________________
अहिंसा की कसौटी
७६
उपर्युक्त कथन की परिपुष्टि में आचारांग सूत्र में कहा गया है । सच्ची कसौटी
___इस प्रकार अहिंसा की सच्ची कसौटी अपनी ही आत्मा है। यह कसौटी तो प्रत्येक आत्मा को मिली है, उसी पर कस कर जांचो तो तुम्हें पता लग जाएगा कि अहिंसा धर्म है या पाप ? यदि कोई गुंडा तुम्हारी बहन-बेटी या माता की इज्जत बर्बाद करे, यदि कोई तुम्हें मारे या गाली दे, अथवा तुम्हारा धन छीनने की कोशिश करे तो उस समय भी क्या यही कहोगे कि अहिंसा पाप है, हिंसा धर्म है ? क्या भावना होगी, उस समय तुम्हारे अन्तर में ?
अहिंसा धर्म है या पाप, इसकी कसौटी क्या उस समय शास्त्रों को देख कर करोगे या अपनी आत्मा से करोगे ? वास्तव में अहिंसा की कसौटी या परीक्षा पोथियों को रगड़ने से या उनके पन्ने पलटने से नहीं होती। उसके लिए तो आत्ममंथन करने की आवश्यकता होती है। जब तक अपने पर आफत नहीं आई है, या अपने पर नहीं बीती है, तभी तक कदाचित् ऐसी बात कही जा सकती है कि अहिंसा पाप है । तभी तक यह तर्क-वितर्क किया जा सकता है। जिस दिन और जिस क्षण भी दृढ़ संकल्प के द्वारा व्यक्ति आत्मचिन्तन में लीन हो जायगा और आत्मानुभूति के अनुसार अपने जीवन-व्यापार को चलाने लग जाएगा, उसी समय से वह अहिंसा के धर्मत्व का अनुभव करने लगेगा।
एक गुडा है, वह सुन्दर स्त्री का अपहरण करने में ही धर्म मानता है, दूसरी ओर एक व्यक्ति डाका डालने और मारकाट करने में ही धर्म मानता है; क्या इन दोनों के लिए वैसा हिंसक कृत्य धर्म हो जाएगा? अगर आप पर भी यही बात गुजरे तो आपकी आत्मा उसे धर्म कहेगी या पाप ? सचमुच उस समय आपकी आत्मा ऐसे कृत्यों को हिंसा और पाप ही कहेगी !
अतः जीवन को परखने का प्रश्न आता है और सही स्थिति सामने आती है, तभी वास्तविकता का सही पता लगता है । जिसने कष्ट न पाया हो, जिसने पीड़ाएँ न देखी हों, फलतः जो मारना ही जानता हो, सताना ही जानता हो या दूसरों के हृदय में भाले भोंकना ही जानता हो और जो भोगविलास की गहरी नींद में सो रहा हो-आत्मस्वरूप को नहीं देख सका हो, भला उसे कैसे मालूम होगा कि अहिंसा धर्म है या पाप ? जब मनुष्य दुःख की आग में पड़ता है, तभी उसे असलियत का पता लगता है कि यह कृत्य अहिंसा-युक्त है या हिंसा-पूर्ण ? फलत: अहिंसा धर्म है या
६ 'सव्वे पाणा पियाउया, सुहसाया, दुक्खपडिकूला अप्पियवहा पियजीविणो, जीविउंकामा सव्वेसिं जीवियं पियं ।
-आचारांग १, २, ६२-६३ ७ 'जाके फटी न पैर बिवाई, सो का जाने पोर पराई ?'-हिन्दी कहावत
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org