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हरिवंशपुराणे तत्तत्र स्थितयोस्तयोः सुखरसं प्रेमप्रसकारमनोः
साकल्येन जनो जिनप्रवचनज्ञो हि प्रवक्तुं क्षमः ॥१५४॥
इत्यरिष्टनेमिपुराणसंग्रहे हरिवंशे जिनसेनाचार्यकृती नीलयशोलाभवर्णनो
नाम द्वाविंशः सर्गः ॥२२॥
पूर्वक रहनेवाले वसुदेव और नीलंयशाको जो सुख उपलब्ध था उसका सम्पूर्ण रूपसे वर्णन करने के लिए जिन प्रवचनका ज्ञाता श्रुतकेवली ही समर्थ हो सकता है ।।१५४।।
इस प्रकार अरिष्टनेमिपुराणसंग्रहसे युक्त, जिनसेनाचार्य रचित हरिवंशपुराणमें नीलंयशाके
लाभका वर्णन करनेवाला बाईसवाँ सर्ग समाप्त हुआ ॥२२॥
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