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________________ १०. ४३] १०. दहमुहसुग्गीवपत्थाण-सहस्सकिरणअणरण्णपव्वज्जाविहाणं कत्थइ मयरकराहय-दूरसमुच्छलियमच्छविच्छोहा । कत्थइ तरङ्गरङ्गन्तफेणपरिवड्डियावयवा ॥ ३१ ॥ कत्थह पवणाघम्मिय-तरुकसुमखिरन्तपिञ्जरतरङ्गा । कत्थइ उभयतडट्टिय-सारसकलहंसनिग्धोसा ॥ ३२॥ जलक्रीडाएयारिसगुणकलियं,' पवरनई दहमुहो समोइण्णो । अह मज्जिउं पवत्तो, विमलजले, पवरलीलाए ॥ ३३ ॥ ताव य उत्तरपासे, नईऍ माहेसरे महानयरे । राया सहस्सकिरणो, पढमयरं सलिलरइसत्तो ॥ ३४ ॥ जुवइसहस्सेण समं, कीलइ नइउदयमज्झयारम्मि । उभयतडट्ठियसाहण-सामन्तुग्घुट्ठजयसद्दो ॥ ३५ ॥ विविहजलजन्तविरइय-निरुद्धजलभरियकूलतीराए । सोहन्ति रमन्तीओ, सहस्सकिरणस्स महिलाओ ॥ ३६ ॥ एक्का तत्थ वरतगू, थणयुयलं असुएण छायन्ती । अवहरियउत्तरिज्जा, सहस त्ति जले अह निबुड्डा ।। ३७ ॥ ईसामिसेण कुविया, उदयं घेत्तुण कोमलकरसु । कन्तस्स हरिसियमणा, घत्तइ वच्छत्थलाभोए ॥ ३८ ॥ इन्दीवरदलनयणा, घेत्तु इन्दीवरं हणइ अन्ना । अन्नाएँ सा वि तुरियं आहम्मइ सहसवत्तेहिं ॥ ३९ ॥ अन्ना दट्टण उरे, नहक्खयं बालचन्दसंठाणं । अवहरियउत्तरिज्जा, छाएइ थणं करयलेणं ॥ ४० ॥ काएत्थ पणयकुविया, मोणं परिगिहिऊण वरजुवई । तोसं पुण उवणीया, दइएण सिरप्पणामेणं ॥ ४१ ॥ नाव पसाएइ पिया, एक्का रोसं गया तओ अन्ना । कहकह वि कोवभङ्गो, कओ नरिन्देण जुवईणं ॥ ४२ ॥ पत्थायड्वण-पेल्लण-करपरिहत्थुच्छलन्तसलिलाओ। वञ्चण-वलण-निबुडण-सएसु कीलन्ति जुबईओ ॥ ४३ ॥ मगरमच्छके हाथसे आहत और इसीलिए दूर फेंके गये मत्स्यसे वह विक्षुब्ध प्रतीत होती थी, कहीं पर इधर उधर चलनेवाली लहरोंसे उत्पन्न फेनके कारण वह आकर्षक अवयववाली लगती थी, कहीं कहीं पर पवनकी हिलोरोंसे वृक्षोंके जो फल गिरते थे उससे उसकी तरंगे चित्र-विचित्र वर्णवाली हो गई थीं, कहीं कहीं उसके दोनों तटोंके ऊपर स्थित सारस एवं कलहंसकी ध्वनि हो रही थी। (३०-३२) ऐसे गुणोंसे युक्त उस उत्तम नदीमें दशमुख उतरा और अत्यन्त लीलापूर्वक निर्मल जलमें डुबकी लगाने लगा । (३३) . सहस्रकिरणकी जलक्रीडा उस समय नदीमें ऊपरकी ओर महानगरी माहिष्मतीका राजा सहस्रकिरण जलक्रीड़ामें आसक्त हो पहले ही से एक हजार युवतियोंके साथ नदीके जलकी मझधारमें क्रीड़ा कर रहा था और दोनों तटों पर स्थित सैन्य एवं सामन्त 'जय जय शब्दका उद्घोष कर रहे थे। (३४-३५) अनेक प्रकारके बने हुए जलयंत्रोंसे जलका निरोध करनेसे किनारों तक भरी हुई नदीमें क्रीड़ा करती हुई सहस्रकिरणकी त्रियाँ शोभित हो रही थीं। (३६) वहाँ पर वस्त्रसे अपने दोनों स्तनोंको ढाँकनेवाली एक सुन्दर स्त्रीने उत्तरीयके छीने जानेसे एकदम जलमें डुबकी लगाई और ईर्ष्या के बहाने कुपित वह अपने कोमल हाथोंमें जल भरके मनमें आनन्दित हो अपने पतिके वक्षस्थल पर फेंकने लगी । (३७-३८) इन्दोवर (नीलकमल) के दलके समान नेत्रोंवाली एक दूसरी स्त्रीने इन्दीवर लेकर एक और खीको मारा। उस दूसरी स्त्रीने भी फौरन ही सहस्रदल कमलसे उसे पीटा। (३९) छाती पर बाल चन्द्रकी सी आकृतिवाले नखक्षतको देखकर उत्तरीय छीने जानेपर दूसरी स्त्री हथेलियोंसे स्तन ढाँकती थी। (४०) वहाँ पर कोई प्रणयकुपिता सुन्दर स्त्री मौन धारण करके खड़ी थी। सिरसे प्रमाण करके पतिने उसे पुनः सन्तुष्ट किया । (४१) एक प्रियाको प्रसन्न करता है, तब तक दूसरी स्त्रियाँ रुष्ट हो गई। किसी तरह राजाने सन युवतियोंका कोप दूर किया । (४२) वक्षस्थलकी ओर खींचकर दबाई जाती तथा हाथोंसे पानी उछालनेवाली युवतियाँ १. कलिया पवरनई-मु.। २. ईसावसेण-मु०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001272
Book TitlePaumchariyam Part 1
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages432
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size13 MB
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