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________________ रोजी, रोटी और अहिंसा ३४१ इसके लिए मैं तो यही कहूँगा कि शास्त्रों को भी टटोलने की जरूरत नहीं है, सिर्फ जीवन को ही टटोलने की जरूरत है और जीवन-सम्बन्धी यथार्थवादी दृष्टिकोण के अध्ययन की अनिवार्य आवश्यकता है। अन्ननिन्दा : पाप भारतीय संस्कृति के एक आचार्य ने कहा है कि-"अन्न की निन्दा करना पाप है ।” जूठन छोड़ना हिंसा है, क्योंकि वह अन्न का अपव्यय है, और कम खाना पुण्य है । कम खाना पुण्य तो अवश्य है, परन्तु खाने को कम मिलना क्या है ? यहाँ तीन चीजें हैं ज्यादा खाना, कम खाना और कम खाने को मिलना । ज्यादा खाने के विषय में तो ग्रन्थकारों ने कह दिया है कि ज्यादा खाने वाला अगले जन्म में अजगर बनता है और कम खाना धर्म माना जाता है । जैन-धर्म में ऊनोदर तप माना गया है जो कि अनशन के बाद आता है, वह बड़ा उत्कृष्ट तप है । तपों में एक के बाद दूसरा और दूसरे के बाद तीसरा सूक्ष्म होता जाता है; अर्थात्-उत्तरोत्तर महत्त्वपूर्ण होता जाता है । एक आचार्य ने कहा है कि अनशन की तुलना में ऊनोदर तप विशेष महत्त्व रखता है। इसका क्या कारण है ? अनशन तप के समय बिलकुल ही नहीं खाया जाता खाने की तरफ ध्यान ही नहीं दिया जाता, परन्तु ऊनोदर में कम खाया जाता है । खाने के लिए बैठना और जब स्वादिष्ट मिष्टान्नों के खाने का आनन्द अनुभव हो तो भी अधूरा खाना मुश्किल होता है । भोजन करते समय भोजन के रस को बीच में ही छोड़ देना, भोजन बिल्कुल ही न करने की अपेक्षा अधिक त्यागवृत्ति माँगता है। यह एक बड़ा एवं पवित्र परिवर्तन है, आध्यात्मिक क्रान्ति है । इस प्रकार का कम खाना धर्म माना गया है। परन्तु खाने को कम मिलना क्या है ? इसे पाप माना गया है। भारतीय संस्कृति कहती है कि कम खाना तो धर्म है, किन्तु खाने की मात्रा कम मिलना पाप है । जिस देश के बच्चों, बूढ़ों, महिलाओं और नौजवानों को खाना नहीं मिलता है, उस देश की व्यवस्था करने वालों के लिए वह एक बड़ा गुनाह है। कम खाने की शिक्षा अवश्य दी गई है, पर खाना कम क्यों मिलना चाहिए ! खाने की मात्रा कम मिलना, अपनी व्यवस्था को दोषपूर्ण सिद्ध करना है, और अपने में एक पाप को प्रकट करना है। और यह पाप ऐसी बुराई है, जो हजारों दूसरी बुराइयों को पैदा करती है। प्राण की रक्षा इस विवेचन से यह स्पष्ट है कि धर्म को, पुण्य को या सत्कर्म को हीरों और मोतियों से तोलना गलत बात है। पर, दुःख तो इस बात का है कि गलत राह को ५ जैन-धर्म में अनशन आदि बारह तप माने गए हैं, उनमें ऊनोदर दूसरे नम्बर पर है । ऊनोदर का अर्थ है-जितनी भूख हो, उससे भी कुछ कम खाना । अर्थात्पेट को थोड़ा खाली रखना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
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