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जीवन के चौराहे पर
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बड़ा सच्चरित्र था। जैसे-जैसे लक्ष्मी आती गई, वह नम्र होता गया। उसने आसपास के व्यापारियों में अपनी धाक जमा ली । जहाँ कहीं भी रहा, बेगाना बन कर नहीं रहा । ऐसे रहा, मानो उन्हीं के घर का आदमी हो और किसी को लूटने नहीं आया, किन्तु अपने-पराये सब का समुचित संरक्षण करने आया है । इस तरह उसने अपनी चारित्रक प्रतिष्ठा जमा ली । उसके पास लक्ष्मी खूब आई, पर लक्ष्मी का नशा तनिक भी नहीं आया। वह दुश्चरित्र नहीं बना । गोता लगाकर भी सूखा
___ मजा तो यह है कि समुद्र में डुबकी तो लगाए, किन्तु सूखा निकल आए । कोई तट पर बैठा रहे और कहे कि मैं सूखा हूँ, भीगा नहीं, तो ऐसे सूखेपन का कोई मूल्य नहीं है । यदि समुद्र में गोता लगा दे और वापिस सूखा निकल आए, भीगे नहीं, तब कहा जा सकता है कि वास्तव में जादू है, चमत्कार है। इसी प्रकार यदि कोई धन वैभव पा कर भी सच्चरित्र बना रहे, उसे नशा न चढ़े, तब हम कहेंगे कि समुद्र में गोता तो लगाया किन्तु फिर भी सूखा ही निकला। जब चारों ओर लक्ष्मी की झनकार हो रही हो, फिर भी लक्ष्मी की मादकता से ठोकर न लगे और वासना की बौछार से बिना भीगे बाहर आ जाए, तब तो कह सकते हैं कि यह एक ठीक कला है । 'आनन्द' श्रावक ने संसार-समुद्र में गोते लगाए थे, फिर भी वह सूखा ही निकला । महावीर के परम भक्त राजा चेटक आदि सभी ने संसार-समुद्र में गोते लगाए थे, किन्तु सभी सूखे थे । चक्रवर्ती भरत भी संसार-समुद्र में गोते लगा कर भी सूखे ही थे । सारांश में यही अभिमत पर्याप्त होगा कि सांसारिक कार्यों में संलग्न रहते हुए भी फल की प्राप्ति में लिप्त नहीं रहना चाहिए।
जीवन-व्यापार को सफलतापूर्वक चलाने की महत्त्वपूर्ण कला जल में खड़े कमल से ही सीखी जा सकती है । कमल कीचड़ में पैदा होता है, पत्थर की चट्टान, रेत या टीले पर नहीं। निस्सन्देह वह गहरे सरोवरों में जन्म लेता है, फिर भी वह पानी से नहीं भीगता, क्योंकि वह पानी से ऊपर रहता है । कमल की यह विशेषता है कि यदि उसके ऊपर पानी डाला जाए, या वर्षा का पानी पड़े, तब भी उसमें ऐसी चिकनाहट नहीं होती है कि सब पानी बह जाएगा और वह अपने निलिप्त गुण के कारण सूखा का सूखा ही रहेगा । जैसे कमल पानी में पैदा होता है, फिर भी पानी के प्रभाव से सर्वथा अलग रहता है। इसी प्रकार सफल जीवन का भी आदर्श होना चाहिए।' कमल की कला
ऐसा भूल कर भी न समझना चाहिए कि कमल पानी में भीगने के भय से बाहर क्यों नहीं भागता । यदि भागने का प्रयत्न करे तो वह एक क्षण भी जिन्दा नहीं रह सकता । इसी प्रकार कोई संसार के बाहर कैसे भाग सकता है? और भाग कर जाएगा
१ 'न लिप्पए भवमझे वि संतो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासो ।"
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