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________________ ११४ पउमचरियं २ एवं चिय दहवयणो, पायालंकारपु खरसमीवे । आवासिओ सुमणसो, पभूयसामन्तखन्धारो ॥ खरदूसणो वित्तो, सुणिऊण दसाणणं पुरवराओ । अह निग्गओ तुरन्तो, पेच्छइ रयणग्धदाणेणं ॥ तेण वि ससंभमं सो, गाढं सम्माण - दाणविहवेणं । पडिपूइओ सिणेहं, समयं चिय चन्दणक्खाए ॥ चोइस साहसीओ, ववियारियाण जोहाणं । दावेइ तक्खणं चिय, रक्खसनाहस्स परितुट्टो ॥ विज्जाहरो हिडिम्बो, हेहय डिम्बो य वियड तिजडो य । हय माकोडो सुनडो, उक्को किक्विन्धिनामो य ॥ तिउरामुहो य हेमो, बालो 'कोलावसुन्दरो चेव । एए अन्ने वि बहू, विज्जाहरपत्थिवा सूरा ॥ अक्खोहिणीसहस्सं, जायं मुहडाण कुलपसूयाणं । बलदप्पगबियाणं, रणरसकण्डू वहन्ताणं ॥ कुम्भ निम्भ बिहीसण इन्दह अह मेहवाहणाईया । साहीणा सयलभडा, कयाइ पासं न मुञ्चन्ति ॥ उपपन्ना रयणवरा, बहुगुणसंघायधारिणो दिवा । देवसहस्सेणं चिय, रक्खिज्जइ एकमेकेणं ॥ इन्द्रोपरि प्रस्थानम् २१ ॥ २२ ॥ २३ ॥ २४ ॥ २७ ॥ सियछत्त - चामरुद्धय-य-विजयपडाय- वेजयन्तीहिं । पुप्फविमाणारूढो, इन्दस्सुवरिं अह पयट्टो ॥ २५ ॥ गयणमग्गं ॥ २६ ॥ ग-रह-विमाण - वाह-वग्गन्ततुरङ्ग चडुलपाइकं । चलियं दसाणणबलं, उच्छायन्तं वच्चन्तस्स कमेणं, अत्थं चिय दिणयरो समल्लीणो । विञ्झइरिपबरसिहरे, सिबिरनिवेसो कओ तत्थ ॥ विज्जाबलेण रइओ, सयणा - ऽऽसणविविहपरियणावासो । गमिऊण तत्थ रति, मङ्गलतूरेहि पडिबुद्धो ॥ आहरणभूसियङ्गो, 'अह पुणरवि उज्जओ य गयणेणं । वच्चन्तो चिय पेच्छइ, विमलजलं नम्मयं विउलं ॥ इसलियपवहा, कन्थइ वरसरविमुक्कसमवेगा । कत्थइ वियडावत्ता, कल्लोलुच्छलियनलनिवहा ॥ ३० ॥ २८ ॥ २९ ॥ [ १०. १६ Jain Education International १६ ॥ १७ ॥ १८ ॥ सेना के साथ पातालालंकारपुर के समीप डेरा डाला । (१६) उधर खरदूषण भी दशाननका आगमन सुनकर फौरन ही अपने उत्तम नगर में से बाहर निकला और रत्नोंका पूजोपहार प्रदान किया। (१७) उसने भी तत्काल ही सम्मान एवं सम्पत्तिके दानसे अपनी चन्द्रनखा बहनके साथ उसकी भी अत्यन्त स्नेहपूर्वक पूजा की। (१८) उस खरदूषणने भी परितुष्ट होकर तत्काल ही इच्छानुसार रूप धारण करनेवाले चौदह हज़ार योद्धा राक्षसनाथ रावणको भेंट में दिये । (१९) विद्याधर हिडिम्ब हेय, डिम्ब विकट, त्रिजट, हय, माकोट, सुजट, उत्क, किष्किन्ध, त्रिपुर, आमुख, हेम, बाल, कोल, वसुन्धर—ये तथा इनके अतिरिक्त दूसरे विद्याधर राजा और बल एवं गर्वसे दर्पित तथा युद्ध रसकी खाज जिन्हें हो रही है ऐसे उत्तम कुलमें उत्पन्न सुभटोंसे हजारों भक्षौहिणी सेना तैयार हो गई । (२०-२२ ) कुम्भ, निशुम्भ, विभीषण, इन्द्रजीत् तथा मेघवाहन यदि सब सुभट स्वाधीन थे। वे कभी उसका साथ नहीं छोड़ते थे । (२३) उस समय अनेक गुणोंको धारण करनेवाले दिव्य रत्न उत्पन्न हुए। उनमेंसे प्रत्येक रत्न हजार हजार देवोंसे रक्षित था । (२४) For Private & Personal Use Only १९ ॥ २० ॥ श्वेत छत्र, चामर, ऊँचे उड़ती हुई ध्वजाओं और विजयपताकाओं से युक्त हो वह रावण इन्द्र पर आक्रमण करनेके लिए पुष्पक विमान में आरूढ हुआ । (२५) गज, रथ, विमान, वाहन, हिनहिनाते हुए घोड़े तथा चपल पैदल सैनिकोंसे युक्त रावणकी सेना गगनमार्गको छाती हुई चल पड़ी। (२६) क्रमशः ये आगे प्रयाण कर रहे थे कि बीचमें सूर्यास्त हो गया; अतः उन्होंने विन्ध्यगिरिके एक उत्तम शिखर पर पड़ाव डाला । (२७) अपनी विद्याके बलसे उसने शयन, भोजन तथा परिजनोंके विविध आवास बनवाये । वहाँ रात बीतने पर मंगल वाद्योंसे वह सुबह के समय जगा । ( २८ ) आभरणसे शोभित शरीरवाले तथा पुनः उद्यत रावणने आकाशमार्गसे जाते समय निर्मल जलवाली विशाल नर्मदा नदी देखी । (२९) उसमें कहीं पर सुललित प्रवाह बह रहा था, कहीं पर बन्धनरहित उत्तम सरोवर की भाँति वह समवेग थी, कहीं पर उसमें भयंकर भँवर थे, कहीं पर उछलती हुई तरंगोंसे युक्त जलसमूह था, कहीं पर १. गोवाल सुंदरी - प्रत्य० । २. अन्नावासुजभो - मु० । ३. विमलजला नम्मया विउला - मु० । ४. सुसलिलपवहा मु० । www.jainelibrary.org
SR No.001272
Book TitlePaumchariyam Part 1
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages432
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size13 MB
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