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1. Matapitarau (the parents) 2. Shighram (soon) 3. Nripasurya-vacana-kiranai: (by the rays of the words of the king, the sun) 4. Sardhashtamahargananan (with the group of Arhats for seven and a half months) 5. Bhipsita-tithou (on the desired/auspicious tithi) 6. Shravane (in Shravana nakshatra) 7. Stridyaur-anadyar-ahita (without any effort, delighting the minds and eyes of people) 8. Jinapurna-chandram (the full moon, the Jina)
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________________ २३८ हरिवंशपुराणे आसीनयाऽऽसनवरे स तया समीपे स्वप्नावलीफलमिलाधिपतिः प्रपृष्टः । तस्यै जगौ जिनपतेर्जगतां त्रयस्य भर्तुर्गुरू' लघु भवाव इति प्रहृष्टः ।।८।। स्पृष्टा नृपोकिरणमालिवचोमयूखैः सा तोषपोषभृशहृष्टतनूरुहाऽभात् । स्त्रैणं निकृष्टमपि तीर्थकृतो गुरुत्वान् मत्वा प्रशस्तमिति विस्तृतपभिनीव ।।९।। आरात्सहस्रपदपूर्वपदादुदारादारानमत्सुरसहस्रगणोऽवतीर्य । मासानुवास नव गर्मगृहे प्रशुद्ध सार्धाष्टमार्हगणनान् मुनिसुव्रतोऽस्या: ॥१०॥ आनीलचूचुकविपाण्डुपयोधरधीः सा वज्रसंहतिसगर्भतया स्फुरन्ती । विद्यत्प्रभाभरणबंहितभा बभासे वशरत्समयसन्नियुता यथा चौः ।।११।। सासूत सूतिसमयेन्द्रमहे च माघपक्षेऽसिते जनमनोनयनोत्सवं तस् । द्वादश्य भीप्सिततिथौ श्रवणेऽश्रमेण स्त्रीद्यौरनद्यरहिता जिनपूर्णचन्द्रम् ।।१२।। आभषणोंको धारण करनेवाली रानी पद्मावती चलती-फिरती कल्पलताके समान जान पड़ती थी क्योंकि जिस प्रकार कल्पलता गुच्छोंके भारसे नम्रीभूत होती है उसी प्रकार उसकी अंगयष्टि भी स्थूल स्तनरूपी गुच्छोंसे नम्रीभूत थी, जिस प्रकार कल्पलता लाल-लाल पल्लवोंसे युक्त होती है उसी प्रकार वह भी लाल-लाल हथेलियोंसे युक्त थी और जिस प्रकार कल्पलता कोमल शाखाओंसे युक्त होती है उसी प्रकार वह भी कोमल भुजाओंसे युक्त थी। इस प्रकार रानी पद्मावतीरूपी कल्पलताने राजा सुमित्ररूपी कल्पवृक्षको नमस्कार किया ॥७।। पास ही में उत्तम आसनपर बैठी रानी पद्मावतीने जब राजासे स्वप्नावलीका फल पूछा तब उन्होंने हर्पित होते हुए कहा कि हम दोनों शीघ्र ही तीनों जगतके स्वामी जिनेन्द्र भगवान् के माता-पिता होंगे ||८| इस प्रकार राजारूपो सूर्यको वचन किरणोंसे स्पर्शको प्राप्त हुई रानी पद्मावतीके शरीर में हर्षातिरेकसे रोमांच निकल आये और वह फूली हुई कमलिनीके समान सुशोभित होने लगी। वह पहले जिस स्त्रीपर्यायको निकृष्ट समझती थी उसे ही अब तीर्थकरकी माता होनेके कारण श्रेष्ठ समझने लगी ।।९।। जिन्हें हजारों देवोंके समूह दूरसे ही नमस्कार करते थे ऐसे भगवान् मुनिसुव्रतने सहस्रार नामक उत्कृष्ट स्वर्गसे अवतीर्ण होकर माता पद्मावतीके विशुद्ध गर्भ-गृहमें नौ माह साढ़े आठ दिन निवास किया ॥१०॥ उस समय माता पद्मावती, वर्षा और शरद्ऋतुके सन्धिकालसे युक्त आकाशके समान जान पड़ती थी क्योंकि जिस प्रकार वर्षा और शरद्के सन्धिकालका आकाश कुछ काले और कुछ सफेद पयोधरों-~-मेघोंसे युक्त होता है उसी प्रकार पद्मावती भी नीली चूचुकसे युक्त सफेद पयोधरों-- स्तनोंसे युक्त थी। जिस प्रकार वर्षा और शरद्के सन्धिकालका आकाश वज्रसमूह-वज्रके समूहसे गभित होनेके कारण देदीप्यमान रहता है उसी प्रकार पद्मावती भी वज्रवृपभ संहननके धारक भगवान् के गर्भमें स्थित होनेसे देदीप्यमान हो रही थी और जिस प्रकार वर्षा तथा शरद्के सन्धिकालका आकाश विद्युत्प्रभाभरणबृहितभा--बिजलीकी प्रभाको धारण करनेसे कान्तियुक्त होता है उसी प्रकार माता पद्मावती भी विद्युत्प्रभाभरणबृहितभा-बिजलोके समान देदीप्यमान आभूषणोंसे बढ़ी हुई कान्तिसे युक्त थी ॥११॥ तदनन्तर पाप ( पक्षमें कलंक ) से रहित रानी पद्मावतीरूप आकाशने प्रसूतिके योग्य समय आनेपर इन्द्रमह उत्सवके दिन माघ कृष्ण द्वादशीको शुभ तिथिमें जबकि श्रवण नक्षत्र था बिना किसी श्रमके, मनुष्योंके मन और नेत्रोंको आनन्द देनेवाले जिनेन्द्ररूपी पूर्णचन्द्रको १. मातापितरौ । २ शीघ्रम् । ३. नृपसूर्यवचनकिरणैः । ४. सार्धाष्ट भीत स. (?) । सार्धाष्टमाह क., ड. (२)। अष्टदिनसहितानवमासान् ( क. टि.) । ५. भीक्षित -म. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001271
Book TitleHarivanshpuran
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages1017
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size26 MB
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