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________________ क्या अहिंसा अव्यवहार्य है ? ४३ किसी से उलझें नहीं, सदैव सावधानी से ही चलें और यदि कभी परिस्थिति-वश उलझ भी जाये तो उलझन को ठीक कर लें। यह अहिंसा का प्रेरणामय जीवन है । इसके बाद दूसरा मार्ग है-हिंसा का, जिसमें प्रथम तो असावधानी से चलना, पैर किधर पड़ रहे हैं-इस बात का कभी विचार ही न करना और यदि कभी किसी से उलझ जाएँ या टकरा जाएँ तो उसके सर्वनाश का संकल्प कर लेना । ऐसी बुद्धि, हिंसा की बुद्धि है। इन दो मार्गों में से व्यक्ति किसी एक को ही अपना सकता है । कई विचारक कहते हैं कि अहिंसा उत्तम चीज है, किन्तु यह जीवन-व्यवहार की उपादेय वस्तु नहीं है। वैसे व्यक्तियों से पूछा जा सकता है कि व्यवहारमार्ग कौन-सा है ? वस्तुतः बचना और बचाना ही व्यवहार का मार्ग है, और यही वास्तविक अहिंसा है। जो हिंसा है, वह तो उलझने का और टकराने का मार्ग है। स्वयं बर्वाद हो जाना और दूसरों को भी बर्बाद कर देना हिंसा है। आप ही सोचिए, भला इसे गलत विचार न कहा जाए तो और क्या कहा जाए ? हिंसा और अहिंसा की स्पष्ट व्याख्या होनी चाहिए। यदि इसका निर्णय नहीं हो सका, तो जीवन के सही रास्ते पर चलना भी मुश्किल भी जायेगा। व्यक्ति अपने जीवन के प्रति सजग रहे, सदैव सावधान रहे और देखता रहे कि दूसरों को उसके द्वारा की गई हिंसा या अहिंसा से क्या फल मिलता है ? यदि वह स्वस्थ मन और स्थिर बुद्धि से विचार करेगा तो उसे पता चलेगा कि जीवन-व्यवहार में वह हिंसा के बजाय अहिंसा में ही अधिक रहता है। यदि घर में कोई छोटी-सी घटना हो जाती है तो क्या वह उसके लिए न्यायालय की शरण लेता है ? जब परिवार की गुत्थियाँ उलझ जाती है तो वे डंडे से नहीं सुलझाई जाती है, प्रत्येक घटना पर अदालत में नहीं भागा जाता है । हाँ, तो अहिंसा एवं प्रेम का जैसा सद्व्यवहार परिवार में किया जाता है, वही समाज में और राष्ट्र में क्या नहीं किया जा सकता ? जो हिंसा के पथ पर चलते हैं, आखिरकार वे एक दिन ऊबते हैं और उससे विरत होते हैं । जो खूनी लड़ाइयां लड़ते रहे और जिन्होंने जीवन-क्षेत्र को रक्त-रंजित कर दिया, वे भी अन्त में सन्धि करने बैठते हैं। आखिर यह क्या कौतुहल है ? जो वस्तु अन्त में आने वाली ही है, लाखों-करोड़ों का संहार करके अन्ततः जिस मार्ग को अपनाना ही है, उसका पहले ही क्यों न अनुसरण किया जाये। यदि वही मार्ग सूझबूझ के साथ पहले ही पकड़ लिया जाये तो क्या अच्छा न होगा ? सारांश में यह स्पष्ट है कि 'अहिंसा' व्यवहार की उपादेय वस्तु है, वह किसी भी रूप में अव्यवहार्य नहीं है। हजारों साधक इसी मार्ग पर चलते रहे हैं और उन्होंने इसी पथ पर चल कर अपनी हजारों वर्ष की जिन्दगी गुजारी है। उन्हें अहिंसा 'अव्यवहार' की वस्तु कभी नहीं दिखलाई दी। हिंसा से एक दिन भी जीवनव्यवहार नहीं चल सकता ___ कोई अहिंसा को 'अव्यवहार्य' और हिंसा को ही 'व्यवहार्य' समझने वाला यदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
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