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पउमचरियं उभयबलतूरसद्दो, गयगज्जिय-तुरयहिंसियरवो य | वित्थरिऊणाऽऽढत्तो, कायरपुरिसाण भयजणणो ॥ अह दुक्किउं पवत्ता, दोण्णि वि सेन्नेसु हरिसिया सुहडा । सन्नद्धबद्धकवया, सुणिरूवियपहरणा - SSवरणा ॥ अह ताण समावडियं, जुज्झं गुञ्जवरपवयस्सुवरिं । वेसमण - दहमुहाणं, दोन्हं पि उहष्णसेन्नाणं ॥ सर-झसर-सत्ति-सबल-करालकोन्तेसु खिप्पमाणेसु । चकेसु पट्टिसेसु य, छन्नं गयणङ्गणं सहसा ॥ रहिया रहिए समं गयमारूढा समं गयत्थेसु । जुज्झन्ति आसवारा, आसवलग्गेसु सह सुहडा ॥ ९६ ॥ खग्गेण मोग्गरेण य, चक्केण य केइ अभिमुहावडिया । पहरन्ति एकमेक्कं, सामियकज्जुज्जया सुहडा ॥ ९७ ॥ जुज्झन्ताण रणमुहे, चडक्कपहरोवमेसु पहरेसु । तक्खणमेत्तेण कयं नच्चन्तकचन्धपेच्छणयं ॥ ९८ ॥ अह रक्खसाण सेन्नं, चक्कावत्तं व भामियं सहसा । जक्खभडेसु समत्थं, दिहं चिय दहमुहेण रणे ॥ ९९ ॥ दढचावगहियहत्थेण, तेण विसिहेसु मुच्चमाणेणं । गरुयपहाराभिहया, जह नक्खभडा कया विमुहा ॥ १०० ॥ न य सो अत्थि रहवरो, नक्खबले गय-तुरङ्ग-पाइको । विसिहेमु जो न भिन्नो, दहवयणकरम्गमुक्केसु ॥ द हूण समरमज्झे, एज्जन्तं रावणं सवडहुत्तं । तिबो बन्धवने हो, नक्खनरिन्दस्स उप्पन्नो ॥ संवेगसमावन्नो, बाहुबली नह महाहवे पुवं । चिन्तेऊण पवत्तो, धिरत्थु संसारवासम्मि ॥ अइमाण गबिएणं, विसयविमूढेण एरिसं कज्जं । रइयं बन्धुवहत्थं, अकित्तिकरणं च लोगम्मि ॥ भो भो दसाणण ! तुमं, मह वयणं सुणसु ताव एयमणो । मा कुणसु पावकम्मं, कएण खणभङ्गुरसिरीए ॥ अह्यं तुमं च रावण !, पुत्ता एक्कोयराण बहिणीणं । न य बन्धवाण जुज्जइ, संगामो एकमेकाणं ॥ काऊण जीवघायं, विसयसुहासाऍ तिबलोहिल्ला | वच्चन्ति पुण्णरहिया, पुरिसा बहुवेयणं नरयं ॥
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लगी । (९२) कवच धारण करके तैयार खड़े, प्रहरणोंके आवरणसे भलीभांति दिखाई देनेवाले तथा हर्षमें आये हुए दोनों सेनाओंके सुभट एक दूसरेके समीप आने लगे । (९३) तगड़ी सेनावाले इन्द्र एवं दशमुख दोनोंका युद्ध गुंजावर पर्वतके ऊपर शुरू हुआ। (९४) फेंके जानेवाले शर, मुसर ( शस्त्रविशेष ), शक्ति, सब्बल ( शस्त्रविशेष) भयंकर भालोंसे तथा चक्र एवं पट्टिसोंसे ( शस्त्र विशेष ) सारा आकाशरूपी आँगन छा गया । ( ९५ ) रथी रथियोंके साथ, गजारूढ़ गजारूढ़ोंके साथ तथा घुड़सवार घुड़सवारों के साथ - इस तरह सब सुभट युद्ध करने लगे । (९६) अपने मालिकके कार्य में उद्यत कई सुभट सामने आकर एक दूसरेका तलवार, मुद्गर व चक्रसे वध करने लगे । (९७) विजलोकी तरह प्रहार करनेवाले हथियारोंसे जूझनेवालोंने फौरन ही युद्धभूमिको नाचते हुए धड़ोंके कारण नाटक-भूमिसा बना दिया । (६८) इसके अनन्तर सहसा अपने सैन्यको चक्रकी भाँति घुमाकर दशमुख उसे रणभूमिमें यक्ष-सुभटोंके समक्ष ले आया । (९९) बाद में धनुषको मजबूती से हाथ में पकड़े हुए उसके द्वारा फेंके गये बाणोंकी जबरदस्त चोटसे घायल यक्ष-योद्धा मान लड़ाई से विमुख कर दिये गये । (१००) यक्षसैन्य में ऐसा कोई भी रथी, गजारूढ़, घुड़सवार या पैदल नहीं था जो दशवदन के हस्तामसे छोड़े गये बाणोंसे क्षत न हुआ हो । ( १०१)
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युद्धभूमिमें रावणको समक्ष आते हुए देखकर यक्षराजको तीव्र बन्धुप्रेम उत्पन्न हुआ । (१०२) पूर्वकालमें जिस प्रकार बाहुबलिको महायुद्ध में वैराग्य हुआ था उसी प्रकार वह सोचने लगा कि संसारवासको धिकार है। (१०३) मानसे अत्यन्त गर्वित तथा विषय में विमूढ़ मैं बन्धुजनोंके वध के लिए तथा लोकमें अकीर्त्तिकर कार्य कर रहा हूँ। (१०४) ऐसा सोचकर वह कहने लगा कि, हे दशानन ! तुम ध्यान लगाकर मेरा कहना सुनो - क्षणभंगुर लक्ष्मीके लिए तुम पापकर्म मत करो । ( १०४) हे रावण ! मैं और तुम - हम दोनों सगी बहनोंके पुत्र हैं, अतः भाइयोंका एक दूसरेके साथ लड़ना योग्य नहीं है । (१०६) अत्यन्त लम्पट और पुण्यहीन पुरुष विषय-सुखकी आशासे जीवका वध करके अत्यन्त वेदनापूर्ण नरकमें जाते हैं । (१०७) अज्ञानी पुरुष एक दिनके
१. गुअयर — प्रत्य० ।
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