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________________ अहिंसा-दर्शन जाती है तो तत्काल सहलाता है और आगे बढ़ जाता है। राह की रुकावटों में वह उलझता नहीं है, अपितु चलता ही जाता है-सावधानी के साथ । 'चल चल रे नौजवान, चलना तेरा काम' : इसी मूलमंत्र को उसने अपनी जीवन-यात्रा का आलम्बन माना है। इस तरह एक आदमी चल रहा है और निरन्तर चला ही जा रहा है। वह बीच में कहीं रुकता नहीं है, किन्तु सीधा अपनी मंजिल की ओर बराबर बढ़ता ही चला जा रहा है। एक दूसरा आदमी भी उसी रास्ते पर चलता है, किन्तु सावधानी नहीं रखता है। जब वह काँटेदार झाड़ी के पास से गुजरता है तो झाड़ी में उलझ जाता है । बस, अब सोचता है कि इसने मेरा पल्ला उलझा दिया, अतः जब तक मैं इस झाड़ी को ही जड़ से न काट दूं, तब तक आगे नहीं बढ़ सकता। अब वह उसे काटने में जुट जाता है और काट कर ही आगे कदम रखता है, कि अगले कदम पर फिर दूसरी झाड़ी में उलझ जाता है और फिर उसे भी काटने लगता है। पैर में यदि कोई काँटा चुभ गया तो उसको निकाल कर टुकड़े-टुकड़े करने लगा। फिर आगे बढ़ा और यदि पत्थर की ठोकर लग गई तो कुदाल ले कर चट्टान को तोड़ने लग जाता है । इस प्रकार का चलने वाला क्या अपनी मंजिल पर पहुँच सकेगा? कभी नहीं । ___जो बच कर सावधानी से चलता है और उलझता नहीं है, वह तो चलेगा और अपनी मंजिल भी पूरी कर लेगा। परन्तु जो इस प्रकार उलझता हुआ चलता है और जहाँ उलझता है, वहाँ संहार करने लग जाता है और सारे पहाड़ को चकनाचूर करके ही आगे बढ़ने का संकल्प करता है, वह चाहे सौ वर्ष की उम्र पाए, तो भी अपने अभीष्ट लक्ष्य पर नहीं पहुँच सकेगा। वह हजार वर्ष की उम्र में भी मंजिल पूरी नहीं कर सकेगा। इससे निष्कर्षरूप सिद्धान्त यह निकला कि यदि जीवन-यात्रा करनी है तो सर्वप्रथम व्यर्थ के संघर्षों से अपने जीवन को बचाते हुए सावधानी से चलना चाहिए । सावधानी रखते हुए भी यदि कहीं उलझन आ ही जाये तो शान्त चित्त हो उसको सुलझाते हुए आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए । मनुष्य यदि इधर-उधर से पल्ला संभाल कर अपने जीवन के पथ पर चलता जायेगा, तब तो अपनी मंजिल पर पहुँच ही जायेगा। इसके विपरीत यदि किसी से जरा-सी भी अनबन हो गई, तो जब तक उसकी जबान नहीं खींच ले, या परिवार में जरा-सी कोई बात हो जाए तो बस, जब तक कानून की तीरकमान ले कर अदालत के द्वार को न खटखटा दे, तब तक आराम की साँस न ले, तो उसकी जीवन-गाड़ी अपनी यात्रा कभी सफलतापूर्वक तय नहीं कर सकती। जीवन के दो मार्ग : अहिंसा एवं हिंसा का इस प्रकार जीवन का पहला मार्ग है-अहिंसा का ; अर्थात्-प्रथम तो कभी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
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