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________________ ७० अहिंसा-दर्शन गुण जब अनन्त बन जाते हैं, तब साधक को भगवत्स्वरूप की प्राप्ति होती है । अहिंसा जब भगवान् है, परम ब्रह्म है तो अनन्त है, और जीव अनन्त है तो उसकी पूरी व्याख्या एक साधारण जीव न तो जान सकता है और न कह ही सकता है । केवलज्ञानी भी अहिंसा के पूर्ण रूप को जानते तो हैं, किन्तु वाणी के द्वारा पूर्णतः व्यक्त वे भी नहीं कर सकते । इस भू-मण्डल पर अनन्त-अनन्त तीर्थंकर अवतरित हो चुके हैं, किन्तु अहिंसा का परिपूर्ण रूप जानते हुए भी किसी के द्वारा वर्णन नहीं किया जा सका, तो फिर एक सामान्य व्यक्ति द्वारा तो कहना ही कहाँ हो सकता है ? सामान्य व्यक्ति अहिंसा भगवती के उस अनन्त रुप की झाँकी देख ही कहाँ पाता है ? ___ अहिंसा की भी एक विराट् झाँकी है, वह झाँकी इतनी विशाल और विस्तृत है कि उसका नेत्रों से ओझल होना असम्भव है, अतः अहिंसा एक बड़ी से बड़ी अलौकिक विभूति है । शास्त्रों को पढ़ने के बाद पढ़ने वाले को जान पड़ता है कि उसने बड़ी से बड़ी बारीकी तक को पहचान ली । मगर जिन्होंने उसे पहचाना है, वे बतलाते हैं कि यह तो अनन्तवाँ भाग ही कहा गया है ! महासमुद्र में से केवल एक ही बूंद बाहर फेंकी गई है ! यह अनन्तवाँ भाग और एक बूंद जो भी शास्त्रों में आई है, बड़े विस्तार से है । वह पूरा पढ़ा भी नहीं गया है और समझा भी नहीं गया है, किन्तु जो कुछ भी थोड़ा-सा पढ़ा और समझा गया है, वह भी किसी को पूर्णत: समझाया नहीं जा सकता । फिर भी मुझे जो कुछ समझाने का अवसर मिले, उसे आपको धैर्य के साथ समझने की कोशिश करनी चाहिए। अहिंसा की प्रथम झाँकी कब ? उस विराट अहिंसा का दिव्य स्वरूप आपको समझना है और यह तय करना है कि आपको मानव बनना है या दानव ? यह किसी भी व्यक्ति के लिए बहुत आवश्यक है । जब मनुष्य के सामने मानवता और दानवता में से किसी एक को चुन लेने का सवाल उपस्थित होता है तो उसी क्षण अहिंसा सामने आ कर खड़ी हो जाती है। अनादिकाल से प्राणी मानवता के सत्-मार्ग को छोड़ कर दानवता के कुपथ पर भटक रहा है, और कहीं-कहीं तो दानवता के आवेश में इतनी वीभत्स हिंसा भी कर चुका है कि जमीन को उसने निरीह प्राणियों के खून से तर कर दिया है। फिर भी उसे इस संकल्प की याद नहीं आई कि-वह मानव बने या दानव ? इस गति से यह जीव एक दिन उस एकेन्द्रिय और निगोद दशा में पड़ गया, जहाँ अपना रक्षण करना भी उसके लिए मुश्किल हो गया। संसारचक्र में भटकता हुआ यह प्राणी किस गति और किस स्थिति में नहीं रहा है ? इस असीम संसार में जितनी भी गतियाँ, स्थितियाँ और योनियां हैं, उन सब में एक-एक बार नहीं, अनन्त-अनन्त बार यह गया और आज भी जा रहा है । ३ देखिये, भगवती सूत्र १२, ७, ४५७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
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