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________________ ८.६२] ८. दहमुहपुरिपवेसो वारेऊण समत्थो, आउहनिवह दसाणणो समरे । तो मुयइ तामसत्थं, कज्जलघणकसिणसच्छायं ॥ ५० ॥ काऊण नट्टचेट्टे. विज्जाहरपत्थिवे बलसमग्गे। जमदण्डसच्छहेहिं, अह बन्धइ नागपासेहिं ॥ ५ ॥ वयणेण नववहूणं, मुक्का विज्जाहरा सपरिवारा । पुणरवि करेन्ति तुट्टा, कल्लाणमहूसवं परमं ॥ ५२ ॥ दिवसेसु तीसु वत्ते, कल्लाणे ताण पवरकन्नाणं । विज्जाहररायाणो, गया य निययाइँ ठाणाइं ॥ ५३ । एत्तो नववहसहिओ. दसाणणो पंवरइद्रिसंपन्नो । पत्तो सर्यपहपुरं, सयणनणाणन्दिओ मुइओ ॥ ५४ ॥ अह कुम्भपुरे राया, नामेण महोदरो ति विक्खाओ । तडिमाला तस्स सुया, सुरूवनयणाएँ उप्पन्ना ॥ ५५ ॥ वररूवजोवणधरी, रविकिरणविउद्धपङ्कयदलच्छी । विविहगुणाणुप्पत्ती, सा महिला कुम्भकण्णस्स ॥ ५६ ॥ तत्थेव कुम्भनयरे, केण वि सद्दो को सिणेहेणं । दठूण पवरकन्ने, तेणं चिय कुम्भकण्णो त्ति ॥ ५७ ॥ धम्माणुरागरत्तो, सबकला-ऽऽगमविसारओ धीरो । अन्नह खलेसु खाई, नीओ च्चिय मूढभावेण ॥ ५८ ॥ आहारो वि य सुइओ, सुरहिसुयन्धो मणोजनिप्फन्नो । कालम्मि हवइ निद्दा, धम्मासत्तस्स परिसेसं ॥ ५९ ॥ परमत्थमजाणन्ता, पुरिसा पावाणुरायबुद्धीया । निरयपहगमणदच्छा, विवरीयत्थे विकप्पन्ति ।। ६० ॥ दक्खिणसेढीऍ ठियं, नयरं जोइप्पभं तहिं राया। वीरो विसुद्धकमलो, नन्दवई गेहिणी तस्स ॥ ६१ ॥ धूया पङ्कयसरिसी, पत्ता य पई बिभीसणकुमारं । जोवणगुणाणुरूवं, रइ छ कामं समल्लीणा ॥ ६२ ॥ करके काजलके सदृश अत्यन्त कृष्ण वर्णवाले तामस अस्त्रको छोड़ा। (५०) विद्याधर राजाके समग्र सैन्यको निश्चेष्ट करके यमके दण्ड जैसे नागपाशोंसे उसे बाँध लिया । (५१) अपनी नववधुओंको दिये गए वचनके अनुसार उसने विद्याधरोंको परिवारके साथ मुक्त कर दिया। आनन्दमें आये हुए उन्होंने पुनः विवाह-महोत्सव मनाया । (५२) उन उत्तम कन्याओंका तीन दिन तक विवाह-महोत्सव मनानेके बाद ये विद्याधर राजा अपने अपने स्थानों पर चले गये। (५३) इसके उपरान्त उत्कृष्ट ऋद्धिसे युक्त और घरके लोगोंको आनन्द देनेवाला वह दशानन मुदित होकर नववधुओंके साथ स्वयम्प्रभनगरमें आ पहुँचा । (५४) कुम्भकर्ण और विभीषणका विवाह तथा इन्द्रजीत आदिका जन्म : ___ कुम्भपुरमें महोदर नामका एक विख्यात राजा था। सुरूपनयनासे उत्पन्न तडित्माला नामको उसकी एक पुत्री थी । (५५) सुन्दर रूप व यौवनको धारण करनेवाली, सूर्यकी किरणोंसे विकसित पंकजदलकी-सी शोभावाली तथा विविध गुणोंके संयोग रूप वह कुम्भकर्णकी पत्नी हुई। (५६) उसी कुम्भनगरमें उसके सुन्दर कानोंको देखकर किसीने स्नेहसे उसे बुलाया। इससे वह कुम्भकर्ण कहलाया। (५७) वह यद्यपि धीर, धर्मानुरागी तथा समग्र कलाओं और शास्त्रोंमें पारंगत था, तथापि दुष्ट लोगोंने मूढतावश दूसरी तरहसे-अधर्मी, अरसिक और अशास्त्रज्ञ रूपसे प्रसिद्ध कर रखा है। (५८) उसका आहार भी पवित्र, सुगन्धित पदार्थों के कारण मीठी महकवाला और सुन्दर रीतिसे निष्पन्न होता था। यह भी निश्चित है कि धर्ममें आसक्त कुम्भकर्ण यथासमय नींद लेता था। (५९) फिर भी परमार्थको न जाननेवाले, पापमें ही जिनकी बुद्धि अनुरक्त रहती है ऐसे तथा नरकके मार्ग पर चलने में दक्ष पुरुष विपरीत अर्थोंकी भी कल्पना करते हैं। (६०) __ दक्षिणश्रेणीमें ज्योतिःप्रभ नामका एक नगर है। वहाँ विशुद्धकमल नामका एक वीर राजा था। उसकी भार्याका नाम नन्दवती था। (६१) उसकी लड़कीका नाम पंकजसदृशी था। कामदेवमें लीन रतिकी भाँति उसने यौवन एवं रूपमें अनुरूप विभीषणकुमारको पति रूपसे प्राप्त किया। (६२) १. परमइड्डि-प्रत्य.। २. जणेसु-प्रत्य० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001272
Book TitlePaumchariyam Part 1
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages432
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size13 MB
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