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पउमचरियं
[५. १४५तीर्थङ्कराःभणइ जिणो वइकन्तो, उसभो नामेण पढमतित्थयरो १ । जेणेत्थ भरहवासे, लोगस्स'निदेसिओ धम्मो ॥ १४५ ।। सो ठविय सुयं रज्जे पवज्जं गेण्हिऊण कालगओ। बीओ य वट्टमाणो, अजिओ हं तेण पडितल्लो२॥१४६ ॥
तह संमवा३ऽभिणन्दण४ सुमई५ पउमप्पहो६ सुपासो७ य । ससि८ पुप्फदन्त९ सीयल१० सेयंसो११ वासुपुज्जो य१२ ॥ १४७॥ विमल१३मणन्तइ१४ धम्मो१५ सन्ती१६ कुन्थू१७ अरो१८ य मल्ली य१९ ।
मुणिसुबय२० नमि२१ नेमि२२ पासो२३ वीरो२४ य तिन्थयरो ॥ १४८ ॥ एए बावीस जिणा, होहिन्ति कमेणऽणागए काले । ताणं तु चक्कवट्टी, सन्ती कुन्थू अरो चेव ॥ १४९ ॥ उत्तमकुलसंभूया, सबै खीरोयवारिअहिसित्ता । सबै वि मोक्खगामी, केवलनाणी भवे सबे ॥ १५० ॥ एए चउवीस जिणा, नामेहि जगुत्तमा समक्खाया । निसुणेहि चक्कवट्टी, जहक्कम कित्तइस्सामि ॥ १५१ ॥
मपतं
चक्रिणःभरहो य चक्कवट्टी१ समईओ संपयं तुम सगरो२ । अवसेसा चक्कहरा, होहिन्ति अणागए काले ॥ १५२ ॥
मघवं३ सणंकुमारो४, सन्ती५ कुन्थू६ अरो७ सुभूमो८ य ।
पउम९. हरिसेणनामो१०, जयसेणो११ बम्भदत्तो य१२ ॥१५३॥ अयलो१ विजओर भद्दो३, सुप्पभ४ सुदंसणो य नायबो५।आणन्दो६ नन्दणो७ पउमो ८ नवमो रामो य९ बलदेवो ॥१५४॥ होही तिविट्ठ १ दुविट्ठ२, सयंभु३ पुरिसोत्तमो४ पुरिससीहो५। पुरिसवरपुण्डरीओ६. दत्तो७ नारायणो८ कण्हो९ ॥१५५॥ पढमो आसग्गीवो१, तारगर मेरग३ निसुम्भ४ महुकेढो५ । बलि६ पल्हाओ७ रावण ८ तह य जरासिन्धु९ पडिसत्त् ॥१५६॥ एए महाणुभावा, पुरिसा अवसप्पिणीऍ कालम्मि । एत्तियमेत्ता य पुणो, हवन्ति ऊसप्पिणीए वि ॥१५७॥
धर्मका उपदेश दिया था। (१४५) उन्होंने अपने पुत्रको राज्य पर स्थापित करके दीक्षा अंगीकार की थी। बादमें वह मुक्त हए। उन्हींके समान दूसरा तीर्थकर मैं इस समय विद्यमान हूँ। (१४६) भविष्यत्कालमें सम्भव, अभिनन्दन, सुमति, पद्मप्रभ, सुपाव, चन्द्रप्रभ, पुष्पदन्त, शीतल, वासुपूज्य, विमल, अनन्त, धर्म, शान्ति, कुन्थु, अमर, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमि, नेमि, पार्श्व तथा महावीर स्वामी-ये बावीस जिन क्रमशः होंगे। इनमें से शान्ति, कुंथु तथा अर चक्रवर्ती भी होंगे। (१४७-५९) ये सब उत्तम कुलमें उत्पन्न होंगे, क्षीरसागरके जलसे उन सबका अभिषेक होगा, ये सब मोक्षगामी व केवलज्ञानी होंगे । (१५०) विश्वमै उत्तम पुरुषरूप इन चौबोस जिनोंका मैंने नामपूर्वक निर्देश किया। अब चक्रवर्तियोंके बारेमें सुनो। मैं उनका यथाक्रम वर्णन करता हूँ। (१५१)
भरत चक्रवर्ती पहले हो चुके हैं। इस समय दूसरे तुम हो। बाक़ीके मघवा, सनत्कुमार, शान्ति, कुन्थ, अर, सुभूम, पद्म, हरिषेण, जयसेन, ब्रह्मदत्त ये चक्रवर्ती अनागत कालमें होंगे। (१५२-५३) अचल, विजय, भद्र, सुप्रभ, सुदर्शन, आनन्द. नन्दन, पद्म तथा बलराम-ये नौ बलदेव होंगे। (१५४) त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयम्भू, पुरुषोत्तम, पुरुपसिंह, पुरुषवर पुण्डरीक, दत्त, नारायण और कृष्ण ये नौ वासुदेव होंगे। (१५५) अश्वग्रीव, तारक, मेरक, निशुम्भ, मधुकैटभ, बलि, प्रह्लाद, रावण तथा जरासन्ध ये वासुदेवके विरोधी-प्रति वासुदेव होंगे। (१५६) ये महापुरुष अवसर्पिणी कालके हैं। उत्सर्पिणी कालमें भी इतने ही महापुरुष होते हैं । (१५७)
१. निवेइओ-प्रत्य । २. विजओ सुप्पभ सुदंसणो चेव होइ नायब्बो-प्रत्य० ।
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