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________________ ३८० अहिंसा-दर्शन विचारों को, चरित्र को और व्यक्तित्व को ठीक तरह पनपने का और विकसित होने का अवसर उपलब्ध नहीं होता था । पर सेठ बड़ा बुद्धिमान था । उसने सोचा-देखना चाहिए, कौन लड़का कैसा है और आगे चल कर मेरे वंश का उत्तरदायित्त्व कौन कितना निभा सकता है ? कौन मेरे कुल की प्रतिष्ठा को स्थायी रूप से सुरक्षित रख सकता है ? मैं दुनियाभर की परीक्षा करता हूँ तो अपने लडकों की परीक्षा भी क्यों न करूं? सेठ ने एक दिन तीनों लड़कों को बुलाया और कहा-"तुम सब समझदार और योग्य हो गए हो । जीवन के कार्य-क्षेत्र में काम कर सकते हो । जो कुछ मैं करता हूँ, वह तो तुम्हारा ही है। उसे मुझे कहीं अन्यन्त्र ले नहीं जाना है। किन्तु तुम मुझे यह विश्वास दिला दो कि तुम मेरे पीछे मेरी जिम्मेदारियों को पूरी तरह निभा सकोगे।" लड़कों ने कहा-"पिताजी, फरमाइये, क्या करें ?" इसी सवाल को हल करने के लिए तो पिता ने उन्हें बुलाया था । कमाने के लिए वह अपने लड़कों को बाहर नहीं भटकाना चाहता था। उसके पास आजीविका के सभी साधन मौजूद थे। परन्तु 'क्या करें ? यह जो परमुखापेक्षी वृत्ति बन जाती है और बार-बार जो यह प्रश्न मन में पैदा हो-हो कर रह जाता है, इसी का उसे समुचित समाधान करना था। सेठ ने कहा-“करना क्या है ? चले जाओ । नाव को समुद्र में बहने दो और लंगर खोल दो, डाँड़ तो तुम्हारे हाथ में है । वस्तुत: सफल जीवन का यही अर्थ है कि तुम कितने पुरुषार्थ से, कितनी योग्यता से जीवन-नौका को सकुशल तट पर ले जाते हो ! जिस नाव में बैठे हो, उसका लंगर यदि नहीं खोला है, तो उसके चलाने का कोई अर्थ नहीं । खोल दिया जाए जीवन-नौका का लंगर और छोड़ दिया जाए उसे लहरों पर ! जब जीवन-नौका लहरों के थपेड़े खाएगी और नाना प्रकार के विघ्न उपस्थित होंगे, तब पता लगेगा कि तुम्हारे अन्दर कितनी योग्यता है। यदि समुद्र में तूफान आया है तो नाव को कैसे ले जाएँ, और कहाँ मन्द गति और कहाँ तीव्र गति दी जाए, आदि-आदि योग्यताएँ ही तो जीवन के सफल संचालन के लक्षण हैं।" योग्यता की जाँच पिता की बात सुनकर पुत्रों ने कहा-"बात ठीक है । आपका विचार सही है । हम अपनी योग्यता की जाँच करेंगे।" इसके लिए उनको योग्य पूजी दे दी गई । एक-एक लाख रुपये तीनों को दे दिये गए और उनसे कह दिया गया कि तीनों, तीन दिशाओं में अलग-अलग चले जाएँ। अपनी दिशाएँ इच्छा के अनुरूप निश्चित कर सकते हैं । तीनों पुत्रों ने अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार विभिन्न देशों में जा कर बड़ीबड़ी फर्मे स्थापित की। उनमें एक बड़ा चतुर और बुद्धिमान् था । उसने अपनी पूजी ऐसे व्यवसाय में लगाई कि वारे-न्यारे होने लगे। धन दिन दूना और रात चौगुना बढ़ने लगा। वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
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