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पउमचरियं
एवं सुहेण गमिओ, पाउसकालो महन्तघणवन्द्रो । पणयारिपक्ख जणवय-सएसु अहिणन्दमाणस्स ॥ १२० ॥ एवं पुण्णफलोदएण पुरिसा पावन्ति तुझं सिरिं, कित्ती छन्नसमत्थमेइणितला भग्गारिपक्खासया । दिवाणं रयणाण होन्ति निलया लोगस्स पुज्जा नरा, पच्छा ते विमलाणुभावचरिया पावन्ति सिद्धालयं ॥ १२१ ॥
॥ इय पउमचरिए मरुयजन्नविद्धंसणो जणवयागुराम्रो नाम एकादसमो उद्देसो समत्तो ॥
१२. वेयड्ढगमण - इन्दबंधण लंकापवेसणाहियारो
रावणपुत्री मनोरमायाः परिणयनम् :
१ ॥ २ ॥
३ ॥
४ ॥
एतो लङ्काहिवई, समयं मन्तीहि संपहारेइ । कस्स इमा दायबा, दुहिया मे नोबणापुण्णा ॥ मन्तीहि विसो भणिओ, महुराहिवई विसुद्धकुलवंसो । हरिवाहणो त्ति नामं, तस्स य पुत्तो महुकुमारो ॥ सो लक्खणोववेओ, नोबण - बल - विरिय - सत्तिसंपन्नो । तस्सेसा वरकन्ना, दिज्जइ एवंमणो अम्हं ॥ अह भइ रक्खसिन्दो, हरिवाहणनन्दणो महुकुमारो । सूरो विणयगुणधरो, लोगस्स य वल्लहो अहियं ॥ हरिवाहणो वि पुत्तं घेत्तृण दसाणणं समल्लीणो । परितुट्ठो नरवसभो, दट्टुं तं सुन्दरायारं ॥ ५ ॥ हरिवाहणस्स मन्ती, भणइ तओ इय पहु ! निसामेहि । एयस्स सूलरयणं, दिन्नं असुरेण तुट्टेणं ॥ ६ ॥ अह जोयणाण संखा, दोण्णि सहस्साणि दोण्णि य सयाणि । गन्तूण सूलरयणं, पुणरवि य तहिं समल्लियइ ॥ ७ ॥ दिन्ना वरकल्लाणी, मणोरमा तस्स महुनरिन्दस्स । वत्तं पाणिग्गहणं, अणन्नसरिसं वसुमईए ॥ ८ ॥
[११.१२०
हँस रही थी ! (११९) नँवाए गए शत्रुपक्षके सैकड़ों जनपदों द्वारा अभिनन्दित रावणने बड़े बड़े बादल-समूहों से व्याप्त वर्षाकाल इस प्रकार सुखपूर्वक व्यतीत किया । ( १२० ) इस प्रकार पुण्योदय के फलस्वरूप पुरुष उन्नत शोभा प्राप्त करते हैं । समस्त भूतल में उनकी कीर्ति छा जाती है और शत्रुपक्षकी सब आशाएँ चूर्ण-विचूर्ण हो जाती हैं। ये दिव्य रत्नोंके आवास हैं और लोगों के पूज्य होते हैं। बाद में विमल भाव एवं चरित्रवाले वे मोक्ष प्राप्त करते हैं ।
। पद्मचरित में 'मरुतके यज्ञका विनाश' तथा 'जनपदका अनुराग' नामका ग्यारहवाँ उद्देश्य समाप्त हुआ ।
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१२.
रावणका वैताढ्य गमन, इन्द्रबन्धन और लंकाप्रवेश
इधर लंकाधिपति रावण अपने मंत्रियोंके साथ विचार-विनिमय करने लगा कि यौवनसे परिपूर्ण मेरी यह लड़की किसे देनी चाहिए ? (१) इस पर मंत्रियोंने उससे कहा हरिवाहन नामके मथुराके राजाका कुल और वंश उत्तम है । उसका पुत्र मधुकुमार है । (२) वह उत्तम लक्षणोंसे युक्त तथा यौवन, बल, वीर्य और शक्तिसे सम्पन्न है । उसे यह उत्तम कन्या देनी चाहिए, ऐसा हमारा अभिप्राय है । (३) इस पर राक्षसेन्द्रने कहा कि हरिवाहनका पुत्र मधुकुमार शूर एवं गुणको धारण करनेवाला है तथा लोगोंको बहुत प्रिय है । (४) हरिवाहन भी अपने पुत्रको लेकर दशाननके पास आया । उस सुन्दर आकृतिवाले मधुकुमारको देखकर मनुष्यों में वृषभके समान उत्तम रावण सन्तुष्ट हुआ । ( ५ ) तब हरिवाहनको मंत्रियोंने इस प्रकार कहा- हे प्रभो ! आप सुनें । तुष्ट असुर रावणने इस मधुकुमारको एक शूलरत्न दिया । (६) दो हजार और दो सौ योजन पर्यन्त यह शूलरत्न जाकर पुनः जहाँ से छोड़ा था वहीं वापस आ जाता है। (७) पश्चात् हरिवाहनके पुत्र मधु राजाको उत्तम कल्याणोंके करनेवाली मनोरमा दी। उनका पाणिग्रहण समारोह पृथ्वीपर अद्वितीय था । (5)
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