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अहिंसा-दर्शन
दिखाया है, कि जिनसे आज का मानव चकाचौंध में पड़ गया है । किन्तु चकाचौंध की दृष्टि कभी भी सही एवं स्थायी हितदृष्टि नहीं हो सकती।
जैन तीर्थंकरों ने कभी युद्ध का समर्थन नहीं किया। यहां अनेक धर्माचार्य साम्राज्यवादी राजाओं के हाथों की कठपुतली बन कर युद्ध के समर्थन में लगते आये हैं, युद्ध में मरने वालों को स्वर्ग का लालच दिखाते आये हैं, राजा को परमेश्वर का अंश बता कर उसके लिए सब कुछ अर्पण कर देने का प्रचार करते आये हैं । वहाँ जैन तीर्थकर इस सम्बन्ध में काफी कर रहे हैं। 'प्रश्नव्याकरण' और 'भगवतीसूत्र' युद्ध के विरोध में क्या कुछ कहते हैं ? यदि थोड़ा-सा कष्ट उठा कर देखने का प्रयत्न करेंगे तो उनमें बहुत कुछ युद्धविरोधी विचारसामग्री प्राप्त कर सकेंगे । आप जानते हैं, मगधाधिपति अजातशत्र कुणिक भगवान् महावीर का कितना उत्कृष्ट भक्त था । औपपातिक सूत्र में उसकी भक्ति का चित्र चरमसीमा पर पहुंचा दिया है । प्रतिदिन भगवान् के कुशल समाचार जान कर फिर अन्न-जल ग्रहण करना, कितना उग्र नियम है ! किन्तु वैशाली पर कुणिक द्वारा होने वाला आक्रमण का भगवान् ने जरा भी समर्थन नहीं किया, प्रत्युत नरक का अधिकारी बता कर उसके पापकर्मों का भंडा-फोड़ कर दिया। अजातशत्रु इस पर रुष्ट भी हो गया था, लेकिन भगवान महावीर ने इस बात की जरा भी परवाह नहीं की। भला, पूर्ण अहिंसा के अवतार रोमांचकारी नरसंहार का समर्थन कर सकते थे ? ।
___ यह ठीक है कि अहिंसा मानवीय मूल्यों में सबसे बड़ा मूल्य है। जीवन का स्थायी समाधान अन्ततोगत्वा अहिंसा में ही सम्भव है । आखिर कब तक मानव-जाति खूख्वार भेड़िये की तरह आपस में लड़ती-झगड़ती रहेगी, एक-दूसरे को क्षत-विक्षत करती रहेगी । युद्ध से कभी समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो सकता । मानवता का कल्याण अहिंसा की अमृतधारा में ही है। शान्ति और अहिंसा के अभाव में मानव जाति की सरक्षा सम्भव नही है। शान्ति के क्षणों में मानव-जाति हजारों वर्षों तक टिकी रह सकती है, किन्तु युद्ध की विभीषिका से आक्रान्त हो कर एक दिन भी काटना उसके लिये कठिनतर हो जाता है। जगत् का कल्याण एवं मंगल अहिंसा एवं शान्ति की अमृतगंगा में ही हो सकता है, युद्ध के दावानल में नहीं। हृदय-परिवर्तन और अहिंसा
अहिंसा, या अन्य किसी भी आध्यात्मिक-मावना के कारण दुसरे के हृदय का बदलना, कहाँ तक सम्भव है, यह भी विचारणीय है । विरोधी का हृदय यदि तमसाछन्न है, खुदगर्जी की राक्षसी वृत्ति से ग्रस्त है, तो वह समय पर सहसा कैसे बदला जा सकता है ? सत्त्वगुणप्रधान मावनाशील हृदय ही अहिंसात्मक प्रतिकार का स्नेहोल्लसित अद्भुत एवं दिव्य-निमित्त पा कर बदल सकते हैं । परन्तु भूखे सिंह के समक्ष साधु और असाधु के व्यक्तित्व का क्या अन्तर है ? चित्तौड़ आदि में भारत की हजारों ही वीर नारियाँ सतीत्व की रक्षा के लिए जल कर भस्म हो गईं। भारत-विभाजन के अवसर
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