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शोषण : सामाजिक हिंसा का स्रोत
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की कोशिश की जाती है। इस प्रवृत्ति को आप या कोई भी विवेकशील व्यक्ति, क्या न्यायसंगत कह सकता है ? अनेकान्त की तराजू
__ जैन-धर्म एक बड़ा ही विवेकशील धर्म है। वह हर सत्य को तोलने के लिए अनेकान्त की तराजू ले कर चलता है। अस्तु, इसी तराजू पर ब्याज के धन्धे को भी तोलना होगा।
इस प्रसंग में यह स्मरण रखने की बात है कि समाज की कुरीतियों के कारण भी अनेक चीजें बुराई बन गई हैं। श्रीमंत की अपेक्षा गरीब से दुगुना और तिगुना ब्याज लेना, और एक बार रुपया दे कर फिर शोषण के रूप में ब्याज चालू रखना, ब्याज के धंधे की बुराइयाँ हैं । धनिकवर्ग की अर्थ-लिप्सा ने इस ब्याज-व्याधि को प्रोत्साहित किया है और जब यह बहुत ज्यादा बढ़ गई है तो सरकार को ब्याज के धन्धे पर अंकुश लगाने की आवश्यकता अनुभव हुई है और उसने अनेक प्रकार के अंकुश इस पर लगाए भी हैं । साहूकार एक बार रुपया दे देता है और फिर इतना शोषण करता है कि मूल रकम तो सदैव बनी रहती है और कर्जदार वर्षों तक ब्याज में फंसा रहता है। ब्याज के रूप में जब तक किसी समर्थ का दुग्ध-दोहन किया जाता है, तब तक तो किसी हद तक ठीक है, किन्तु गरीब कर्जदार के रक्त को चूसना, कैसे ठीक कहा जा सकता है ?
गाय पाली जाती है और उसे भूसा भी खिलाया जाता है। अस्तु, यह तो ठीक है कि कोई भी गोपालक बदले में गोबर ही ले कर सन्तोष नहीं कर सकता, वह गाय का दूध भी लेना चाहता है। जहां तक गाय से दूध लेने का सवाल है, गोपालक का अपना हक है। इससे कोई भी इन्कार नहीं कर सकता । परन्तु गाय को दुहते-दुहते जब दूध न रहे तो उसका रक्त दुहना अनुचित ही नहीं, अनैतिक भी है। ऐसा करने में न तो आर्यत्व ही है और न इन्सानियत ही; बल्कि स्पष्ट नरपशुता है।
आपने गाय की सेवा की है, उसे खिलाया-पिलाया है, रहने को जगह दी है; यदि वह बीमार हुई तो उसकी सेवा भी की है। इस प्रकार उसकी सुख-सुविधा का सारा उत्तरदायित्व भी आपने अपने ऊपर ले रखा है । और जब उसके दुहने का प्रसंग आता है, तब भी सारा का सारा दूध नहीं दुह लेते हैं, किन्तु उसके बच्चे के पोषण के लिए भी कुछ छोड़ देते हैं । यही उदारवृत्ति ब्याज के सम्बन्ध में भी होनी चाहिए । जब आप किसी को ब्याज पर रुपया दें, तो अपने हिस्से का न्याय-प्राप्त धन-दूध यथावसर उससे ले सकते हैं, परंतु उसके परिवार के भरण-पोषण के लिए भी कुछ अवश्य बचने दें । यहाँ तक तो ब्याज का धंधा अक्षम्य नहीं समझा जाता, किन्तु उसके परिवार के लिए यदि आप एक घूट भी नहीं बचने दें, तब तो वह अवश्य ही अक्षम्य हो जाता है।
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