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पउमचरियं
[८. १८४अह तत्थ रयणिसमए, सयणिज्जे महरिहे सुहपसुत्तो । हरिओ वेगवईए, विजाहरवरजुवाणीए ॥ १८४ ॥ निद्दाखयम्मि दिट्ठा, महिला तो बन्धिऊण घणमुडिं। आयामिय सो पुच्छइ, किं व निमित्त मए हरसि? ॥ १८५॥ सा भणइ सुणसु नरवर !, नयरं सूरोदयं ति नामेणं । विज्जाहराण राया, इन्दधणू तत्थ परिवसइ ॥ १८६ ॥ भज्जा से सिरिकन्ता, जयचन्दा तीऍ कुच्छिसंभूया । सा पुरिसवेसिणी पहु ! अवमन्नइ पिउमयं निच्चं ॥ १८७ ॥ जो जो पडम्मि लिहिओ, तीऍ मए दरिसिओ नरवरिन्दो । सयलम्मि भरहवासे, न कोइ मणवल्लहो जाओ॥ १८८ ॥ अह तुज्झ निययरूवं, पडए लिहिऊण दरिसियं तीए । मयणसरपूरियङ्गी, सहसा आयल्लयं पत्ता ॥ १८९॥ एएण सह विसिट्टे, नइ न य भुञ्जामि कामभोगेहं । मरणिज्ज होहि सिही, नियमो पुण अन्नपुरिसस्स ।। १९० ॥ तीऍ पुरओ पइण्णा, आरुहिया दुक्करा मए सामि! । जइ तं नाऽऽणेमि लहुं, तो जलणसिहं पविस्से हैं ॥ १९१ ॥ तुज्झ पसाएण पहू!, करेमि जीयस्स पालणं एहि । पूरेमि च्चिय सहसा, महापइन्ना अविग्घेणं ॥ १९२ ॥ सूरोदयम्मि नगरे, नेऊण निवेइओ नरिन्दस्स । वत्तं पाणिग्गहणं, कन्नाएँ समं कुमारस्स ॥ १९३ ॥ संपुण्णवरपइन्ना, वेगवई पूइया य विहवेणं । उण्णयमाणा य पुणो, जाया जसमाइणी लोए ॥ १९४ ॥ तीए मेहुणयदुवे, रुट्टा सोऊण तीऍ कल्लाणं । विज्जाहराऽइचण्डा, गङ्गाहर-महिहरा नाम ॥ १९५ ॥ भडचडयरेण महया, हय-गयसन्नद्ध-बद्धधयचिन्धा । जुज्झस्स कारणटुं, पत्ता सूरोदयं नयरं ॥ १९६ ॥ सोऊण य हरिसेणो, सत्तभडे आगए बलसमिद्धे । विज्जाहरेहि सहिओ, विणिग्गओ अहिमुहो तुरियं ॥ १९७ ॥ आवडियं चिय जुझं, बहुपहरपडन्ततूरसद्दालं । निवडन्तगय-तुरङ्ग, नच्चन्तकबन्धपेच्छणयं ॥ १९८ ॥
एक बार रातके समय अत्यन्त मूल्यवान शय्यापर वह सुखपूर्वक सोया हुआ था। उस समय वेगवती नामकी एक विद्याधर युवतीने उसका अपहरण किया। (१८४) नींद उड़नेपर उसने उस विद्याधर स्त्रीको देखा। इसपर मजबत मुटठी बाँधकर और उसकी ओर तानकर उसने पूछा कि किसलिए तुम मेरा अपहरणकर रही हो? (१८५) इसपर उसने कहा कि हेनरवर ! तुम सुनो। सूर्योदय नामका एक नगर है। उसमें इन्द्रधनु नामका विद्याधरीका एक राजा रहता है। (१८६) उसकी भार्याका नाम श्रीकान्ता है। उसकी कुक्षिसे उत्पन्न जयचन्द्रा नामकी एक कन्या है। हे प्रभो! पुरुषका द्वेष करनेवाली वह सदैव अपने पिताका अपमान करती है। (१८७) सम्पूर्ण भरतक्षेत्रमें जितने राजा थे उन सबका चित्रपटपर चित्र खींचकर मैंने उसे दिखलाया, परन्तु उसके मनको कोई भी पसन्द न आया। (१८८) पर तुम्हारा रूप पटपर चित्रित करके जैसे ही मैंने उसे दिखाया वैसे ही वह मदनके बाणसे बींध गई और बेचैनी महसूस करने लगी । (१८९) उसने कहा कि यदि मैं इसके साथ विशिष्ट काम भोगोंका उपभोग न कर सकूँ तो मेरा अग्निमें मरण होगा। मुमे अन्य पुरुषकी बाधा है। (१९०) हे स्वामो! मैंने उसके सामने दुष्कर प्रतिज्ञा की है कि यदि मैं जल्दी ही उसे न ला सकूँ तो भागकी लपटोंमें मैं प्रवेश करूँगी । (१९१) हे प्रभो! आपके प्रसादसे अब मैं अपने जीवनकी रक्षा करूँगी और निर्विघ्न रूपसे मैं अपनी महाप्रतिज्ञा एकदम पूर्णकर सकूँगी। (१९२) सूर्योदय नगरमें ले जाकर राजाके सम्मुख उसे उपस्थित किया गया। बादमै उस कन्याके साथ कुमारका पाणिग्रहण हुआ। (१९३) पूर्णप्रतिज्ञ वेगवतीका भी वैभवप्रदान द्वारा सम्मान किया गया। ऊँचा मान पाकर वह भी लोकमें यशस्विनी हुई । (१९४)
उसके जयचन्द्राके) विवाहके बारेमें सुनकर उसके फूफे के अत्यन्त क्रोधी गंगाधर एवं महीधर नामके दो विद्याधर लड़के रुष्ट हो गये। (१९५) वे बड़ी भारी सुभट-सेनाके साथ तथा हाथी एवं घोड़ोंके समूहके ऊपर बाँधी गई ध्वजाओंके चिह्नसे युक्त हो युद्धके लिए सूर्योदयनगरके पास आ पहुँचे । (१९६) शत्रुओंके बलवान् सुभटोंका आगमन सुनकर विद्याधरोंके साथ हरिषेण भी उनका सामना करनेके लिए जल्दी ही बाहर निकला । (१९७) अनेक विध शस्त्रोंकी टकराहट तथा युद्धवाद्योंके कारण कोलाहलयुक्त, हाथी और घोड़े जिसमें गिर रहे हैं तथा नाचते हुए घड़ोंके कारण नाटककी
१. पिययरं निच्च-प्रत्य.। २. तौसे-प्रत्य।
2. उसकी भार्याका जो सूर्योदय नामाया कि किसलिए
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