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हरिवंशपुराणे मेघप्रमो मघायोध्या प्रियङ्गश्च सुमङ्गला । सुमतिः 'सुमतिं नित्यं संमेदश्च दिशन्तु वः ॥१८॥ कौशाम्बी धरणश्चित्रा सुसीमा जिनपुङ्गवः । पद्मप्रमः प्रियङ्गश्च मङ्गलं वः स पर्वतः ॥१८॥ पृथिवी सुप्रतिष्ठोऽस्य काशी वा नगरी गिरिः। स विशाखा शिरीषश्च सुपार्श्वश्च जिनेइतरः ॥१८॥ वन्द्या चन्द्रपुरो चन्द्रप्रमो नागतरुगिरिः । सोऽनुराधा महासेनो लक्ष्मणा जननी सताम् ॥१८९॥ काकन्दी पुष्पदन्तश्च रामा सुग्रीवभूपतिः । मूलभं शालिवृक्षश्च सगिरिभृतयेऽस्तु वः ॥१९०॥ महिला प्रथमाषाढा प्लक्षो दृढरथो नृपः । सुनन्दा शीतलः शैलः स एव हितचेतसः ॥१९१॥ विष्णुश्रीविष्णुराजश्च सिंहनादपुरं जिनः । श्रावणः श्रेयान् शं दद्यस्तिन्दुकः स च भूधरः ॥१९२॥ चम्पा जन्मनि मुक्तोऽभद्वासुपूज्यो जयाधिपः । पाटला वसुपूज्यश्च पूज्याः शतभिषापि च ॥१९३॥ शर्मा च कृतवर्मा च जम्बूः प्रोष्ठपदोत्तरा । काम्पिल्यं स गिरिः शल्यं विमलचोद्धरन्तु वः ॥१९४॥ साकेता सिंहसेनश्च रेवत्यश्वस्थपादपः । पान्तु सर्वयशाः सोऽदिरनन्तश्चापि वः सदा ॥१९५॥ धर्मश्च दधिपर्णश्च मानुराजश्च सुव्रता । पुष्यो रनपुर सोऽदिर्ध बुद्धिं ददातु वः ॥१९॥ ऐरा च विश्वसेनश्च भरणीमपुरं तरुः। नन्दीश्च शान्तिनाथश्च सोडगः शान्ति दिशन्तु वः ॥१९॥ सोऽगो नागपुरं सूर्यः श्रीमती कृत्तिका तथा । तिलकश्च तकः कुन्थुर्मथ्नन्तु दुरितानि वः ॥१९॥
और सम्मेदगिरि निर्वाणक्षेत्र ये सज्जनोंके आनन्दके लिए हों ॥१८५॥ मेघप्रभ पिता, मघा नक्षत्र, अयोध्या नगरी, प्रियंगु वृक्ष, सुमंगला मातो, सम्मेदशिखर निर्वाणक्षेत्र और सुमति जिनेन्द्र ये सब तुम्हें सुमति-सद्बुद्धि प्रदान करें ।।१८६।। कौशाम्बी नगरी, धरण पिता, चित्रा नक्षत्र, सुसीमा माता, पद्मप्रभ जिनेन्द्र, प्रियंगु वृक्ष और सम्मेद शिखर निर्वाणक्षेत्र ये सब तुम्हारे लिए मंगलरूप हों ॥१८७॥ पृथिवी माता, सुप्रतिष्ठ पिता, काशी नगरी, सम्मेद शिखर निर्वाणक्षेत्र, विशाखा नक्षत्र, शिरीष वृक्ष और सुपाश्वं जिनेन्द्र ये सब तुम्हारे लिए मंगलस्वरूप हों ॥१८८।। चन्द्रपुरी नगरी, चन्द्रप्रभ जिनेन्द्र, नागवृक्ष, सम्मेदशिखर निर्वाणक्षेत्र, अनुराधा नक्षत्र, महासेन पिता और लक्ष्मणा माता ये सब सज्जनोंके लिए वन्दना करने योग्य हैं ।।१८९॥ काकन्दी नगरी, पुष्पदन्त भगवान्, रामा माता, सुग्रीव पिता, मूल नक्षत्र, शालि वृक्ष और सम्मेदशिखर पर्वत ये सब तुम्हारे वैभवके लिए हों ॥१९०॥ भद्रिला पुरी, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र, प्लक्ष वृक्ष, दृढरथ राजा पिता, सुनन्दा माता, शीतलनाथ जिनेन्द्र और सम्मेदगिरि निर्वाणक्षेत्र ये सब तुम्हारा हित चाहनेवाले हों ॥१९१॥ विष्णुश्री माता, विष्णुराज पिता, सिंहनाद पुर, श्रवण नक्षत्र, श्रेयांस जिनेन्द्र, तेंदूका वृक्ष और सम्मेदशिखर पर्वत ये सब तुम्हें सुख प्रदान करें ॥१९२॥ जन्मभूमि तथा निर्वाणभूमि चम्पानगरी, वासुपूज्य जिनेन्द्र, जया माता, चैत्यवृक्ष पाटला, वसुपूज्य पिता और शतभिषा नक्षत्र ये सब पूजनीय हैं ॥१९३।। शर्मा माता, कृतवर्मा पिता, जामुन चैत्यवृक्ष, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, काम्पिल्य नगरी, सम्मेदशिखर निर्वाणक्षेत्र और श्री विमलनाथ भगवान् ये सब तुम्हारे शल्यको दूर करें ॥ १९४ ॥ अयोध्या नगरी, सिंहसेन पिता, रेवती नक्षत्र, पीपल चैत्यवृक्ष, सर्वयशा माता, सम्मेदशिखर निर्वाणक्षेत्र और अनन्तनाथ जिनेन्द्र ये सदा तुम्हें सद्बुद्धि प्रदान करें ॥ १९५ ॥ धर्मनाथ जिनेन्द्र, दधिपर्ण चैत्य वृक्ष, भानुराज पिता, सुव्रता माता, पुष्य नक्षत्र, रत्नपुर नगर और सम्मेदशिखर सिद्धिक्षेत्र ये सब तुम्हें धर्मबुद्धि देवें ॥ १९६ ।। ऐरा माता, विश्वसेन पिता, भरणी नक्षत्र, हस्तिनापुर नगर, नन्दी चैत्यवृक्ष, शान्तिनाथ जिनेन्द्र और सम्मेदशिखर निर्वाणक्षेत्र ये सब तुम्हें शान्ति प्रदान करें ॥ १९७ ॥ सम्मेदशिखर निर्वाणक्षेत्र, हस्तिनापुर नगर, सूर्य पिता, श्रीमती माता, कृत्तिका नक्षत्र, तिलक वृक्ष
१. सुमतिनित्यं म. । २. सर्मा च ङ, म.। ३. इभपुरं-हस्तिनापुरम् । ४. स एव वृक्षः ।
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