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________________ अहिंसा : विश्वशान्ति की आधारशिला हो जाती हैं और सागर बिना किसी राग-द्वेष से सबको अपने अंक में सँजोतासहेजता चला जाता है। वस्तुतः यह राग-द्वेष पर विजय ही तो अहिंसा का पथ है, और उक्त विजय को प्राप्त करने वाला ही तो सच्चे अर्थ में विजेता है । विजेता, हम उसे कभी नहीं कह सकते, जो हाथ में नंगी तलवार लिए भय और आतंक के बल पर किसी पर शासन करे; किसी को अपने अधीन रखे । हाथ में बम ले कर दूसरों को भय दिखा कर अपने आगे झुकाने का प्रयत्न करने वाला तो सही माने में वीर कहलाने का अधिकारी हो ही नहीं सकता। वह तो कायर है। जो परमुखापेक्षी होता है, वह कायर नहीं तो और क्या है ? वह अपनी महान् चैतन्यशक्ति की अपेक्षा जड़शक्ति पर अधिक भरोसा करता है। सच्चा वीर तो वह है, जिसके चरणरज विश्व के समस्त प्राणी श्रद्धा एवं प्रेम से चूम लें, अपने सर पर लगा लें । यहाँ हमें राष्ट्रकवि 'दिनकर' की वे पंक्तियाँ बड़ी युक्तियुक्त लगती हैं, जहाँ उन्होंने कहा है ".. आदमी नहीं मरता बरछों से, तीरों से, लोहे की कड़ियों की साजिश बेकार हुई, बाँधो मनुष्य को शबनम की जंजीरों से ।" डा० एस० राधाकृष्णन ने एक जगह चाल युग पर करारी चोट करते हुए, अहिंसा के महत्त्व पर प्रकाश डाला है-"यह जमाना हथियारबन्द कायरता का है । कायरता ने अपने हाथ में हथियार इसलिए रखे हैं कि वह दूसरों के हमलों से डरतो है और स्वयं हथियार इसलिए नहीं चलाती; क्योंकि उसे हिम्मत नहीं होती । जो डर के मारे हथियार चला नहीं पाती, उसी का नाम कायरता है । इस कायरता से इन्सान को उबारने वाली एक ही शक्ति है और वह है अहिंसा ।" अतः यह स्पष्ट है कि अहिंसा कायरता नहीं सिखाती, अपितु वीरता का पाठ पढ़ाती है। अहिंसा यह कमी नहीं कहती कि तुम चुप रह कर अन्याय एवं अत्याचार को सहन करो, क्योंकि अन्याय करना पाप है, तो दैन्यभाव से अन्याय का सहन करना महापाप है। चाहे वह सामाजिक क्षेत्र में हो, अथवा राजनीतिक क्षेत्र में, बात लगभग एक ही है। जिस व्यक्ति में अन्याय के विरुद्ध योग्य प्रतिकार करने की शक्ति नहीं है, वह न तो अपनी रक्षा कर सकता है, न अपने परिवार की, न समाज की और न अपने राष्ट्र की ही रक्षा कर सकता है । और वह अहिंसा, अहिंसा नहीं, जिसके निष्प्राण शरीर से चिपट कर आदमी अपने राष्ट्र तक को दासता की बेड़ी में जकड़ जाने दे । ऐसी अहिंसा का जीवन में कोई मूल्य नहीं। विज्ञान और अहिंसा ___ मानव-विकास का इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब-जब विज्ञान ने संहारक अस्त्र-शस्त्रों का बहुतायत से निर्माण किया है, मानव ने निहितस्वार्थवश निर्ममता से उनका प्रयोग किया है, फलस्वरूप भयंकर संहारक लीलाएं देखने को मिली हैं । विश्व का प्रथम एवं द्वितीय महायुद्ध इसका ज्वलन्त प्रमाण है । किन्तु हर बार देखा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
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