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________________ सांस्कृतिक क्षेत्र में अहिंसा की दृष्टि परिवार नियोजन और अहिंसा -दृष्टि आज मानव जाति के सामने बढ़ती हुई जनसंख्या के गतिरोध का प्रश्न एक विकट समस्या के रूप में उपस्थित है, जिसके लिए परिवार नियोजन की दिशा में प्रचारित उपादानों द्वारा प्रजनन की गति को रोकने का प्रयास किया जा रहा है । बहुत बार यह प्रश्न सामने आता है कि परिवार नियोजन के लिए अपनाये जा रहे ये प्रयोग अहिंसा की दृष्टि से कहाँ तक संगत हैं ? यह स्पष्ट कि अहिंसा, जीवन की व्यापक संभावनाओं का केन्द्रीय रूप है । अतः जीवन का हर प्रश्न अहिंसा का प्रश्न बन जाता है । परिवार के नियोजन का प्रश्न भी अहिंसा से आ जुड़ा है । मेरा विचार है कि जिस प्रकार प्राचीन युग में अहिंसा के विकास के लिए कृषि का विकास आवश्यक मान लिया गया था, उसी प्रकार व्यापक चिंतन के बाद वर्तमान में, परिवारनियोजन को भी अहिंसा के विकास में एक आवश्यक कार्यक्रम मान लिया जाए। हो सकता है, इस पर कुछ लोगों के मन में यह प्रश्न उठ खड़ा हो कि क्या इससे अहिंसा की मूल भावना - संयम, जीवदया पर आघात नहीं होगा ? क्या परिवार नियोजन के कृत्रिम उपादानों का व्यवहार मानव को असंयमी नहीं बनाएगा ? उत्तर स्पष्ट है, यह खतरा अवश्य है । अतः सर्वप्रथम संयम के द्वारा भोगनिग्रह की प्रेरणा मानव को मिलनी चाहिए। ब्रह्मचर्य की साधना इसके लिए सर्वोत्तम मार्ग है । मर्यादाहीन भोगासक्ति जीवन के तेज को ध्वस्त कर देती है, विवेक-बुद्धि एवं बल- विक्रम को नष्ट कर डालती है । परन्तु प्रश्न उनका है, जो लम्बे समय तक ब्रह्मचर्य की साधना नहीं कर सकते । फलतः हर वर्ष जनसंख्या की वृद्धि होती रहती है, और भरण-पोषण के उचित साधनों के अभाव में आने वाले प्राणी भुखमरी के शिकार होते रहते हैं । 1 ३६६ आए दिन समाचारपत्रों आदि में पढ़ने एवं सुनने में आता है कि अमुक स्थान पर अमुक व्यक्ति ने गरीबी के कारण अपने पूरे परिवार को जहर दे कर मार star | अमुक व्यक्ति रेल की पटरी पर कट मरा तथा अमुक ने फाँसी लगा ली। तो, यहाँ पर यह सबसे ज्यादा विचारणीय बात हो जाती है कि आखिर यह सब क्यों होता है ? अभावों के कारण ही तो ! क्योंकि रोटी कम है, और खाने वाले ज्यादा हैं, वस्त्र थोड़ा है, और पहनने वाले ज्यादा हैं । आदमी न रोटी की समस्या पूरी कर पाता है, न वस्त्र की । अतः वह अपने जीवन के बोझों से घबरा कर इस प्रकार का हिंसात्मक गलत कदम उठाता है। इस पर से स्पष्ट हो जाता है कि अभावों के बीच जनसंख्या की दिनानुदिन वृद्धि अभावों को और इस दृष्टि से जनसंख्या को सीमित रहित है । Jain Education International भी बढ़ा कर हिंसा को ही प्रोत्साहन देती है । करना कहीं ज्यादा श्रेयस्कर एवं हिंसा से अभावों के बीच जन्म प्रदान कर किसी प्राणी को अक्षय पीड़ाओं में कराहते छोड़ देना, कहाँ तब ठीक है ? सोचने की बात है कि किसी प्राणी को जीवनभर अमावों के बीच पीड़ा, कुण्ठा एवं संत्रास के सागर में डुबो देना, उसके लिए सुख For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
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