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अहिंसा - दर्शन
कृष्ण ने बात को हँसी में उड़ाते हुए कहा - 'कुछ नहीं ।'
यशोदा ने मुँह खोलने को कहा । कृष्ण ने मुँह खोला तो माता को मुँह में सारा विश्व दिखाई दिया। वहाँ चाँद, सूरज और चमकते हुए तारे दिखाई दिए । वन, पर्वत, सागर और बड़े-बड़े नगर भी नजर आए। तब यशोदा ने सोचा- यह पुत्र नहीं, भगवान् है ।
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यह तो अलंकार की बात है, रूपक अलंकार है । इसका असली मतलब यह है कि नन्हे से बालक के अन्दर भी विश्व की विराट् चेतना छिपी पड़ी है । उसकी आत्मा के अन्दर भी अनन्तशक्ति का अजस्रस्रोत बह रहा है । इसी प्रकार एक बूढ़ा, जो मौत की शय्या पर पड़ा जीवन की अंतिम घड़ी गिन रहा है, उसकी आत्मा में भी अनन्त शक्तियाँ हैं । यद्यपि यह कहानी काल्पनिक है, तथापि इसके आधार पर भागवतकार बताना चाहता है कि यदि ब्रह्माण्ड में देखने चलोगे, तो वहाँ क्या मिलेगा ? जो देखना है, वह आत्म-ब्रह्माण्ड में देखो । यदि गंगा को देखना हो, तो अपने अन्तःस्थल पर देखो; यदि चाँद और सूरज देखने हों, तो अपने अन्दर ही देखो । अधिक क्या, जो भी महान विभूतियाँ देखनी हों, वे सब आत्मा के पुनीत पट पर चित्रित हैं ।
गंगा की धारा --- अहिंसा - गंगा की धारा है। पुराने टीकाकार भटक गए । वे तीनों लोकों में पानी की धार को तलाश करने लगे । लेकिन अहिंसा - गंगा की धारा तीन मार्गों पर बहती है । यदि स्थूलगंगा में नहा भी लिए, तो शरीर के ऊपर का मैल भले ही साफ हो जाय, किन्तु ऐसे गंगा स्नान से पाप नहीं धुल सकते । यदि पापों को धोना है, तो आत्मा में जो अहिंसा की अमृत- गंगा बह रही है, उसी में स्नान करना होगा । तभी कल्याण सुनिश्चित है ।
अहिंसा की वह अमृत-धारा तीन रूप में बह रही है । इस सम्बन्ध में भगवान् महावीर ने कहा है कि "मनुष्य का यह विराट् जीवन - मन का लोक, वचन का लोक और शरीर का लोक है ।" इस प्रकार मानव-जीवन तीन लोकों में विभक्त है, यह त्रिलोकी है। इसके अन्दर बसने वाले राक्षस बन रहे हैं, पशु बन रहे हैं और अहिंसा अमृत को पीने वाले देवता भी बन रहे हैं, और इस तत्व-ज्ञान का पान करने वाले कोई-कोई भगवान् भी बन रहे हैं । जो व्यक्ति इस त्रिलोकी के अन्दर अहिंसा की गंगा नहीं बहा रहा है, जिसने अहिंसा की ज्ञान गंगा में स्नान नहीं किया है, गहरी डुबकियाँ नहीं लगाई हैं तथा जिसकी आत्मा अहिंसा की धारा में नहीं बही है—उसने बाहर से इन्सानी चोला भले ही पहन लिया हो, किन्तु अपनी अन्दर की दुनिया में वह हैवान बन रहा है । उसे न तो अपने आपका पता है, न अपने अमूल्य जीवन का ही पता है । वह वासनाओं में भटक रहा है, फलत: किसी समय कुछ भी अनर्थ करने को तैयार हो जाता है । इस तरह उसकी जिन्दगी ठोकरें खा रही है, वह जंगली और हिंसक जानवरों की तरह बन रही है । जो एक प्रकार से राक्षस की जिन्दगी है ।
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