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अहिंसा-दर्शन
भावना का ही तो अन्तर है ! भावना में एक जगह प्रेम और ममता है, दूसरी जगह क्र रता है । खूखार शेरनी भी अपने बच्चों को प्यार से दुलारती-पुचकारती है, उन्हें दूध पिलाती है । किन्तु यह प्रेम की भावना दया और अहिंसा के रूप में वहाँ विकसित नहीं हुई । इसलिए बिल्ली और शेरनी की ममता को अहिंसा का विकास नहीं कहा जा सकता, चूंकि वहां अहिंसा की दृष्टि नहीं है। जहाँ अहिंसा निष्ठा और श्रद्धा के रूप में नहीं है, वहाँ वह बन्धन से मुक्त करने वाली नहीं बन सकती। अहिंसा का आदर्श वहाँ जागृत नहीं हो सकता । अहिंसा की भावना और संस्कार होना एक बात है और उसमें निष्ठा होना और बात है।
अतः अहिंसा के बाह्यपक्ष पर ही मत उलझो। उसके हृदयपक्ष की ओर देखो ! अपने मस्तिष्क से उत्पन्न तर्क को हृदय की सहज-सरल सौहार्दपूर्ण भावनाओं के रस से सिंचित करो। फिर जो अहिंसा का रूप निखरेखा, वही यथार्थ और चिरस्थायी भी होगा।
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