SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मानव-जीवन और कृषि-उद्योग ३२६ विचारों में भ्रम मालूम दे। किंतु भ्रम की स्थिति में तटस्थभाव से सोच-विचार करना अच्छा होता है। चिंतन-मनन के द्वारा विभिन्न विचार वाले जल्दी ही यदि एक सुनिश्चित राह पर आ जाते हैं तो दोनों ही पक्षों को खुशी होती है। यदि नहीं आते हैं तो उन्हें चिंता करने के बजाय फिर से सोचना चाहिए, मिलना चाहिए, बातें करनी चाहिए, और विचार करते-करते अन्ततः एक लक्ष्य को पा जाते हैं । इस प्रकार की मनोवृत्ति रखकर निष्पक्ष और निष्कषाय होकर वस्तु-स्वरूप का चिंतन करने में अपूर्व रस मिलता है। प्याज की खेती कृषि के सम्बन्ध में एक प्रश्न मेरे पास आया है कि-प्याज (कांदे) की खेती करना अल्पारम्भ है या महारम्भ ? यह प्रश्न साधारण खेती के सम्बन्ध में नहीं, प्याज की खेती के सम्बन्ध में है । कारण, सामान्य खेती सम्बन्धी प्रश्न प्रायः सुलझ चुके हैं। अनाज की खेती अल्पारंभ है या महारंभ ? इसका निर्णय हो चुका है। पिछले प्रकरणों में अन्न की खेती के विषय में शास्त्रों के अनेक पाठ उपस्थित किए गए हैं और विभिन्न आचार्यों की प्राचीन परम्पराएँ भी सामने रखी गई हैं। आचार्य समन्तभद्र, हरिभद्र और हेमचन्द्र आदि के प्रामाणिक कथन भी किए जा चुके हैं। अतएव यह समझ लेना चाहिए कि अन्न की खेती के सम्बन्ध में विचार स्पष्ट हो चुका है। "वह महारंभ या अनार्यकर्म है," यह गलतफहमी पूर्णतः दूर हो चुकी है। भगवती-सूत्र, स्थानाङ्ग-सूत्र और उवदाई-सूत्र में नरक-गति के चार कारण बतलाये गये हैं। उनमें पहला कारण महारंभ है । 'नरक-गति का कारण महारंभ है, उसी को लक्ष्य में रख कर सवाल किया गया है या और किसी दूसरे अभिप्राय से है ? स्मरण रखने की चीज यह है कि जहाँ महारंग या अनार्य-कर्म आता है वहां नरक की राह भी ध्यान में आती है । कारण शास्त्रों में महारंभ का सम्बन्ध नरक के साथ जोड़ा गया है। अनेक स्थलों पर शास्त्रों में ऐसे उल्लेख मिलते हैं। ऐसी स्थिति में प्याज की अथवा गाजर-मूली आदि की खेती को कोई महारंभ मानते हैं, तो उसे नरक गति का कारण भी मानना होगा। ___ कदाचित् यह कहा जाए कि प्याज की खेती को महारंभ तो मान लें, किंतु नरकगति का कारण न मानें, किंतु ऐसा अन्तर नहीं हो सकता। शास्त्र कहते हैं कि जो महारंभ है, वह नरक-गति का कारण बने बिना नहीं रह सकता। महारंभ भी हो और नरक-गति का कारण न हो, ऐसा कोई असंगत समझौता नहीं हो सकता। फिर आलू आदि जमीकन्दों की खेती क्या नरक-गति का कारण है ? उत्तर होगा-'क्यों नहीं ? जमीकंद में अनन्त जीव जो ठहरे !' भूखा मानव और आलू यदि एक आदमी भूख से तड़प रहा है और उसके प्राण निकल रहे हैं । वहाँ दूसरा आदमी आ पहुँचता है । उसके पास आलू, गाजर आदि कंदमूल हैं और वह दया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy