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अहिंसा का शाश्वतरूप : वृत्ति में अहिंसा
मानव गड़बड़ा गया । प्रलोभन ने हिंसा को फिर से उत्तेजित कर दिया । प्रलोभन हिंसा को इसी कारण उत्तेजित कर सका कि हमने अन्तर्मन में वृत्ति की हिंसा को छोड़ने के लिए उचित ध्यान नहीं दिया । अगर वृत्ति की अहिंसा जाग जाती है, तो दुनिया का कोई भी भय या प्रलोभन हिंसा को जन्म नहीं दे सकता । जो अहिंसा केवल स्थूल प्रवृत्ति-निवत्ति में है, विधि-निषेध में है, उसे साधारण-सा विरोधी वातावरण एवं कारण भी समाप्त कर देता है । जन-जीवन में उसका मूल स्थायी नहीं होता । वृत्ति में अहिंसा का अर्थ
वृत्ति की अहिंसा का अर्थ है - जीवन की गहराई में अहिंसा की भावधारा का सतत प्रवाहित होना । जो अन्दर की वृत्ति से अहिंसक है, वह किसी को मार नहीं सकता, किसी को कष्ट नहीं दे सकता, किसी के प्राणों का वध नहीं कर सकता । अर्थात् वृत्ति के अहिंसक होने में हिंसा की योग्यता ही निर्मूल हो जाती है । यह अहिंसा मरणोत्तर स्वर्ग के लिए, सामाजिक एवं पारिवारिक सुख-सुविधा के लिए या प्रतिष्ठा के लिए नहीं होती । वृत्ति के अहिंसक की स्वयं ही यह सहज अवस्था हो जाती है कि वह हिंसा कर ही नहीं सकता, चाहे उसके लिए प्राप्त प्रतिष्ठा ही क्यों न खोनी पड़े, जीवन को दाँव पर ही क्यों न लगा देना पड़े । उसके लिए अहिंसा स्वाभाविक हो जाती है । मुझे शत्रु से भी प्रेम करना चाहिए, यह उसका सिद्धान्त नहीं होता, अपितु दुनिया में उसका कोई दुश्मन ही नहीं होता । वह यह बात नहीं कहता कि अहिंसा की शिक्षा से हमें सबके प्रति द्वेष नहीं, प्रेम करना चाहिए, अपितु प्रेम के अतिरिक्त उसके पास करने को और कुछ होता ही नहीं । यह है वृत्ति में अहिंसा, जो अहिंसा का शाश्वत और सर्वव्यापी रूप है ।
अहिंसा की निष्ठा और भावना में अन्तर
वृत्ति में अहिंसा होगी तो अहिंसा की निष्ठा होगी। वही उसका सर्वग्राही रूप है | अहिंसा, करुणा और सत्य की धाराएँ तो हमारे जीवन में बहती रहती हैं, भावनाएं उमड़ती चली जाती हैं, पर जब तक अहिंसा और करुणा की निष्ठा जागृत नहीं होती, तब तक दर्शन नहीं बन पाता ।
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एक माता के हृदय में पुत्र के प्रति जो करुणा और प्रेम का प्रवाह उमड़ता है, उसमें अहिंसा की धारा छिपी भले ही हो, पर उसे हम अहिंसा की निष्ठा नहीं कह सकते । उसकी करुणा के साथ मोह का अंश जुड़ा हुआ है, व्यक्तिवाद जुड़ा है, इसलिए अनन्त काल से करुणा का प्रवाह हृदय में उमड़ते हुए भी उससे आत्मा का विकास नहीं हो सका, उत्थान नहीं हो सका ।
बिल्ली जब अपने बच्चों को दाँतों से पकड़ कर ले जाती हैं तो एक दाँत भी उनके शरीर पर गड़ने नहीं पाता । क्या बात है कि जब वे ही दाँत चूहे पर लगते हैं तो रक्त की धारा बह चलती है, वह चीं चीं कर उठता है । इसमें क्या अन्तर आया ?
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