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८. २४३] ८. दहमुहपुरिपवेसो
१०१ काऊण सिरपणाम. उवविट्ठो दहमुहस्स आसन्ने । अह साहिउँ पयत्तो, पायालपुराउ निग्गमणं ॥ २२८ ।। रिक्खरया-ऽऽइच्चरया, कुलकमपरिवाडियागय नयरं । पत्ता य गहणहेउ, किकिन्धि जमभडस्सुवरिं ॥ २२९ ॥ सोऊण परबलं सो समागय निग्गओ नमो सिग्छ । अह जुज्झिउं पवत्तो, समच्छरो वाणरेहि समं ॥ २३० ॥ बहभडजीयन्तयरे, महाहवे एरिसे समावडिए । गहिओ च्चिय रिक्खरओ, आइच्चरएण समसहिओ ॥ २३१ ॥ काराविया य निरया. जमेण वेयरणिमाइया बहवे। हण-दहण-पयण-मारण-छिन्दण-भिजन्तकम्मन्ता ॥ २३२॥ समरे विनिजिया जे. वाणरसुहडा समत्तपरिवारा । ते तत्थ दुक्खमरणं, नरएसु कया कयन्तेण ॥ २३३ ।। दट्ठ जमस्स चरियं, तो हं सबायरेण तूरन्तो । एत्थाऽऽगओ नराहिव!, रिक्खरया-ऽऽइच्चरयभिच्चो ॥ २३४ ॥ एयं ते परिकहियं, वाणरकेऊण सन्तियं वयणं । ताण पहु ! दुक्खमोक्खं, करेहि परिवालणं सिग्धं ॥ २३५ ॥ वणभङ्गसमादेस, दाऊणं तस्स दूयपुरिसस्स । रयणासवस्स पुत्तो, किक्किन्धि तो गओ सिग्धं ॥ २३६ ॥ विद्ध सिया य नरया, उच्छिन्ना नरयवालया तुरियं । गन्तुं कहेन्ति सबं, जमस्स तो दहमुहागमणं ॥ २३७ ॥ सोऊण रावणं सो, समागय निग्गओ जमो सिग्छ । रहनाय-तुरङ्गसहिओ, भडचडयरनिवहमज्झत्थो ॥ २३८ ॥ पढम चिय आवडिओ. आडोवो नाम जमभडो तरियं । पत्तो अग्गिमखन्धं, बिहीसणो तस्स संगामे ॥ २३९ ॥ मुश्चइ आडोवभडो, आउहसत्थं बिहीसणस्सुवरि । रयणासवस्स पुत्तो, सरेहि सबं निवारेइ ॥ २४० ॥ सुनिसियबाणेहि रणे, बलपरिमुक्केहि तेण आडोवो । अवसारिओ य दूर, कुगओ विव मत्तहत्थीणं ॥ २४१ ॥ दह्ण पलायन्तं, आडोवं उढिओ जमो कुद्धो । चउरङ्गबलसमग्गो, रक्खससेन्नस्स आवडिओ ॥ २४२ ॥
रुद्धो रहो रहेणं, आलग्गो गयवरो सह गएणं । तुरएण सह तुरङ्गो, पाइको सह पयत्थेणं ॥ २४३ ।। उसी सभामें उतरा । (२२६-२२७) सिरसे प्रणाम करके वह दशमुखके समीप हाजिर हुआ। बादमें वह पातालपुरसे निकलनेका कारण कहने लगा। (२२८) कुलकी क्रम-परम्परासे प्राप्त अपने नगर किष्किन्धाको लेनेके लिए ऋक्षरजा और
आदित्यरजाने सुभटोंके साथ यमके ऊपर आक्रमण किया है। (२२६) शत्रुसैन्यका आगमन सुनकर यम भी शीघ्र ही निकल पड़ा और ईर्ष्यावश वह बन्दरोंके साथ युद्ध करने लगा । (२३०) बहुतसे सुभटोंके जीवनका अन्त करनेवाले ऐसे महायुद्ध में आदित्यरजाके साथ ऋक्षरजा भी पकड़ लिया गया । (२३१) जिसमें पीटना, जलाना, पकाना, मारना तथा छेदन-भेदन आदि कर्म किये जाते हैं, ऐसे वैतरणी आदि बहुतसे नरक यमने बनवाये है। (२३२) जो वानर-सुभट उस लड़ाई में हार गये थे, उन सबको परिवारके साथ उन नरकोंमें दुःखपूर्ण मरणके लिये यमने डाल दिया है। (२३३) हे राजन् ! यमका ऐसा आचरण देखकर ऋक्षरजा और आदित्यरजाका भृत्य मैं जितनी जल्दी हो सकी उतनी जल्दी यहाँ आया हूँ। (२३४) हे प्रभो! वानरकेतुने जो कुछ कहा था वह मैंने आपसे निवेदन किया। शीघ्र ही दुःखसे मुक्त करके उनको आप रक्षा करें। (२३५) घावोंको मिटानेके लिये उस दूतको योग्य आदेश देकर रत्नश्रवाके पुत्र रावणने किष्किन्धिके ऊपर शीघ्र ही धावा बोल दिया । (२३६) उसने वहाँ पहुँचते ही नरक तोड़-फोड़ डाले और नरकपालोंको उखाड़ फेंका। उन सबने जल्दी ही जाकर यमसे दशमुखके आगमनकी बात कही । (२३७)
रावणका आगमन सुनकर सुभटोंके सैन्यसमूहके बीच स्थित वह यम रथ, हाथी एवं घोड़ोंके साथ शीघ्र ही बाहर निकला । (२३८) सर्वप्रथम यमका आटोप नामका सुभट जल्दी-जल्दी आया। संग्राममें विभीषण उसकी अग्रसेनाके पास पहुँचा। (२३६) सुभट भाटोप विभीषणके ऊपर जो-जो आयुध एवं शस्त्र छोड़ता था, रत्नश्रवाका पुत्र उन सबका बाणोंसे प्रतीकार करता था । (२४०) युद्धमें विभीषण द्वारा बलपूर्वक फेंके गये अत्यन्त तीक्ष्ण वाणोंसे, मदोन्मत्त हाथियों द्वारा दूर भगाये गये दुष्ट हाथीकी तरह, वह दूर भगा दिया गया । (२४१) आटोपको भागते देख क्रुद्ध यम उठ खड़ा हुभा और चतुरंगिणी सेनाके साथ उसने राक्षससैन्यके ऊपर धावा बोल दिया । (२४२) रथसे रथ भिड़ गये तथा हाथीसे हाथी, घोड़ेसे घोड़ा और पैदलके साथ पैदल जुट गये । (२४३) एक क्षणमें तो योद्धाओंके शस्त्रोंके प्रहारोंसे
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