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________________ ११६ पउमचरियं [१०.४४अङ्गपरिभोगलग्गं, कुङ्कुमधोवन्तपिञ्जरारुणियं । जायं खणेण सलिलं, जुवईहि तहिं रमन्तीहि ॥ ४४ ॥ एवं रमिऊण निवो, जलजन्तविसज्जिए कए उदए । वियडे नईऍ पुलिणे, लीलाकयभूसणनिओगो ॥ ४५ ॥ ताव चिण दहवयणो, हाउत्तिण्यो सियम्बरनियत्थो । ठावेइ कणयपीढे, पडिमाओ जिणवरिन्दाणं ॥ ४६ ॥ वरवालयापुलीणे, धरियवियाणय-पडायरमणिज्जे । काऊण महापूयं, संथुणइ जिणिन्दपडिमाओ ॥ ४७ ।। तस्स थुणन्तस्स तओ, नइपूरसमोत्थया हिया पूया । रुटो लङ्काहिवई, भणइह किं एरिसं जायं ? ॥ ४८ ॥ एयं अयालसलिलं, भणइ गवेसेह पेसिया पुरिसा । गन्तूण पडिनियत्ता, जं दिटुं तं निवेदेति ॥ ४९ ।। अह नाह को वि पुरिसो, जुवइसमग्गो नईऍ पुलिणत्थो । अच्छइ लीलायन्तो, सुरोध मन्दाइणीसलिले ॥ ५० ॥ तेणेयं नइसलिलं. रुद्धं जलजन्तसंपओगेणं । रमिऊण पुणो मुक्कं, वहद पहू उन्भडावत्तं ॥ ५१ ॥ बहुतूरजयालोयण-सदं सोऊण परमरुटेणं । वीसज्जिया य सुहडा, तस्स वहत्था बलसमग्गा ॥ ५२ ॥ तो पेसिऊण सुहडे, पुणरवि पूया करितु पडिमाणं । संथुणइ एगमणसो, दहवयणो मङ्कलसएहिं ॥ ५३ ॥ दशमुखस्य सहस्रकिरणेन सह युद्धम्सन्नद्धबद्धकवया, विजाहरपत्थिवा गयणमग्गे । दठूण सहसकिरणो, ओइण्णो नइपुलीणाओ ॥ ५४ ॥ सोऊण कलयलरवं, माहेसरनयरसन्तिया सुहडा । सन्नज्झिऊण तुरियं, सहस्सकिरणं समल्लीणा ॥ ५५ ॥ अह जुज्झिउं पवत्ता, निसायरा भूमिगोयरेहि समं । चक्क-ऽसि-सत्ति-तोमर-मोग्गरनिवहं विमुश्चन्ता ॥ ५६ ॥ रह-गय-तुरङ्गदप्पिय-अन्नोन्नावडियचडुलपाइक्का । जुज्झन्ति सवडहुत्ता, नामं गोत्तं च सावेन्ता ॥ ५७ ॥ प्रवंचना, वक्रता और डूबकी श्रादि सैकड़ों तरहसे क्रीड़ा कर रही थीं। (४३) वहाँ खेलती हुई युवतियों के शरीर पर भोगके लिए लगाये गए कुंकुमके घुलनेसे नदीका जल क्षणभरमें लाल-पीला हो गया । (४४) रावणको सेनाके साथ सहस्रकिरणका युद्ध इस प्रकार क्रीड़ा करनेके पश्चात् जलयंत्रों द्वारा छोड़े गये पानीके कारण खुले हुए नदीके कछारमें जैसे ही वह आनन्दके साथ आभूषण पहनने में संलग्न हुआ, वैसे ही उधर रावणने भी स्नान करके श्वेत वस्त्र धारण किये और जिनेश्वरदेवको प्रतिमाओंकी सोनेके सिंहासन पर प्रतिष्ठा को । (४५-४६) पताकाओंसे रमणीय मण्डपवाले बालूके सुन्दर पुलिनप्रदेशमें जिनप्रतिमाओंकी पूजा करके वह स्तुति करने लगा। (४७) जब लंकाधिपति स्तुति कर रहा था, तब नदीकी बाढ़से उसकी पूजा विनष्ट हो गई। इस पर वह कुपित हुआ और कहने लगा कि ऐसा क्यों हुआ? (४८) उसने कहा कि असमयमें यह जल कहाँसे आया ? अतः जाकर तलाश करो। तलाश करनेके लिए भेजे गये पुरुष जाकर लौट आये और जो कुछ उन्होंने देखा था वह निवेदन किया कि हे नाथ, मन्दाकिनी नदीके जलमें क्रीड़ा करनेवाले देवकी भाँति इस नर्मदा नदीमें लीला करनेवाला कोई पुरुष युवतियों के साथ किनारे पर खड़ा है । (४९-५०) उसीने इस नदीका पानी जलयंत्रोंका उपयोग करके रोक रखा था। हे प्रभो! क्रीड़ा करनेके पश्चात् भयंकर भँवरोंवाला यह जल छोड़ दिया है। (५१) अनेकविध वाद्यों एवं जयघोषकी ध्वनि सुनकर अत्यन्त क्रोधमें आये हुए रावणने उसके वधके लिए सेनाके साथ सुभटीको बिदा किया । (५२) एन सुभटोंको भेजकर रावण पुनः पूजा करनेके लिए सैकड़ों मंगल गीतोंसे उन प्रतिमाओंकी स्तुति करने लगा। (५३) सज्ज और कवच बाँधे हुए विद्याधर पार्थिवोंको आकाशमार्गमें देखकर सहस्रकिरण नदी के किनारे परसे नीचे उतरा । (५४) सेनाकी कलकल ध्वनिको सुनकर माहेश्वरनगरके सुभट जल्दीसे तैयार होकर सहस्रकिरणके पास जमा हुए । (५५) चक्र, तलवार, तोमर एवं मुद्गरोंकी झड़ी लगानेवाले राक्षस पृथ्वी पर चलनेवाले लोगोंके साथ युद्ध करने लगे। (५६) रथ, हाथी, घोड़े तथा दर्पयुक्त एवं चपल पैदल सैनिक एक दूसरेके ऊपर गिरते पड़ते और अपने अपने नाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001272
Book TitlePaumchariyam Part 1
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages432
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size13 MB
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