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Hariwamsha Purana - Subject Matter The subject matter is as follows: 1. The revelation of the inner feelings of Satyabhama and other queens, and the depiction of their past lives. 2. The description of King Padmanabha of Amarakankapuri in Dhatakirhanda, who reached near the divine voice of Lord Bhagavan. 3. The description of the renunciation of Gajkumar by King Padmanabha, and the rescue of the sleeping Draupadi by Lord Neminātha. 4. The anger of Lord Krishna towards the Pandavas, due to which they went to the shores of the southern ocean and settled there, leaving behind the daughter of the Brahmin Somasharma. 5. The description of the liberation of the Pandavas through the practice of Shukla-dhyana, despite the attack of fire by the angry Lord. 6. The celebration of the nirvana festival of Lord Neminātha in the assembly of Lord Krishna. 7. The description of the drowning of Dvaraka due to the curse of the sage, and the defeat of Lord Krishna by the power of Lord Neminātha. 8. The description of the tapasya and the miraculous origin of knowledge at the feet of Lord Neminātha. 9. The description of the divine assembly of Lord Neminātha.
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________________ हरिवंशपुराणे विषय विषय पृष्ठ भावना प्रकट की। और उसका चित्र बनाकर सत्यभामा आदि रानियोंके भवान्तरोंका वर्णन धातकीखण्डकी अमरकंकापुरीके राजा पद्म भगवानकी दिव्यध्वनिमें हआ ७०६-७१५ नाभके पास पहुँचे । राजा पद्मनाभने संगम गजकूमारके निर्वेदका वर्णन । भगवान् नामक देवके द्वारा सोती हई द्रौपदीका अप नेमिनाथ एक बार रैवतकगिरिपर आये । हरण करा लिया । अन्तमें पता चलनेपर श्रीकृष्णने उनसे वेशठशलाकापुरुषोंका विवश्रीकृष्ण तथा पाण्डव भी देवकी की सहायता से रण पूछा। तब भगवान्ने उन सबका वहाँ पहुँचे और राजा पद्मनाभको दण्डित कर विस्तारसे वर्णन किया ७१६-७५३ द्रौपदीको वापस ले आये । असामयिक हँसी एकषष्टितम सर्ग के कारण कृष्ण पाण्डवोपर अप्रसन्न हो गये जिससे पाण्डव दक्षिणसमुद्र के तटपर चले गये सोमशर्मा ब्राह्मणकी कन्याको छोड़ गजकुमार और मथुरा नगरी बसाकर रहने लगे ६०९-६१५ मनि हो गये थे इसलिए उसने रुष्ट होकर पञ्चपञ्चाशत्तम सर्ग उनके ऊपर अग्निका उपसर्ग किया। परन्तु वे शक्लध्यानसे कर्मक्षय कर मोक्ष पधारे. देवोंने श्रीकृष्णकी सभामें नेमिकुमार गये और प्रसंग उनका निर्वाणोत्सव मनाया । श्रीकृष्णके पूछनेवश 'सबसे अधिक बलवान् कौन है' इसकी पर भगवान्ने बारह वर्ष बाद द्वारिकादाहकी परीक्षा हुई, कृष्ण नेमिनाथके बलसे परास्त बात कही और प्रयत्न करनेके बाद भी द्वैपाहो गये । यादवोंकी जलक्रीड़ाका वर्णन । यन मुनिके क्रोधसे द्वारिका भस्म हो गयी ७५४-७६२ नेमिनाथके विवाहके लिए स्वीकृति पाकर कृष्णने विवाहके लिए राजीमतोको निश्चित द्विषष्टितम सर्ग किया । बारात जूनागढ़ जा रही थी, परन्तु श्रीकृष्ण और बलदेव भ्रमण करते-करते मार्गमें रुद्ध पशुओंको देख कुमारको वैराग्य कौशाम्ब वनमें पहुँचे, वहाँ कृष्णको प्यासने आ गया और रसमें भंग हो गया ६१६-६३४ सताया। बलदेव पानीके लिए गये और षट्पञ्चाशत्तम सर्ग श्रीकृष्ण पीताम्बर ओढ़कर पड़ गये,इसी समय भगवान् नेमिनाथकी तपश्चर्या और केवल धोखेसे जरत्कुमारके बाणसे उनके पदतलमें ज्ञानकी उत्पत्तिका वर्णन चोट लगी । उत्तम भावनाओंका चिन्तवन करते-करते कृष्णकी मृत्यु हो गयी। ७६३-७६८ सप्तपञ्चाशत्तम सर्ग भगवान्के समवसरणका वर्णन ६४६-६५९ त्रिषष्टितम सर्ग अष्टपञ्चाशत्तम सर्ग पानी लेकर जब बलदेव वापस आये तो वरदत्त गणधरके पूछनेपर भगवान्की दिव्य कृष्णको चुपचाप पड़ा देख पहले तो जागनेध्वनिमें जीवाजीवादि तत्त्वोंका विस्तत की प्रतीक्षा करने लगे परन्तु बादमें मृत्यु जान विवेचन हुआ ६६०-६९३ कर विलाप करने लगे। ६ माह तक कृष्णका __एकोनषष्टितम सर्ग शव लेकर घूमते रहे। अन्तमे सिद्धार्थ सारथि के जीव देवने अपनी विक्रियारूप क्रियाओंसे भगवान् नेमिनाथके विहारका अनुपम वर्णन ६९४-७०५ उन्हें सम्बोधित किया जिससे उन्होंने कृष्णषष्टितम सर्ग का तुंगीगिरिपर दाह किया और नेमिनाथ वसूदेवसे देवकीके कृष्ण जन्मके पूर्व जो छह भगवान्से परोक्ष दीक्षा ले तप करने लगे। युगल पुत्र हुए थे उनकी तपस्याका वर्णन ७०६ उनकी तपस्याका आश्चर्यकारी वर्णन ७६९-७८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001271
Book TitleHarivanshpuran
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages1017
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size26 MB
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