________________
अहिंसा के दो रूप
के लिए है। अतः वह हर हालत में एकरूप रहनी चाहिए । सच्चा साधक दर्शकों की उपस्थिति या अनुपस्थिति को सामने रख कर अपने जीवन-पथ का मानचित्र तैयार नहीं करता। साधक अपने को संयम की शूली पर समझे
राजस्थान की वीर नारियों की कहानी बहुत ही प्रसिद्ध है और खासतौर से मीरा की कहानी, जिसने सोने के महलों में जन्म लिया और सोने के महलों में ही जिसका विवाह भी सम्पन्न हुआ । एक दिन संसार की भौतिक ताकत ने उसे महलों में बन्द रखने और वैभव की मोहक नींद में सुला देने को भरपूर कोशिश की; किन्तु वह महलों में बन्द नहीं हो सकी, वैभव की नींद नहीं सो सकी। भगवत्प्रेम का महान् आदर्श उसके हृदय के कण-कण में उमड़ता रहा ।
उसने कहा-३ जो साधक है, वह तो संयम की शूली पर बैठा है । साधु या गृहस्थ कोई भी हो, उसके जो व्रत या नियम हैं, शूली की नोंक के समान हैं । वहाँ पर दूसरी कोई फूलों की सुख-सेज नहीं मिलेगी । फूलों की सुख-सेज पर शयन करने वाले तो सम्राट होते हैं, अत: यदि वे खर्राटे लेना चाहें तो ले सकते हैं । परन्तु जो साधक साधना-रूपी शूली की सेज पर बैठा है, वह सुख की नींद के खर्राटे नहीं ले सकता। उसका तो एक-एक क्षण जागेगा। उसके लिए हर प्रतिज्ञा शूली की सेज है। साधु ने अहिंसा और सत्य आदि की जो प्रतिज्ञाएँ ली हैं, उनमें से प्रत्येक प्रतिज्ञा शूली की सेज है।
कोई कह सकता है कि शूली पर जब सुदर्शन चढ़े, तो फूल बरसे और शूली सिंहासन हो गई थी। बात ठीक है, किन्तु शूली पर चढ़े बिना फूल नहीं बरसते । जब हम जीवन के क्षेत्र में चलते हैं, तब यदि उस साधना-रूपी शूली की सेज पर नहीं चढ़ेंगे तो फूल नहीं बरसने वाले हैं 1 फूल तो तभी बरसेंगे, जब साधक अपने आपको संयम और साधना की कसौटी पर सच्चा सिद्ध कर देगा।
इस दृष्टिकोण से हर साधक को हर समय जाग्रत रहना है। क्योंकि छद्मस्थ आखिर छद्मस्थ है, वह सर्वज्ञ और वीतराग नहीं हो गया है। वह अपूर्ण है। यदि वह अपूर्ण एवं साधारण साधक अपने आपको पूर्ण एवं विशिष्ट समझने लगता है तो यह उसकी भयंकर भूल है । इस प्रकार छमस्थ होने के कारण कदाचित् वह लड़खड़ा जाता है। वास्तव में मोहनीय कर्म बड़ा ही बलवान है । इसके प्रभाव से कभी क्रोध की उछाल आ जाती है, तो कभी मान की लहर भी आ जाती है, और कभी कोई अन्य तरंग भी उठ खड़ी होती है ।
पुरातन संतों के श्रीमुग्व की ऐसी उक्ति है कि जब लवण-समुद्र में तूफानी लहरें
३ हेरी मैं तो दर्द दिवानी, मेरा दर्द न जाने कोय । । सूली ऊपर सेज हमारी, किस विध सोना होय ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org