-अन्नोन्नाहवणारावं ॥ ८४ ॥ सन्नज्झिऊण इन्दो, समयं चिय लोगपालचक्केणं । एरावणमारुढो, विणिग्गओ निययनयराओ ॥ ८५ ॥ पडपडह-भेरिपउर, काहल-बरसङ्खगहिरसद्दालं । रसिऊग समाढत्तं, तूरं घणसदनिग्धोसं ॥ ८६ ॥ सोऊण तूरसई, रक्खससेन्नं पि आयरुष्पित्थं । सन्नज्झिउं पयत्तं, हय-गय-रह-तुरय-पाइक्कं ॥ ८७॥ सर-सत्ति-चक्क-तोमर-असि-मोग्गरगहियपहरणावरणं । तक्खगमेतेण कयं, रणपरिहत्थं तओ सबं ॥८८॥ विसमाहयतूररवं, तुरङ्गवग्गन्त-चडुलपाइक्कं । रक्खसबलं महन्तं, अभिट्ट इन्दसुहटाणं ।। ८९ ॥ सुरवइभडेहि एत्तो. फलिहसिलाकुन्तसत्तिपहरेहिं । रक्वसबलस्स पमुह, भम्गं विवडन्तगय-तुरयं ॥ ९० ॥ दट्टण निययसेन्नं, भज्जन्तं सुरभडेहि संगामे । सबा उहकयनोगा, आवडिया रक्खसा तागं ॥ ९१ ॥ वज्जो य वज्जवेगो, हत्थ-पहत्थो तहेव मारीई । सुर-सारणो य नहरो, गयणुज्जलमाइया सुहडा ॥ ९२ ।। सन्नद्ध-बद्ध-कवया, दढरोसुज्जलियढप्पमाहप्पा । तह जुज्झिउं पवत्ता, जह इन्दवलं समोसरियं ।। ९३ ।। दठूण सेन्नपमुह, भज्जन्तं रक्खसेहि संगामे । इन्दनुहडा वि ताणं, समुट्ठिया सहरिसुच्छाहा ॥ ९४ ॥ घणमाली तडिपिङ्गो, जलियक्खो अद्दिपञ्जरो चेव । जलहरमाई एए, जुज्झन्ति समं निसयरेहिं ।। ९५ ॥ हय-जाण-वहियजोह, दळूण कइद्धओ महिन्दसुओ । उद्धाइओ य सहसा, पसन्नकित्ती रणपयण्डो ॥ ९६ ॥ अह मालबन्तपुत्तो, सिरिमाली सरसयाइँ मुञ्चन्तो । पविसरइ सुराणीए, रणे जह वणदवो दित्तो ॥ ९७ ॥
गया और लोकपालोंके साथ अस्त्र-शस्त्रोंसे लैस होने लगा । (८१-८२) कोई ऊपर उठे हुए ध्वजदण्डसे मण्डित रथ पर चढ़ा, दूसरा जिसकी कलगी हिल रही है, ऐसे काँपते हुए घोड़े पर सवार हुआ। दूसरा कोई कवच और शिरस्त्राण धारण करके कहता था कि शत्रुको जल्दी हाज़िर करो। धनुष, शक्ति, खड्ग तथा बर्छसे लैस वे एक-दूसरेको ललकार रहे थे। (८३-८४) तैयार होकर ऐरावत हाथी पर सवार इन्द्र लोकपालोंके समूहके साथ अपने नगरमेंसे बाहर निकला । (५) बड़े बड़े नगाड़े और भरियोंसे व्याप्त, काहल एवं उत्तम शंखोंके बजनेसे गम्भीर शब्दवाले तथा बादलकी गर्जनाकी भाँति निर्घोष करनेवाले युद्धवाद्य बजने लगे । (८६)
युद्धवाद्योंकी आवाज़ सुनकर अशान्त और त्रस्त घोड़े, हाथी, रथ और पैदल सैनिकोंवाली राक्षससेना भी तैयारी करने लगी । (८७) उसने फौरन ही बाण, शक्ति, चक्र, तोमर, तलवार और मुद्गर धारण करके तथा शस्त्रांसे लैस हो गके योग्य सब तैयारी की। (८८) रणवाद्योंके बजनेसे भयंकर आवाज करती हुई, कूदते हुए घोड़ों तथा चंचल पैदल सैनिकोंसे युक्त बड़ी भारी राक्षस सेना इन्द्रके सुभटोंके साथ भिड़ गई । (८९) स्फटिक शिलाओं, बाण एवं शक्ति द्वारा प्रहार करनेवाले इन्द्रके मुभटोंने गिरते हुए हाथी और घोड़ेवाले राक्षससैन्यके अग्रिम भागको तहस-नहस कर डाला । (९०) संग्राम में देयोंके सुभटों द्वारा अपने सैन्यका विनाश देखकर उसकी रक्षाके लिए सब प्रकारके आयुधोंसे सज्ज राक्षस आ पहुँचे। (९१) कवच पहने हुए तथा अत्यंत रोषके कारण रोषसे गौरवशाली आत्मावाले यन्त्र, वनवेग, हस्त, प्रहस्त. मारीचि, शुक, सारण, जठर तथा गगनोज्ज्वल श्रादि सुभट ऐसा युद्ध करने लगे कि इन्द्रकी सेना पीछे हट गई। (९२-९३) यद्ध में राक्षसों द्वारा अपने अग्रिम सैन्यका भंग देखकर इन्द्र के सुभट हर्ष और उत्साहके साथ रक्षाके लिए खड़े हुए । (२४) जमाली, तडित्पङ्ग, ज्वलिताक्ष, अद्रिपंजर तथा जलधर आदि सुभट निशाचरोंके साथ भिड़ गये । (१५) घोड़े रथ एवं योद्धाओंके विनाशको देखकर युद्ध करने में भयंकर महेन्द्रपुत्र कपिध्वज प्रसन्नकीर्ति सहसा उठ खड़ा हुआ। (९६) इस पर सैकडो बाणोंको छोड़ते हुए मालवन्तके पुत्र श्रीमालीने जंगलमें प्रदीप्त दावाग्निकी भाँति देवसेनामें प्रवेश किया। (९७)
१. मंडलाडोवं-प्रत्य।
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