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अहिंसा का आध्यात्मिक आधार
मैं एक भी चीज ऐसी प्राप्त नहीं कर सका, जो औषधि के रूप में काम में न आए । कंकर, पत्थर, गोबर इत्यादि सब चीजें औषधि के रूप में काम में लाई जा सकती हैं । ऐसी हालत में मुझे खाली हाथ लौट कर आना पड़ा है, मुझे क्षमा करें । आचार्य अपने शिष्य का यह उत्तर श्रवण कर झूम उठे । उन्होंने शिष्य को गले लगा लिया और बोले कि "जाओ वत्स ! तुम जहाँ भी जाना चाहो, जाओ। तुमने चिकित्साशास्त्र का तत्त्व प्राप्त कर लिया है । अब सब जगह सफलता तुम्हारे चरण चूमेगी। इस विशाल सृष्टि के हर पौधे में बीमारी को दूर करने की शक्ति है। केवल उसका संयोजन करने वाला दुर्लभ है । तुमने यह संयोजन करने का मन्त्र पा लिया है ? जाओ वत्स ! सृष्टि का अमृततत्त्व ग्रहण करके सृष्टि को वापिस आरोग्य प्रदान करो।
कहने का आशय यह है कि दुनिया में निरुपयोगी चीज कुछ नहीं है, इसलिये निरुपयोगिता की आड़ में हिंसा और क्रूरता को प्रोत्साहन देना अनुचित है।
मैं सारे देश और समाज के सामने बहुत ही नम्रतापूर्वक यह कहना चाहता हूं कि अब द्वेष, हिंसा और वैर की भावना को खत्म करना अनिवार्य तथा व्यावहारिक कार्यक्रम बन गया है । यदि हम इस आवश्यकता को महसूस नहीं करेंगे तो टिक नहीं सकेंगे । अब हमें अपनी दृष्टि को बाहर से हटा कर अन्दर की ओर ले जाना होगा। अन्तःकरण को पवित्र एवं स्नेहिल बनाना होगा । स्नेह वह सूत्र है जो अनन्त हृदयों को अपने में पिरोये रहता है । वही हृदय कारुण्यपूर्ण है, जो मानव की अखण्डता को कायम रखता है । स्नेह और करुणा आत्मा का गुण है। आत्मा के इस पहलू को ठीक से समझ कर शरीर के माध्यम से जीवन-प्रवाह को नया मोड़ तथा नयी गति देना है।
२ 'अमंत्रमक्षरं नास्ति, नास्ति मुलमनौषधम् ।
अयोग्य: पुरुषो नास्ति, योजकस्तत्र दुर्लभः ॥
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