________________
द्वादशः सर्गः
उदूघः संघोऽस्य 'मौनः स्फुटभुवनगुरोर्देवदेवस्य देहं
देवोश्चक्रवत्तिप्रमुख नृपगणश्चातिभक्त्या समेत्य । गन्धैः पुष्पैश्च धूपैः सुरभिमिरमलैरक्षतैश्च प्रदीपैः
संपूज्यानम्य सम्यग्वृषभजिनगुणश्रीफलं याचते स्म ॥८२॥
Jain Education International
इत्यरिष्टनेमिपुराण संग्रहे हरिवंशे जिनसेनाचार्यकृतो वृषभेश्वरपरिनिर्वाणवर्णनो नाम द्वादशः सर्गः ॥ १२ ॥
D
सुखके स्थानभूत मोक्षस्थानको प्राप्त क्रिया || ८१ || मोक्षप्राप्ति के अनन्तर मुनियोंका श्रेष्ठ संघ, देवों का समूह और चक्रवर्ती आदि प्रमुख राजाओं का समूह - इन सबने तोव्र भक्तिवश आकर गन्ध, पुष्प, सुगन्धित धूप, उज्ज्वल अक्षत और देदीप्यमान दीपकके द्वारा त्रिजगद्गुरु देवादि देव वृषभदेव के शरीर की पूजा कर तथा अच्छी तरह नमस्कार कर यही याचना को कि हम लोगों को श्री ऋषभ जिनेन्द्रके गुण लक्ष्मीरूपी फलकी प्राप्ति होवे ॥ ८२ ॥
१. मुनीनामयं मौनः ‘तस्येदम्' इत्यण् प्रत्ययः,
।
इस प्रकार अरिष्टनेमि पुराणके संग्रहसे युक्त, जिनसेनाचार्य रचित हरिवंश पुराण में श्रीवृषभदेवकी निर्वाण प्राप्तिका वर्णन करनेवाला बारहवाँ सर्ग समाप्त हुआ ||१२||
२१५
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org