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________________ अहिंसा का आध्यात्मिक आधार मनुष्य-जीवन के दो पहलू हैं—एक शरीर और दूसरा आत्मा। जो शरीरविज्ञान को जानने वाले होते हैं, उन्हें शरीर का विश्लेषण करने पर मांस, मज्जा, रक्त, शिराएँ, मस्तिष्क इत्यादि का पता चलता है । हृदय एक यन्त्र है, जो इस शरीर-पिण्ड का संचालन करने वाला है; यह भी शरीरशास्त्री बताते हैं । पर, इसके अतिरिक्त जो दूसरा पहलू है-वह आत्म-दृष्टि का है। भारतीय चिन्तन जब मनुष्य के विश्लेषण की गहराई में जाता है, तब वह बतलाता है कि शरीर के अन्दर एक ऐसा आत्मतत्त्व है, जो हृदय, बुद्धि और मस्तिष्क को आलोकित करता है । इस रक्त-माँस के ढेर में भी वह एक आलोक स्तम्भ है। मनुष्य केवल हृदय और मस्तिष्क में एक सूक्ष्म चेतना है, जिसमें करुणा व स्नेह का वास है । वही मनुष्य का वास्तविक रूप भी है । यदि मनुष्य के हृदय में जीवन का प्रवाह न हो, करुणा और स्नेह की स्रोतस्विनी न हो, तो मधुर पारिवारिकता टूट-टूट कर बिखर जाए, सामाजिक आत्मीयता खण्ड-खण्ड हो जाए। इस हृदय में राष्ट्रीयता और विश्ववत्सलता का निवास है । राम, कृष्ण, बुद्ध और महावीर की चिन्तनधारा इस आत्मा और हृदय के स्नेह-सरोवर से ही निकलती है। हृदय का धर्म हृदय समस्त मानवीय भावनाओं का केन्द्र है । अहिंसा क्या हड्डियों का धर्म है ? नहीं, वह तो हृदय का धर्म है । हृदय में प्रवाहित होने वाला स्नेह के अजस्र-स्रोत का ही विराट रूप अहिंसा कहलाता है । प्रेम, सहानुभूति, करुणा-ये सब उसी की विभिन्न धाराएँ हैं । इनमें भावना एक ही है, शब्दों की विविधता है। भारतीय शास्त्र शब्दों के भण्डार हैं, क्योंकि उनमें भावों का भण्डार भरा है। इन शास्त्रों में एक ही भाव को बताने के लिए हजारों शब्दों का प्रयोग किया गया है । एक ही भावना के अनन्त पहल होते हैं। कभी किसी पहलू पर जोर दिया गया और कभी दूसरे पर । इस तरह हृदय की अनन्त भाव-भंगिमाओं के वर्णन में शब्दों का विशाल भण्डार भर गया। हृदय के एक प्रकार के स्नेह का नाम "माता" है तो दूसरे प्रकार के स्नेह का नाम 'पिता' है। इसी प्रकार पति-पत्नी, भाई और बहन इत्यादि के स्नेह एक ही भाव को अलग-अलग शब्दों में प्रकार अभिव्यक्ति देते हैं । पर मानव की मधुरता इन सबके पीछे झलकती है। चाहे उस मधुरता का नाम कुछ भी लिया जाय । यह मधुरता ही अहिंसा है, करुणा है और दया है। जब सोई हुई आत्मा जागृत हो जाती है, घृणा और द्वष का पर्दा फट जाता है । अहंकार की चट्टान चूर-चूर हो जाती है और प्रेम का झरना फट पड़ता है; तभी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
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