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अहिंसा-दर्शन
जब तक मनुष्य अपनी कामनाओं और इच्छाओं की कैद से बाहर नहीं निकलता, अपने स्वार्थों के इस काँटेदार धेरे को तोड़ नहीं डालता, तब तक न उसे स्वयं को शांति मिल सकती है, और न उसके पड़ोसी को ही । न परिवार को सुख मिल सकता है, न समाज एवं राष्ट्र को। दूसरे के दुःख को देखने की दृष्टि, पराये हित को समझने की सद्भावना, जब तक मनुष्य के हृदय में नहीं जगती है, तब तक यह स्वार्थों की लड़ाई, संघर्ष और द्वन्द्व जो चलते आए हैं चलते रहेंगे। अपितु संघर्ष और लड़ाइयाँ और अधिक तीव्र होती रहेंगी। चिनगारियाँ उछलती रहेंगी और मनुष्य का अन्तर्मन उसमें जलता रहेगा। बेटे ने बाप को कैद में क्यों डाला ?
सम्राट श्रेणिक के सम्बन्ध में आप कुछ चर्चाएँ सुन चुके हैं। ढाई हजार वर्ष पूर्व के भारतीय इतिहास में वह एक महान सम्राट् के रूप में चमका था, भारत के राजनैतिक क्षितिज का वह एक जाज्वल्यमान नक्षत्र था। उसके राज्य की सीमाएँ ही विशाल नहीं थीं, अपितु उसका हृदय भी बहुत विशाल था। प्रजा सुखी थी, राज्य में सब ओर मधुमय उल्लास का वातावरण छाया हुआ था । भगवान् महावीर का प्रमुख भक्त था राजा श्रेणिक । वह कितनी बार नंगे पैरों चल कर भगवान् के समवसरण में पहुँचता रहा है । प्रभु के चरणों में अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को प्रस्तुत रहा है। उसके हृदय में प्रभु के प्रति अटलश्रद्धा और विश्वास की लौ जलती रही है। कितना अच्छा था वह सम्राट् ! आप जानते हैं इसी सम्राट श्रेणिक का एक पुत्र था कूणिक । उसे अजातशत्रु कूणिक भी कहा जाता है। कूणिक को इतिहासकार एक महत्त्वाकांक्षी सम्राट के रूप में चित्रित करते हैं । जब कूणिक का जन्म हुआ, तो गर्भकालीन अनिष्ट दोहद के कारण चेलणा ने उसे जन्मते ही बाहर फेंकवा दिया। माँ के हृदय का कोमल मातृत्व कितना कठोर हो गया था कि अपने ही सद्यःप्रसूत शिशु को दासी के हाथों में सौंप देती है, बाहर फेंकने के लिए। इसलिए कि अनिष्ट दोहद के कारण भविष्य की दुष्कल्पनाओं और आशंकाओं से उसका हृदय कांप रहा था। किन्तु राजा श्रेणिक ने कमाल कर दिया। माँ ने जिस नवजातपुत्र को कूड़े के ढेर पर यों फेंक दिया, जैसे कोई घर का कूड़ा-कचरा फेंका जाता है, उसी पुत्र को पिता स्नेह से उठा कर लाता है। और श्रेणिक जब देखता है कि पुत्र की अंगुली में घाव हो गया है, अँगुली सड़ गयी है तो अपने मुंह से मवाद चूस-चूस कर घाव को ठीक करता है। चेलणा को उपालम्भ देता है और किसी भी प्रकार की आशंका न करके पुत्र को प्रेम से पालने का आग्रह करता है । मातृत्व से बढ़कर श्रेणिक का पितृत्व यहाँ निखरा है। एक सम्राट पुत्र की अंगुली के सड़े हुए घाव को चूस कर उसका मवाद निकालता है । किसलिए? पुत्र की पीड़ा और व्याकुलता शांत करने के लिए। पितृ-स्नेह का कितना ऊँचा चित्र है यह !
समय आगे बढ़ता है, स्थितियाँ बदलती हैं । कूणिक युवक होता है, उसके मन
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