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अहिंसा-दर्शन
हिंसा ? आत्मदेवता उस विशेष प्रसंग पर स्वतः ही बोलने लगता है कि हिंसा धर्म है या अहिंसा? मारना धर्म है या बचाना ?
यदि कोई व्यक्ति भयानक जंगल से होकर जा रहा हो, उसके साथ में लाखों के हीरे-जवाहरात भी हों, उस समय लपलपाती हुई नंगी तलवार लिए एक अन्य व्यक्ति उसके सामने आ कर खड़ा हो जाय और कह दे-"रख दे यहाँ, जो भी हो तेरे पास, और मौत के घाट उतरने के लिए तैयार होजा।" तब वह क्या कहेगा ? यही कि ये सब चीजें ले लो, किन्तु प्राण मत लो। लेकिन जब वह यही कहता है- “नहीं, तो मैं धन और जान दोनों लूंगा । यह तो मेरा धर्म है। तू जीता कैसे निकल जायेगा ! और वह मारने के लिए तैयार होता है। तब वह उसके सामने गिड़गिड़ाता है, पैरों पड़ता है और हजार-हजार मिन्नतें करता है और फिर कहता है-'जो लेना हो, ले लो, पर मेरे पर करुणा करो।' वह मृत्यु की घड़ी उससे कहलवाती है कि 'मुझे छोड़ दो।' परन्तु वह कहता है--छोडूं कैसे ? मारना तो मेरा धर्म है, कर्तव्य है; यही तो मेरे धर्म, गुरु और देवता ने मुझे सिखाया है । ऐसी विकट परिस्थिति में प्रगटरूप में कहने का साहस, सम्भव है, उस व्यक्ति में न हो, तो भी मन ही मन वह यही कहेगा-"घूल पड़े ऐसे धर्म, देव और गुरु पर कि जिसने ऐसा निर्मम पाठ सिखाया है । सच्चे धर्म, देव और गुरु तो दुर्बल की रक्षा करने में धर्म बताते हैं । जो किसी निरपराध दीनहीन की हत्या करने की शिक्षा देता है-वह धर्म नहीं, अधर्म है; गुरु नहीं, कुगुरु है; देवता नहीं, राक्षस है। भला किसी राह चलते आदमी का गला काट लेना भी कोई धर्म है।" कल्पना करो, इतने में ही दूसरा आदमी आ पहुँचता है, और कहता है"क्या कर रहे हो ? तुम इसे नहीं मार सकते।" जबकि वह पहला कहता है कि मारना मेरा धर्म है। तब यह दूसरा कहता है-"बचाना मेरा धर्म है। मेरे देवता, गुरु और धर्म ने मुझे रक्षा का पाठ सिखलाया है कि मरते जीव को अपना जीवन दे कर भी बचाओ।" और वह कहता है-'मैं हर्गिज नहीं मारने दूंगा। तेरा मारने का धर्म झूठा है और मेरा बचाने का धर्म सच्चा है।'
___'मारने' और 'बचाने' के इस संघर्ष में धर्म की कसौटी क्या हो सकती है ? मारा जाने वाला बीच में खड़ा है, वही कह सकता है कि 'मारना' धर्म है या 'बचाना' धर्म ? हिंसा में धर्म है या अहिसा में ? तलवार चलाने वाला कहता है कि हिंसा में धर्म है; और तलवार पकड़ने वाला कहता है कि अहिंसा में धर्म है । जिस पर तलवार का झटका पड़ने वाला है, उसी से पूछ कर यह जाना जा सकता है कि हिंसा में धर्म है या अहिंसा में ? यही सबसे बढ़कर आत्मा की कसौटी है । इस सम्बन्ध में एक सन्त का कथन है-धर्म के गूढ़ रहस्य को सुनो और विश्व में जितने भी मत-मतान्तर हैं, सब
८ श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चैवावधार्यताम् ।
आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषां न समाचरेत् ।।
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